लड़कियों का अपहरण, जबरन विवाह... पाकिस्तान में हिंदू और ईसाई बच्चे धर्मांतरण का शिकार, देखें आंकड़े

    पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों विशेष रूप से हिंदू और ईसाई समुदायों से जुड़े बच्चों की स्थिति को लेकर हाल ही में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है, जो न केवल मानवाधिकारों के उल्लंघन की भयावहता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि इन समुदायों के बच्चों का भविष्य किस तरह के सामाजिक, धार्मिक और संस्थागत शोषण की गिरफ्त में है.

    Hindu and Christian children are victims of conversion in Pakista
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ FreePik

    नई दिल्ली/इस्लामाबाद: पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों विशेष रूप से हिंदू और ईसाई समुदायों से जुड़े बच्चों की स्थिति को लेकर हाल ही में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है, जो न केवल मानवाधिकारों के उल्लंघन की भयावहता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि इन समुदायों के बच्चों का भविष्य किस तरह के सामाजिक, धार्मिक और संस्थागत शोषण की गिरफ्त में है.

    यह रिपोर्ट पाकिस्तान के नेशनल कमीशन ऑन द राइट्स ऑफ चाइल्ड (NCRC) द्वारा तैयार की गई है और इसे क्रिश्चियन डेली इंटरनेशनल ने प्रकाशित किया है. रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि किस तरह हिंदू और ईसाई अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को जबरन धर्म परिवर्तन, बाल विवाह, बंधुआ मजदूरी और शैक्षणिक भेदभाव जैसी जटिल और हिंसात्मक समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

    जबरन धर्मांतरण की बढ़ती घटनाएं

    रिपोर्ट के सबसे चौंकाने वाले खुलासों में से एक है नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर उनका जबरन धर्मांतरण और फिर मुस्लिम पुरुषों से शादी करवाने की घटनाएं. यह केवल isolated घटनाएं नहीं हैं, बल्कि एक सुनियोजित और संस्थागत स्तर पर संरक्षित पैटर्न बन चुका है, जहां कानून की पकड़ बेहद कमजोर और न्याय की पहुंच लगभग असंभव है.

    संवेदनशील मामलों में अक्सर पुलिस निष्क्रिय रहती है या दबाव में आकर पीड़िता की शिकायत को नजरअंदाज कर देती है. कई बार अदालतें भी इस बात को मान लेती हैं कि नाबालिग लड़कियां अपनी मर्जी से धर्म बदल रही हैं और शादी कर रही हैं, जबकि असलियत इसके उलट होती है बच्चियों पर मानसिक और सामाजिक दबाव डालकर उन्हें मजबूर किया जाता है.

    सांख्यिकी: एक भयावह तस्वीर

    रिपोर्ट में आंकड़े दर्शाते हैं कि अप्रैल 2023 से दिसंबर 2024 के बीच, अल्पसंख्यक बच्चों के खिलाफ 27 गंभीर मामले दर्ज हुए, जिनमें हत्या, अपहरण, धर्मांतरण और बाल विवाह जैसी घटनाएं शामिल थीं. ये आंकड़े केवल उन्हीं मामलों के हैं जो रिकॉर्ड में आए, जबकि ज़मीनी हकीकत यह है कि असंख्य मामले बिना रिपोर्ट हुए दबा दिए जाते हैं.

    पंजाब प्रांत को लेकर रिपोर्ट में विशेष चिंता जताई गई है. यह पाकिस्तान का सबसे अधिक आबादी वाला प्रांत है और यहां जनवरी 2022 से सितंबर 2024 तक अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों के खिलाफ होने वाले कुल अपराधों का लगभग 40% यहीं पर दर्ज किया गया.

    पुलिस आंकड़ों के अनुसार, इस दौरान दर्ज मामलों में शामिल पीड़ितों की संख्या इस प्रकार रही:

    • 547 ईसाई बच्चे
    • 32 हिंदू बच्चे
    • 2 अहमदिया
    • 2 सिख
    • 9 अन्य अल्पसंख्यक

    यह केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह उस भय, शोषण और असहायता की अभिव्यक्ति है, जिसे ये बच्चे प्रतिदिन झेलते हैं.

    शैक्षणिक भेदभाव: शिक्षा नहीं, दमन का ज़रिया

    धार्मिक अल्पसंख्यकों के बच्चों को केवल समाज में ही नहीं, बल्कि स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. रिपोर्ट में बताया गया कि पाकिस्तान के सरकारी स्कूलों में ईसाई और हिंदू छात्रों को उनकी आस्था के विरुद्ध इस्लामी विषय पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है.

    यह उनके शैक्षणिक प्रदर्शन पर सीधा असर डालता है, क्योंकि वे उन विषयों में रुचि नहीं लेते या समझ नहीं पाते, जिनका उनके विश्वास से कोई मेल नहीं होता. परिणामस्वरूप उनका GPA गिरता है, जिससे वे अकादमिक रूप से पिछड़ जाते हैं और एक तरह की अलगाव की संस्कृति जन्म लेती है.

    शिक्षा जो एक बदलाव का साधन हो सकती थी, वह अब भेदभाव और दबाव का औजार बन चुकी है.

    बंधुआ मजदूरी और बाल श्रम: बचपन की कीमत

    रिपोर्ट यह भी उजागर करती है कि जबरन धर्म परिवर्तन और शैक्षणिक भेदभाव के अलावा इन बच्चों को बाल श्रम और बंधुआ मजदूरी जैसे अत्यंत अमानवीय हालात में भी धकेला जाता है. कई बार गरीब अल्पसंख्यक परिवारों को कर्ज के बोझ में फंसाकर उनके बच्चों को ईंट भट्टों, खेतों और कारखानों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है.

    ये बच्चे न केवल शिक्षा से वंचित रहते हैं, बल्कि उन्हें एक ऐसे जीवन में झोंक दिया जाता है जहां उनके अधिकार, उनका भविष्य और उनकी पहचान तीनों खतरे में पड़ जाते हैं.

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