पाकिस्तानी महिला से शादी करने वाला CRPF जवान बर्खास्त, छिपाई थी पत्नी की डिटेल्स, जानें पूरा मामला

    सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) ने अपनी 41वीं बटालियन के जवान मुनीर अहमद को सेवा से बर्खास्त कर दिया है. यह निर्णय उस समय लिया गया जब यह सामने आया कि उन्होंने एक पाकिस्तानी नागरिक से शादी की थी और उससे जुड़ी कई अहम जानकारियां सुरक्षा एजेंसियों से छिपाईं.

    CRPF jawan who married a Pakistani woman was dismissed, he had hidden his wife's details, know the whole matter
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    नई दिल्ली: सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) ने अपनी 41वीं बटालियन के जवान मुनीर अहमद को सेवा से बर्खास्त कर दिया है. यह निर्णय उस समय लिया गया जब यह सामने आया कि उन्होंने एक पाकिस्तानी नागरिक से शादी की थी और उससे जुड़ी कई अहम जानकारियां सुरक्षा एजेंसियों से छिपाईं.

    सियालकोट की महिला से की शादी

    मुनीर अहमद, जो जम्मू-कश्मीर के हंदवाल गांव के निवासी हैं, ने पाकिस्तान के सियालकोट की मीनल खान से मई 2024 में ऑनलाइन विवाह किया था. मीनल मार्च 2025 में शॉर्ट टर्म वीजा पर भारत आईं थीं और बाद में लॉन्ग टर्म वीजा के लिए आवेदन किया, जो फिलहाल गृह मंत्रालय के पास लंबित है.

    सीआरपीएफ के अनुसार, जवान ने न केवल अपनी पत्नी की नागरिकता की जानकारी उच्च अधिकारियों से छिपाई, बल्कि वीजा की वैधता समाप्त होने के बाद भी मीनल को भारत में रहने दिया. इस मामले को सेवा आचरण नियमों और राष्ट्रीय सुरक्षा के उल्लंघन के रूप में देखा गया.

    पहलगाम हमले के बाद सतर्कता बढ़ी

    यह मामला तब प्रकाश में आया जब 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने भारत में रह रहे सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा अस्थायी रूप से निलंबित कर दिए. मीनल खान को भी भारत छोड़ने का नोटिस मिला, जिसके बाद मुनीर अहमद ने जम्मू की भलवाल कोर्ट में याचिका दायर कर उनकी वापसी को रोकने का प्रयास किया.

    मानवीय अपील भी हुई सार्वजनिक

    मीडिया से बातचीत में मीनल ने खुद को और अपने पति को निर्दोष बताया. उनका कहना था, “हम आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हैं. मैंने समय पर वीजा विस्तार के लिए आवेदन दिया था और हमें बताया गया था कि मंजूरी जल्द मिल जाएगी. अब हमें अलग किया जा रहा है, यह अमानवीय है.”

    उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी न्याय की अपील की थी, यह कहते हुए कि निर्दोष लोगों को सजा देना आतंकवाद से लड़ने का समाधान नहीं है.

    सुरक्षा बनाम संवेदना

    यह मामला केवल कानून और व्यवस्था या सेवा नियमों का मुद्दा नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय पहलू भी शामिल है. जहां एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है, वहीं दूसरी ओर व्यक्तिगत जीवन और मानवीय अधिकारों की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती.

    सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण संतुलन है — कि वे एक ओर संवेदनशील मामलों को कठोरता से संभालें, तो दूसरी ओर उन लोगों को अलग करें जिनका असल में किसी अवैध गतिविधि से कोई संबंध नहीं है.

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