सच हो गई नेपाल को लेकर गोरखनाथ की भविष्यवाणी, Gen Z ने किया ऐसा बवाल, हो गया तख्तापलट

    नेपाल एक बार फिर उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. लेकिन इस बार यह केवल राजनीतिक अस्थिरता नहीं, बल्कि युवाओं के गुस्से की ऐसी लहर है, जो सड़कों से संसद तक जा पहुंची है.

    Gorakhnath Prediction for nepal come true monarchy return
    Image Source: Social Media

    नेपाल एक बार फिर उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. लेकिन इस बार यह केवल राजनीतिक अस्थिरता नहीं, बल्कि युवाओं के गुस्से की ऐसी लहर है, जो सड़कों से संसद तक जा पहुंची है.

    2025 से ही विरोध के सुर सुनाई दे रहे थे, लेकिन इस हफ्ते Gen Z की लहर ने लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव को हिलाकर रख दिया. सोशल मीडिया पर बैन, बढ़ती बेरोजगारी और बेलगाम भ्रष्टाचार ने मिलकर वो चिंगारी दी, जो अब आंदोलन में तब्दील हो चुकी है. नतीजा यह हुआ कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पद छोड़ना पड़ा.

    “राजा आउनुपर्छ” की मांग और गोरखनाथ की भविष्यवाणी

    इन विरोध प्रदर्शनों में एक नारा सबसे ज़्यादा गूंज रहा है. "राजा आउनुपर्छ" यानी "राजा को वापस आना चाहिए." इसी नारे ने नेपाल की सड़कों पर गुरु गोरखनाथ की सदियों पुरानी भविष्यवाणी को फिर से चर्चा में ला दिया है. लोककथाओं के अनुसार, 18वीं सदी में जब पृथ्वीनारायण शाह ने नेपाल को एकजुट किया था, तब गुरु गोरखनाथ ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि उनके वंश का शासन ग्यारह पीढ़ियों तक चलेगा. राजशाही समर्थकों का मानना है कि राजा दीपेंद्र इस भविष्यवाणी की अंतिम कड़ी थे. हालांकि, कुछ लोगों के अनुसार उनका शासन औपचारिक नहीं था, इसलिए एक और पीढ़ी का उभरना तय है.

    पूर्व राजपरिवार कहां है इस संकट में?

    ऐसे माहौल में जब काठमांडू और अन्य शहरों की सड़कों पर उबाल है, जनता की नजरें एक बार फिर पूर्व राजपरिवार की ओर मुड़ गई हैं. राजा ज्ञानेंद्र, जो 2008 के बाद से राजनीति से दूर हैं, फिलहाल काठमांडू के निर्मल निवास या फिर नागर्जुन हिल्स में स्थित अपने कॉटेज ‘हेमंताबास’ में रहते हैं. हाल के महीनों में उनकी बहू हिमानी शाह और पोते हृदयेन्द्र सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिखे, जिससे कयास लगने लगे कि राजपरिवार अब फिर से सक्रिय हो सकता है. हालांकि, अब तक खुद ज्ञानेंद्र ने राजनीतिक वापसी की कोई घोषणा नहीं की है.

    Gen Z का गुस्सा क्यों फूटा?

    2008 में गणतंत्र की घोषणा के बाद से नेपाल ने लोकतांत्रिक शासन की ओर कदम बढ़ाया, लेकिन 17 वर्षों में लगातार सरकारें बदलीं, नीतिगत अस्थिरता बनी रही, और भ्रष्टाचार ने जड़ें जमा लीं. युवाओं के लिए नौकरी के अवसर घटते गए, और विदेश पलायन आम होता गया. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष नेपाल में 20% से अधिक युवा बेरोजगारी दर थी. हर दिन लगभग 2,000 युवा विदेशों की ओर रुख करते हैं. इस गुस्से का सबसे बड़ा आउटलेट बना सोशल मीडिया — टिकटॉक, इंस्टाग्राम और फेसबुक, जिन पर बैन लगाने का फैसला सरकार को भारी पड़ गया.

    नेपाल का अगला अध्याय क्या होगा?

    प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद अब सबकी नजरें नए नेतृत्व पर टिकी हैं. मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां अब भी गणतंत्र के पक्ष में हैं और राजशाही की वापसी की मांग को खारिज कर रही हैं. लेकिन सड़कों पर हो रहे जनसैलाब और युवाओं की बुलंद आवाजें बता रही हैं कि नेपाल एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है. यदि गोरखनाथ की भविष्यवाणी सच थी और वह अब भी असर में है, तो क्या नेपाल में शाह वंश की एक और पीढ़ी की वापसी संभव है?

    अंत में सवाल वही  क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?

    नेपाल का भविष्य अनिश्चित है, लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिनों में वहां की राजनीति में बड़ा फेरबदल देखने को मिल सकता है.राजशाही समर्थक इसे एक अवसर मान रहे हैं, जबकि लोकतंत्र के पक्षधर इसे चुनौती. लेकिन सच्चाई यही है — जनता जाग चुकी है, और इस बार नेतृत्व की परिभाषा जनता तय करेगी, व्यवस्था नहीं.

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