ओटावा: कनाडा के सरे शहर में घटित एक नई घटना ने एक बार फिर भारत और कनाडा के रिश्तों को मुश्किल मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है. ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के एक प्रतिष्ठित गुरुद्वारे में तथाकथित 'खालिस्तान गणराज्य का दूतावास' खोला गया है, जिसे लेकर भारत में गहरी चिंता जताई जा रही है. इस कथित दूतावास को कट्टरपंथी संगठन सिख्स फॉर जस्टिस (SFJ) द्वारा स्थापित किया गया है, जो भारत में प्रतिबंधित है.
यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब दोनों देशों के बीच कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से संबंधों में सुधार की कोशिशें चल रही थीं. हालांकि, इस कदम ने इन प्रयासों पर पानी फेरने का काम किया है.
खालिस्तानी विचारधारा को 'गुरुद्वारे' की आड़ में पोषण
सरे स्थित गुरु नानक सिख गुरुद्वारा, जो वर्षों से धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है, अब एक नई बहस का केंद्र बन गया है. खालिस्तान समर्थकों ने इसी गुरुद्वारे के परिसर में इस तथाकथित दूतावास को स्थापित किया है, और इसके बोर्ड पर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की तस्वीर प्रमुख रूप से लगाई गई है.
हरदीप सिंह निज्जर वही व्यक्ति है जिसे भारत ने मोस्ट वांटेड आतंकवादी घोषित कर रखा था, और जिसे पिछले साल कनाडा में गोली मार दी गई थी. उसकी मौत के बाद खालिस्तानियों ने कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियों को और तेज कर दिया था.
क्या 'दूतावास' या एक प्रतीकात्मक उकसावा?
यह तथाकथित दूतावास भले ही किसी आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय मान्यता का दावा न करता हो, लेकिन यह खालिस्तानी विचारधारा का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व बन गया है. यह कदम न केवल भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाने की कोशिश है, बल्कि यह कनाडा की घरेलू राजनीति और उसकी कथित "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" की सीमाओं को भी उजागर करता है.
खबरों के मुताबिक, इस भवन को एक "सामुदायिक केंद्र" के तौर पर स्थापित किया गया है, लेकिन इसके पीछे की मंशा को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. स्थानीय खालिस्तानी गुट इसे एक अलगाववादी अभियान का केंद्र बना रहे हैं, जहां भारत विरोधी विचारधारा को संगठित रूप से फैलाया जा रहा है.
सरकारी फंडिंग पर खड़े हुए गंभीर सवाल
सीएनएन-न्यूज18 की एक रिपोर्ट ने इस मामले को और गंभीर बना दिया है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिस इमारत में खालिस्तान दूतावास की स्थापना की गई है, उसका निर्माण कनाडा की ब्रिटिश कोलंबिया सरकार द्वारा मुहैया कराए गए फंड से हुआ है.
यहां तक कि हाल ही में इस इमारत में लिफ्ट लगाने के लिए करीब 1.5 लाख डॉलर की राशि भी प्रांतीय सरकार की ओर से दी गई थी. यदि ये आरोप सही साबित होते हैं, तो यह कनाडा सरकार की तटस्थता और जिम्मेदारी पर बड़ा सवाल खड़ा करता है.
कट्टरपंथियों की जड़ें और गहराता संकट
कनाडा में खालिस्तानी समर्थक गतिविधियां नई नहीं हैं. यह समस्या 1980 के दशक से शुरू हुई थी, जब उग्रवादी विचारधारा से जुड़े कई भारतीय मूल के लोग कनाडा में बसे. इनमें से कुछ ने यहां रहते हुए भारत से पंजाब को अलग कर खालिस्तान नामक एक अलग राष्ट्र बनाने की वकालत शुरू कर दी.
इन दशकों में खालिस्तानी गुटों ने कनाडा में न सिर्फ प्रचार-प्रसार किया, बल्कि स्थानीय राजनीति, सामुदायिक संस्थानों और यहां तक कि गुरुद्वारों को भी अपने मकसद के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.
भारत ने हमेशा जताई है चिंता, लेकिन असर नहीं
भारत ने बार-बार कनाडा सरकार से अनुरोध किया है कि वह अपनी जमीन को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल न होने दे. कई बार औपचारिक विरोध दर्ज कराया गया, यहां तक कि राजनयिक स्तर पर तीखी बयानबाजी भी हुई. लेकिन, अब तक कनाडा की ओर से इस दिशा में कोई ठोस कदम देखने को नहीं मिला है.
कनाडा सरकार अक्सर "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" का हवाला देकर इन गतिविधियों को नजरअंदाज करती रही है, जिससे भारत की चिंता और गहरी हो जाती है. सवाल यह उठता है कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी दूसरे देश की संप्रभुता पर हमला करने वाले विचारों को जगह देना सही है?
कनाडा की छवि और अंतरराष्ट्रीय भरोसे पर असर
इस घटनाक्रम से कनाडा की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी असर पड़ सकता है. एक तरफ कनाडा खुद आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ खड़ा दिखने की कोशिश करता है, वहीं दूसरी ओर उसकी जमीन पर खुलेआम एक ऐसे विचारधारा को स्थान मिल रहा है, जिसे दुनिया भर में हिंसक और विभाजनकारी माना जाता है.
भारत जैसे लोकतांत्रिक और उभरती महाशक्ति से मजबूत रिश्ते बनाना कनाडा के लिए जरूरी है, लेकिन इस तरह के दोहरे रवैये से उसके लिए वैश्विक विश्वास अर्जित करना मुश्किल हो सकता है.
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