नई दिल्ली: देश के आम उपभोक्ताओं के लिए राहत की खबर है. जून 2025 में एक घरेलू वेजिटेरियन थाली की औसत कीमत 8% घटकर ₹27.10 हो गई है. पिछले साल जून 2024 में यही थाली ₹29.40 की पड़ती थी. यह जानकारी कैपिटल मार्केट रिसर्च फर्म क्रिसिल की हालिया फूड प्लेट कॉस्ट रिपोर्ट में सामने आई है.
क्रिसिल ने अपनी मासिक राइस रोटी रेट (RRR) रिपोर्ट में बताया कि हालांकि मई 2025 की तुलना में जून में वेज थाली की लागत 3% बढ़ी है, फिर भी सालाना स्तर पर यह उपभोक्ताओं के लिए किफायती हुई है. मई में यह कीमत ₹26.20 थी.
नॉन-वेज थाली भी हुई सस्ती, सालाना 6% गिरावट
नॉन-वेजिटेरियन थाली की लागत में भी गिरावट देखी गई है. जून में यह 6% कम होकर ₹54.80 पर आ गई, जो जून 2024 में ₹58.00 थी.
हालांकि महीने-दर-महीने तुलना करें तो जून में नॉन-वेज थाली की कीमत 4% बढ़ी है. मई में यह ₹52.60 थी.
सब्जियों के दाम गिरे, वेज थाली सस्ती हुई
रिपोर्ट के अनुसार, आलू, प्याज और टमाटर जैसे आम सब्जियों की कीमतों में गिरावट की वजह से वेज थाली की लागत में कमी आई है:
वेज थाली की लागत में सिर्फ आलू और टमाटर की हिस्सेदारी करीब 24% होती है, इसलिए इन सब्जियों की कीमतों में बदलाव सीधे लागत को प्रभावित करता है.
चिकन की कीमत कम, नॉन-वेज थाली सस्ती
नॉन-वेज थाली की लागत में सबसे ज्यादा योगदान ब्रॉयलर चिकन (करीब 50%) का होता है. जून में चिकन के दाम सालाना आधार पर 3% घटे, जिससे कुल थाली की कीमत में गिरावट दर्ज की गई.
क्यों नहीं हुई थाली और सस्ती?
हालांकि कुछ चीजें सस्ती हुईं, लेकिन खाद्य तेल और एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में बढ़ोतरी ने थाली को और सस्ता होने से रोका:
थाली की एवरेज कॉस्ट कैसे तय होती है?
क्रिसिल पूरे भारत – उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम – के विभिन्न हिस्सों की खाद्य सामग्री की औसत कीमतों को मिलाकर यह आंकलन करता है कि एक आम घर में तैयार की जाने वाली थाली की मासिक लागत कितनी आती है.
इस रिपोर्ट में उन जरूरी वस्तुओं की कीमतों पर नजर रखी जाती है जो रोज़मर्रा की थाली में शामिल होती हैं:
वेज थाली में: रोटी, चावल, दाल, प्याज, टमाटर, आलू, दही और सलाद.
नॉन-वेज थाली में: दाल की जगह चिकन को शामिल किया जाता है.
आम आदमी के लिए क्या मतलब?
खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव सीधे आम लोगों की जेब पर असर डालता है. सब्जियों और चिकन की कीमतों में आई हालिया गिरावट से जहां घर का बजट थोड़ा संतुलित हुआ है, वहीं खाद्य तेल और गैस की बढ़ती कीमतें फिर से खर्च बढ़ा सकती हैं.
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