कंबोडिया और थाईलैंड कैसे बने दुश्मन? भारत के पड़ोस में छिड़ गई एक नई जंग, F-16 लड़ाकू विमानों से हमला

    सीमा पर गोलीबारी और हवाई हमलों के बाद दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच चुका है, और युद्ध का अंदेशा बढ़ गया है.

    How Cambodia Thailand war broke out attack by F16 fighter planes
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    दक्षिण-पूर्व एशिया में, खासकर थाईलैंड और कंबोडिया के बॉर्डर पर हालात तेजी से बिगड़ते जा रहे हैं. गुरुवार को दोनों देशों के बीच शुरू हुई झड़पें अब जंग जैसे हालात में तब्दील होती नजर आ रही हैं. सीमा पर गोलीबारी और हवाई हमलों के बाद दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच चुका है, और युद्ध का अंदेशा बढ़ गया है. यह संघर्ष, जो 1959 से चला आ रहा एक पुराना सीमा विवाद है, अब उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां दोनों देशों के बीच एक बड़ी सैन्य टक्कर का खतरा पैदा हो गया है.

    कंबोडिया के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, थाईलैंड ने कंबोडिया के क्षेत्र में F-16 लड़ाकू विमानों से हवाई हमले किए हैं. इन हमलों में कंबोडिया के दो सैन्य मुख्यालयों को नष्ट करने का दावा किया गया है. कंबोडिया ने भी इस आक्रमण का जवाब देने की धमकी दी है. इस संघर्ष में एक और बड़ी बात यह है कि कंबोडिया ने कहा है कि थाईलैंड ने वाट काऊ किरी स्वरक पैगोडा की ओर जाने वाली सड़क पर बम गिराए हैं, जो उस क्षेत्र के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को प्रभावित कर सकता है. थाईलैंड की ओर से जवाबी हमले में छह F-16 विमान तैनात किए गए हैं, जो इस संघर्ष को और भी गंभीर बना रहे हैं.

    विवाद का इतिहास: 1959 से लेकर 2008 तक

    कंबोडिया और थाईलैंड के बीच इस सीमा विवाद का इतिहास बहुत पुराना है. 1959 में कंबोडिया ने थाईलैंड के खिलाफ एक महत्वपूर्ण मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में दायर किया था. यह मामला प्रीह विहियर मंदिर से जुड़ा था, जिस पर दोनों देशों का दावा था. 1962 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने इस मामले में कंबोडिया के पक्ष में फैसला सुनाया और मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा माना. हालांकि, थाईलैंड ने इसे स्वीकार किया लेकिन इसके आस-पास के क्षेत्र को विवादित बताया, और यही कारण बना कि सीमा रेखाएं और अधिक जटिल हो गईं.

    2008 में जब कंबोडिया ने प्रीह विहियर मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिलाने की कोशिश की, तब एक नया मोड़ आया. इस फैसले के बाद, सीमा क्षेत्र में कंबोडियाई और थाई सैनिकों के बीच सैन्य झड़पें तेज हो गईं. जुलाई 2008 में मंदिर को यूनेस्को की सूची में शामिल किया गया और इसके बाद सीमा पर हिंसा और संघर्ष बढ़ने लगा.

    2011 तक बढ़ता संघर्ष: 36,000 लोग विस्थापित

    संघर्ष 2011 तक बढ़ते हुए 36,000 लोगों को विस्थापित कर चुका था. हालांकि, इस साल के अंत तक दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष थमा, लेकिन तनाव लगातार बना रहा. दोनों देशों ने सीमा विवादों को सुलझाने के लिए संयुक्त सीमा आयोग (JBC) की स्थापना की, लेकिन इस आयोग की बैठकें प्रभावी नहीं हो पाई और कोई ठोस समाधान नहीं निकला. इसके बाद भी इन दोनों देशों के बीच सीमा पर सैन्य झड़पों का सिलसिला जारी रहा. थाईलैंड और कंबोडिया की सेनाएं बार-बार एक-दूसरे पर गोलीबारी करती रहीं, जिससे दोनों देशों में एक खतरनाक तनाव बना रहा.

    हालिया घटनाओं ने फिर से बढ़ाया तनाव

    हालिया महीनों में, विशेष रूप से 28 मई को कंबोडियाई सैनिक की मौत के बाद, दोनों देशों के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया है. यह घटना "एमराल्ड ट्रायंगल" क्षेत्र में हुई, जो थाईलैंड, कंबोडिया और लाओस की साझा सीमा है. इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच लंबे समय से विवाद रहा है, और अब यह संघर्ष फिर से उफान पर है.

    यह स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि सीमा विवाद को हल करने के लिए कई प्रयासों के बावजूद दोनों देशों के रिश्तों में सुधार नहीं हो सका है. इसके बजाय, यह क्षेत्र एक बार फिर युद्ध के कगार पर खड़ा है, जहां न केवल थाईलैंड और कंबोडिया, बल्कि पूरा दक्षिण-पूर्व एशिया इस संघर्ष का गवाह बनने को मजबूर हो सकता है.

    क्या भारत को भी चिंता करनी चाहिए?

    भारत, जो इस समय कंबोडिया और थाईलैंड के सीमांत क्षेत्र से कुछ हद तक दूर है, फिर भी इस तनाव से प्रभावित हो सकता है. दक्षिण-पूर्व एशिया में बढ़ते तनाव और संघर्ष का प्रभाव भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण पर पड़ सकता है. भारत ने हमेशा क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को प्राथमिकता दी है, और ऐसे में यदि यह संघर्ष बढ़ता है तो यह भारत की विदेश नीति पर भी असर डाल सकता है. भारत के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि वह इस क्षेत्र में अपने रिश्तों को मजबूत बनाए रखे और शांति की दिशा में काम करे.

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