डोनाल्ड ट्रंप की जुबान से निकले हर बयान को लेकर पूरी दुनिया सतर्क रहती है, लेकिन अब हालात कुछ ऐसे बन गए हैं कि लोग सिर्फ सतर्क नहीं, बल्कि संदेह में रहने लगे हैं. कभी भारत पर “जीरो टैरिफ ऑफर” की बात, कभी पाकिस्तान के साथ “सीजफायर में मध्यस्थता” का दावा – और फिर उन पर खुद ही यू-टर्न ले लेना, यह सिलसिला अब ट्रंप की शैली बन चुकी है. आखिर अमेरिका के राष्ट्रपति को भारत और पाकिस्तान जैसे संवेदनशील मसलों पर इतनी "भूल-भुलैया" क्यों होती है? क्या ये राजनयिक भ्रम है, या फिर राजनीतिक रणनीति का हिस्सा?
भारत को लेकर दो दिनों में दो झूठ
ट्रंप ने भारत से जुड़े दो बड़े और भ्रामक बयान दिए – एक व्यापार को लेकर और दूसरा भारत-पाकिस्तान के सीजफायर पर. सबसे पहले उन्होंने फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में दावा किया कि भारत ने अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ को पूरी तरह खत्म करने का प्रस्ताव दिया है. लेकिन भारत सरकार की ओर से ऐसी किसी पेशकश की पुष्टि नहीं की गई. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ कर दिया कि बातचीत अभी चल रही है और कोई भी निर्णय दोनों देशों के हित में होना चाहिए.
ट्रंप ने इंटरव्यू में इस “डील” को ऐतिहासिक जीत बताते हुए कहा कि अब उन्हें इस पर कोई जल्दी नहीं है. पहले तो दावा किया कि टैरिफ हटाए जाएंगे, फिर कहा कि समझौता अभी नहीं होगा. बयान के पहले हिस्से और दूसरे हिस्से में ही विरोधाभास था.
सीजफायर पर भी ट्रंप का दावा बेनकाब
दूसरा झूठ, जो और भी ज्यादा संवेदनशील था, वो भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर को लेकर था. ट्रंप ने 10 मई को सोशल मीडिया पर दावा किया कि “अमेरिका की मध्यस्थता के बाद भारत और पाकिस्तान पूर्ण युद्धविराम पर सहमत हुए हैं.” लेकिन ताजे बयान में उन्होंने कहा कि “मैं यह नहीं कहूंगा कि मैंने मध्यस्थता की, पर मैंने कुछ मदद की.”
कितना झूठ बोलते हैं ट्रंप?
राजनीति में वादे और दावे करना आम है, लेकिन ट्रंप ने इस कला को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया. वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने 30,573 बार झूठे या भ्रामक बयान दिए – यानी हर दिन औसतन 6 झूठ. यह आंकड़ा उनके अंतिम वर्ष में बढ़कर प्रतिदिन 39 तक पहुंच गया. ट्रंप के कुछ बयान तो इतने चौंकाने वाले रहे कि अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया ने सिर पकड़ लिया – जैसे 2020 का चुनाव "चोरी" हुआ था, या क्लोरीन पीने से कोरोना ठीक हो सकता है.
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