Door of Death: दूसरे विश्व युद्ध की भयावहता को बयां करती एक ऐसी जगह, ऑस्त्विज कैंप (Auschwitz Camp), जिसका नाम सुनते ही रूह कांप जाती है. यह नाम सिर्फ एक यातना शिविर का नहीं, बल्कि मानव इतिहास की सबसे काली घटनाओं का प्रतीक बन चुका है. पोलैंड में बना यह शिविर आज भी उस दौर की गवाही देता है, जब इंसानियत को नफ़रत की आग में झोंक दिया गया था.
जहां से लौटकर कोई न आया
ऑस्त्विज कैंप के बाहर एक विशाल लोहे का दरवाज़ा है, जिसे लोग ‘गेट ऑफ डेथ’ या ‘मौत का दरवाजा’ कहते हैं. यही वह दरवाजा था, जहां से हजारों यहूदी, राजनीतिक कैदी और दूसरे अल्पसंख्यक समूहों के लोग जबरन रेलगाड़ियों में भरकर लाए जाते थे. इन लोगों को नाजी सेना द्वारा जानवरों की तरह ढोया जाता था, और इसी दरवाजे से गुजरते ही उनका जीवन नरक में बदल जाता.
एक सुनियोजित नरसंहार केंद्र
हिटलर की नाजी विचारधारा ने यहूदियों को सबसे बड़ा शत्रु घोषित कर दिया था. इस कैंप में लगभग 10 लाख से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, जिनमें से अधिकांश यहूदी थे. ऑस्त्विज को इस तरह से डिज़ाइन किया गया था कि कोई भी कैदी वहां से भाग नहीं सकता था.
कैदियों से जबरन मज़दूरी करवाई जाती थी, और जो कमजोर, बीमार या बुजुर्ग होते, उन्हें सीधे गैस चैंबरों में डालकर मार दिया जाता. उन्हें धोखे से नहाने के लिए ले जाया जाता था, लेकिन वहां से लौटना नामुमकिन होता.
'वॉल ऑफ डेथ'
कैंप के अंदर एक दीवार आज भी खड़ी है, जिसे ‘वॉल ऑफ डेथ’ कहा जाता है. यहीं पर हजारों कैदियों को ठंडी बर्फ में खड़ा कर गोलियों से भून दिया जाता था. यह दीवार आज भी उन निर्दोष लोगों की चीखें और दर्द समेटे हुए है.
आज है म्यूजियम, लेकिन हर कोना चीखता है
1947 में पोलैंड की संसद ने इस यातना शिविर को एक सरकारी म्यूजियम में बदल दिया. आज यहां आने वाले लोग उस भयावह इतिहास को करीब से देख सकते हैं. म्यूजियम में दो टन इंसानी बाल, लाखों जूते-चप्पल, बर्तन और अन्य सामान मौजूद हैं, जो नाजियों की अमानवीयता की निशानियां हैं.
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