कब और क्यों फटते हैं बादल? क्या है इसके पीछे का विज्ञान, कैसे करें बचाव? यहां जानें सबकुछ

    हिमाचल प्रदेश में मानसून के दौरान हर साल बादल फटने की घटनाएं होती हैं, और इस बार भी स्थिति कुछ अलग नहीं है. लगातार हो रही बारिश ने न केवल प्रदेश के बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि जान-माल का भी भारी नुकसान हुआ है.

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    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    हिमाचल प्रदेश में मानसून के दौरान हर साल बादल फटने की घटनाएं होती हैं, और इस बार भी स्थिति कुछ अलग नहीं है. लगातार हो रही बारिश ने न केवल प्रदेश के बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि जान-माल का भी भारी नुकसान हुआ है. वर्ष 2023 में अब तक बारिश से जुड़ी घटनाओं में 170 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और लगभग 1300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

    क्या है बादल फटना?

    बादल फटना एक प्राकृतिक आपदा है, जिसे अचानक भारी बारिश के रूप में देखा जाता है. जब गर्म हवाएं, जो जमीन से उठकर बादलों तक जाती हैं, कुछ पानी की बूंदों को लेकर जाती हैं, तो उस समय बारिश का सामान्य प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है. इससे बादल में अधिक नमी जमा हो जाती है और हवा का दबाव कमजोर हो जाता है. इस कारण, बादल के अंदर भारी पानी एक जगह इकट्ठा हो जाता है, और फिर अचानक बादल आपस में टकराते हैं, जिससे भारी बारिश और बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न होती है. इसे ही "क्लाउडबर्स्ट" या बादल फटना कहते हैं.

    क्यों पहाड़ी इलाकों में होती है ज्यादा बादल फटने की घटनाएं?

    बादल फटने की घटनाएं आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में ज्यादा देखी जाती हैं, जैसे कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, और पूर्वोत्तर राज्यों में. इसका कारण यह है कि पहाड़ों में हवा का प्रवाह संकुचित होता है और वातावरण में नमी और गर्मी का स्तर ज्यादा होता है. इसके परिणामस्वरूप बादल फटने की घटनाएं अधिकतर इन क्षेत्रों में होती हैं, जहां बारिश की तीव्रता अधिक होती है और जल निकासी की व्यवस्था सही तरीके से नहीं की जाती.

    बादल फटने से बचाव के उपाय

    यह एक अप्रत्याशित घटना है, लेकिन इससे बचाव के कुछ उपाय किए जा सकते हैं. सबसे पहले तो मौसम विभाग की चेतावनियों और एडवाइजरी को गंभीरता से लेना बेहद आवश्यक है. जब भी बादल फटने की संभावना हो, लोगों को तुरंत सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट कर देना चाहिए. पहाड़ी इलाकों में जल निकासी की सही व्यवस्था करनी चाहिए ताकि पानी की अत्यधिक मात्रा किसी इलाके को नुकसान न पहुंचा सके.

    इसके अलावा, पहाड़ों के ढलान वाले क्षेत्रों या नदियों के किनारे घर बनाने से बचना चाहिए. इन स्थानों पर रहने से बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं होने का खतरा अधिक होता है. स्थानीय प्रशासन को भी इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए और समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाने चाहिए.

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