भारत और अमेरिका के रिश्तों को लेकर हाल के दिनों में जो सवाल उठे हैं, उन पर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने खुलकर अपनी बात रखी है. उन्होंने साफ किया कि दोनों देशों के बीच मतभेद के बावजूद संवाद के दरवाज़े खुले हैं. जयशंकर ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘कट्टी नहीं हुई है, बातचीत तो चल रही है.’
यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सर्जियो गोर को भारत में अमेरिकी राजदूत नियुक्त करने की घोषणा की है. गोर ट्रंप के करीबी माने जाते हैं, जिससे यह कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों देशों के रिश्तों में कोई नया मोड़ आने वाला है.
रूसी तेल पर उठे सवाल, दिया करारा जवाब
इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम 2025 में भाग लेते हुए डॉ. जयशंकर ने रूस से तेल खरीद को लेकर अमेरिका की आपत्तियों पर भी तीखा जवाब दिया. उन्होंने कहा, ‘‘ये कैसा तर्क है कि जो खुद व्यापार करता है, वो दूसरों को व्यापार के लिए कोसता है? अगर किसी को भारत का तेल पसंद नहीं, तो मत खरीदो. कोई ज़बरदस्ती थोड़े कर रहा है.’’
जयशंकर ने यह भी जोड़ा कि यूरोप और अमेरिका भी रूसी तेल और उत्पाद खरीदते हैं, लेकिन भारत पर सवाल उठाए जाते हैं. उन्होंने इसे दोहरे मापदंड का उदाहरण बताया.
डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों पर तीखी टिप्पणी
जयशंकर ने डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति की शैली पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनका तरीका परंपरागत अमेरिकी राष्ट्रपतियों से बिलकुल अलग है. उन्होंने कहा, ‘‘ट्रंप सार्वजनिक रूप से घरेलू और वैश्विक मुद्दों पर अपनी स्थिति रखते हैं और टैरिफ को अक्सर एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं, चाहे मामला व्यापार का हो या नहीं.’’
ट्रेड डील पर भारत का रुख साफ
व्यापार समझौते (ट्रेड डील) को लेकर विदेश मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि भारत की प्राथमिकताएं तय हैं और किसानों व लघु उत्पादकों के हितों से किसी भी तरह का समझौता नहीं होगा. उन्होंने यह भी कहा कि भारत के ‘रेड लाइन’ बिल्कुल साफ हैं.
अमेरिका की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि भारत पर तो प्रतिबंध और दबाव की बातें होती हैं, लेकिन चीन, जो दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक है, या यूरोपीय यूनियन, जो एलएनजी का सबसे बड़ा खरीदार है—उनके मामले में ऐसे सवाल नहीं उठते.
भारत-पाक रिश्तों में किसी मध्यस्थता की जगह नहीं
पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्तों में अमेरिका की मध्यस्थता की भूमिका पर ट्रंप के दावों को भी जयशंकर ने खारिज किया. उन्होंने दो टूक कहा, ‘‘1970 के दशक से ही भारत की नीति रही है कि भारत-पाक संबंधों में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं होगी. हमारी रणनीतिक स्वायत्तता और हमारे किसानों के हित हमारे लिए सर्वोपरि हैं.’’
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