अरुणाचल प्रदेश के बीजेपी सांसद तापिर गाओ ने चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर एक विशाल बांध बनाने को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है कि इस बांध के निर्माण से न केवल उत्तर-पूर्व भारत, बल्कि भूटान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के लिए भी गंभीर खतरे उत्पन्न हो सकते हैं. गाओ ने यह भी कहा कि भारत इस मुद्दे पर कूटनीतिक रूप से चीन से निपटने की कोशिश कर रहा है, लेकिन स्थिति गंभीर है.
60,000 मेगावाट क्षमता वाले "ग्रेट बेंड डेम" का निर्माण शुरू
चीन द्वारा यारलुंग त्सांगपो नदी पर बनने वाले 60,000 मेगावाट क्षमता वाले "ग्रेट बेंड डेम" का निर्माण शुरू होने के बाद, तापिर गाओ ने इस परियोजना को लेकर एक तीखी चेतावनी दी है. उनका कहना है कि यह बांध अरुणाचल प्रदेश, असम और बांग्लादेश तक के क्षेत्रों में विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है. गाओ का कहना है कि इस बांध के कारण ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह बहुत कम हो सकता है, जिससे पानी की कमी, पारिस्थितिकीय असंतुलन और मानवीय संकट उत्पन्न हो सकते हैं.
गाओ ने साल 2000 की घटना को याद किया, जब चीन ने अचानक सियांग नदी में पानी छोड़ दिया था, जिससे बाढ़ आई और काफी नुकसान हुआ. उन्होंने उस समय कहा था कि "हमें इसे सिर्फ पानी या बिजली उत्पादन के दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए, यह एक जल बम है."
गाओ के अनुसार, चीन की जल मोड़ रणनीति के हिस्से के रूप में यह 9.5 किलोमीटर लंबा बांध पहले ही निर्माणाधीन है, जिसका उद्देश्य तिब्बत से पीली नदी की ओर पानी मोड़ना है. उनका कहना है कि यह परियोजना एक अत्यधिक भूकंपीय और पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है, जो लाखों लोगों के लिए खतरे का कारण बन सकती है.
चीन और भारत के बीच जल-साझाकरण का कोई समझौता नहीं
गाओ ने यह भी कहा कि चीन और भारत के बीच जल-साझाकरण का कोई समझौता नहीं है, जो भारत के लिए एक बड़ी समस्या है. उनका कहना है कि इससे चीन द्वारा किए गए एकतरफा निर्णयों को रोकना मुश्किल हो जाता है. यदि ब्रह्मपुत्र नदी सूख जाती है या अचानक बाढ़ आती है, तो इसका प्रभाव गंभीर हो सकता है, जैसे जल संकट और जलजीवों का विनाश.
सांसद ने भारतीय सरकार से अपील की है कि इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया जाए और चीन के साथ कूटनीतिक दबाव बढ़ाया जाए. गाओ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक प्रयासों पर विश्वास जताया, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इस मुद्दे पर कोई ठोस समझौता नहीं किया जाता, तो इसके परिणाम अत्यधिक गंभीर हो सकते हैं.
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