'मेरा रेप नहीं हुआ', बयान से मुकर गई महिला; डायरेक्टर सनोज मिश्रा को दिल्ली हाई कोर्ट से मिली जमानत

    दिल्ली हाई कोर्ट ने फिल्म निर्देशक सनोज मिश्रा को बड़ी राहत देते हुए उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.

    Director Sanoj Mishra gets bail from Delhi High Court
    सनोज मिश्रा | Photo: Instagram

    दिल्ली हाई कोर्ट ने फिल्म निर्देशक सनोज मिश्रा को बड़ी राहत देते हुए उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. यह फैसला उस वक्त आया, जब एक महिला ने कोर्ट में शपथपत्र देकर यह स्वीकार किया कि उन्होंने सनोज मिश्रा के खिलाफ झूठे आरोप लगाए थे और वो दोनों आपसी सहमति से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे. महिला ने कहा कि उसने यह शिकायत सनोज के विरोधियों के बहकावे में आकर की थी.

    हाई कोर्ट ने गंभीरता से लिया मामला

    इस संवेदनशील मामले की सुनवाई के लिए जस्टिस गिरीश कथपालिया की अगुआई में स्पेशल बेंच का गठन किया गया. आमतौर पर दिल्ली हाई कोर्ट में फुल कोर्ट रेफरेंस के चलते ज्यूडिशियल कार्यवाही नहीं होती, लेकिन इस मामले की गंभीरता और आरोपी की निजी स्वतंत्रता के अधिकार को देखते हुए विशेष सुनवाई की गई.

    लगे थे गंभीर आरोप

    बता दें कि 30 मार्च को सनोज मिश्रा को IPC की धारा 376 (बलात्कार), 354C, 313, 323 और 506 के तहत गिरफ्तार किया गया था. शिकायतकर्ता महिला का आरोप था कि सनोज ने उन्हें फिल्म में काम देने का झांसा देकर शारीरिक शोषण किया और ब्लैकमेल भी किया, लेकिन शुरुआत से ही सनोज मिश्रा इन आरोपों को खारिज करते रहे और इसे आपसी सहमति का रिश्ता बताया.

    महिला ने कोर्ट में बदला बयान

    इस केस में बड़ा मोड़ तब आया जब महिला ने कोर्ट में यह माना कि उसने यह शिकायत सनोज के प्रतिद्वंदियों के उकसावे में आकर दर्ज कराई थी. महिला ने यह भी कहा कि वे दोनों आपसी सहमति से एक रिश्ते में थे और उस वक्त कोई दबाव या जबरदस्ती नहीं थी.

    सरकारी वकील ने भी माना झूठे थे आरोप

    सरकारी वकील द्वारा कोर्ट में पेश की गई स्टेटस रिपोर्ट में भी माना गया कि महिला के आरोपों में सच्चाई नहीं है और वह अपनी मर्जी से संबंध में थी. कोर्ट ने इसके बाद तुरंत सनोज मिश्रा को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.

    कोर्ट की अहम टिप्पणी

    फैसले के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मामला इस बात का उदाहरण है कि हाल के वर्षों में झूठी यौन उत्पीड़न की शिकायतों में इज़ाफा हुआ है. अदालत ने कहा, “हर झूठी शिकायत न केवल निर्दोष व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि पूरे समाज में अविश्वास का वातावरण पैदा करती है, जिससे वास्तविक पीड़ितों की आवाज भी दब जाती है. ऐसे मामलों से कठोरता से निपटना जरूरी है.”

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