America Stray Dogs: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आवारा कुत्तों के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है, जिसने देशभर में इस समस्या को लेकर बहस को नई दिशा दी है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में बंद नहीं किया जाएगा. हालांकि, आक्रामक और हिंसक कुत्तों को अलग रखा जाएगा ताकि वे किसी के लिए खतरा न बनें. इस फैसले में यह भी कहा गया है कि पकड़े गए कुत्तों का नसबंदी और एंटी-रेबीज टीकाकरण किया जाएगा, और इसके बाद उन्हें वहीं वापस छोड़ा जाएगा जहां से वे पकड़े गए थे. लेकिन इस निर्णय के बाद सवाल उठता है कि दुनिया के अन्य देशों में, खासकर अमेरिका में, आवारा कुत्तों की क्या स्थिति है और वहां आवारा कुत्ते सड़क पर क्यों नहीं दिखते?
अमेरिका में आवारा कुत्तों की स्थिति: एक इतिहास
अमेरिका में आजकल आपको सड़क पर आवारा कुत्ते देखने को कम मिलेंगे, लेकिन 19वीं सदी में स्थिति बिल्कुल विपरीत थी. न्यूयॉर्क की सड़कों पर कुत्ते आपस में लड़ते और लोगों पर हमला करते थे. उस समय प्रशासन ने सख्त नियम बनाए और सड़कों से कुत्तों को हटाने का निर्णय लिया.
डॉग पाउंड नामक स्थान बनाए गए जहां आवारा कुत्तों को पकड़ कर रखा जाता था. हालांकि ये शेल्टर नहीं, बल्कि ऐसी जगहें थीं जहां कुत्तों को नदियों में डुबोकर मार दिया जाता था. धीरे-धीरे जानवरों की हड्डियों और चरबी का कमर्शियल इस्तेमाल भी शुरू हो गया, जो एक भयानक प्रथा साबित हुई.
पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का संघर्ष और बदलाव
बढ़ती घटनाओं और क्रूरता के खिलाफ अमेरिकी पशुप्रेमियों ने आवाज उठानी शुरू कर दी. "अमेरिकन सोसायटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स" (ASPCA) ने इस अमानवीय प्रथा का विरोध किया और डॉग पाउंड की जगह आधुनिक शेल्टर बनाने की पहल की.
अब अमेरिका के हर शहर में एनिमल कंट्रोल डिपार्टमेंट है, जो कुत्तों को पकड़ कर उनके स्वास्थ्य की जांच करता है. कुत्तों की पहचान के लिए माइक्रोचिपिंग की जाती है ताकि उनके असली मालिकों का पता लगाया जा सके और आवारा जानवरों को गोद लेने योग्य बनाया जा सके.
गोद लेने की प्रक्रिया और यूथेनेशिया
अमेरिका में आवारा कुत्तों को गोद लेने के लिए सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म पर अभियान चलाए जाते हैं. युवा और स्वस्थ कुत्तों को लोग जल्दी गोद ले लेते हैं, जबकि बूढ़े, बीमार या आक्रामक कुत्तों को गोद लेने वालों की संख्या कम होती है. पिछले साल अमेरिका में लगभग 6 लाख कुत्ते और बिल्लियां यूथेनेशिया, यानी बिना दर्द के मौत के लिए भेजे गए. हालांकि, ASPCA का कहना है कि धीरे-धीरे कुत्तों को मारने की संख्या घट रही है और गोड लेने की प्रक्रिया बढ़ रही है.
भारत के लिए क्या सीख है?
सुप्रीम कोर्ट का यह नया आदेश एक सही दिशा में कदम है, लेकिन अमेरिका के अनुभव से यह भी सीख मिलती है कि आवारा जानवरों के संरक्षण के लिए समर्पित संस्थाएं, स्वास्थ्य जांच, माइक्रोचिपिंग, और गोद लेने के लिए जागरूकता अभियान जरूरी हैं. बिना उचित व्यवस्था के केवल नसबंदी और छोड़ने से समस्या नहीं सुलझेगी. भारत में भी आवारा कुत्तों को लेकर समझदारी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से काम करने की जरूरत है ताकि मानव-जानवर संघर्ष कम हो और दोनों के जीवन में सुधार आए.
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