84 साल की आयु में इसरो के पूर्व प्रमुख कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन का निधन, पीएम मोदी ने जताया दुख

    इसरो के पूर्व अध्यक्ष कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन का शुक्रवार को बेंगलुरु आवास पर 84 साल की आयु में निधन हो गया. सुबह करीब 10 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. अंतिम संस्कार से पहले रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा

    84 साल की आयु में इसरो के पूर्व प्रमुख कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन का निधन, पीएम मोदी ने जताया दुख
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    इसरो के पूर्व अध्यक्ष कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन का शुक्रवार को बेंगलुरु आवास पर 84 साल की आयु में निधन हो गया. सुबह करीब 10 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. अंतिम संस्कार से पहले रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक जताया है.

    पीएम मोदी ने जताया दुख

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा- 'मैं भारत की वैज्ञानिक और शैक्षिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति डॉ. के. कस्तूरीरंगन के निधन से बहुत दुखी हूं. उनके दूरदर्शी नेतृत्व और राष्ट्र के प्रति निस्वार्थ योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा. उन्होंने इसरो में बहुत मेहनत से काम किया, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, जिसके लिए हमें वैश्विक मान्यता भी मिली. उनके नेतृत्व में महत्वाकांक्षी उपग्रह प्रक्षेपण भी हुए और नवाचार पर ध्यान केंद्रित किया गया.'

    कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन ने सरकारी नीतियों के फार्मूलेशन में योगदान दिया 

    कस्तूरीरंगन 10 साल तक इसरो चीफ के पद पर कार्यरत रहे थे. इसके अलावा उन्होंने कस्तूरीरंगन के सरकारी नीतियों के फार्मूलेशन में भी योगदान दिया. डॉ कस्तूरीरंगन ने 27 अगस्त, 2003 को रिटायरमेंट से पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग में भारत सरकार के सचिव के रूप में 9 वर्षों से अधिक समय तक काम किया.  

    डॉ. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में इसरो ने रचा इतिहास

    डॉ. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में इसरो ने भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के सफल प्रक्षेपण और संचालन सहित कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की. डॉ. कस्तूरीरंगन ने जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) के पहले सफल उड़ान परीक्षण की भी देखरेख की. उनके कार्यकाल में आईआरएस-1सी और 1डी सहित प्रमुख उपग्रहों का विकास और प्रक्षेपण और दूसरी और तीसरी पीढ़ी के इनसैट उपग्रहों की शुरुआत हुई. इन प्रगति ने भारत को वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में मजबूती से स्थापित कर दिया.

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