चीन की विशाल और विविध संस्कृति में कई ऐसी जनजातियां हैं जो आज भी अपनी पुरानी परंपराओं और जीवनशैली को संजोए हुए हैं. इन्हीं में से एक है डुलोंग जनजाति एक ऐसी रहस्यमयी और साहसी समुदाय, जो आधुनिकता से लगभग अछूता है. यह जनजाति चीन के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से युन्नान प्रांत के गोंगशान काउंटी में बसी हुई है और इसका जीवन, मान्यताएं और संस्कृति आज भी दुनिया के लिए एक आकर्षण का विषय बनी हुई हैं.
करीब 7,000 लोगों की यह जनजाति दुलोंग नदी के किनारे रहती है, जिनमें लगभग 3,000 महिलाएं शामिल हैं. ये लोग पहाड़ों, जंगलों और नदियों से घिरे उस इलाके में रहते हैं जहां आधुनिक जीवन की रफ्तार अब तक बहुत धीमी है. लेकिन उनकी परंपराएं खासतौर पर चेहरे पर टैटू बनवाना और पानी की जगह शराब पीना दुनिया को हैरान कर देती हैं.
शराब, जो इनके जीवन का जल है
डुलोंग जनजाति के लोगों के लिए शराब केवल एक पेय नहीं, बल्कि जीवन का अभिन्न हिस्सा है. कहा जाता है कि यहां के लोग पानी से ज्यादा शराब पीते हैं. उनका मानना है कि शराब शरीर में गर्मी, ताकत और स्फूर्ति बनाए रखती है. इस समुदाय की आधी से ज्यादा फसल शराब बनाने में खर्च हो जाती है. यह शराब उनके हर त्यौहार, हर अनुष्ठान और हर खुशी का हिस्सा होती है.
शादी-ब्याह के मौके पर तो यह परंपरा और भी खास हो जाती है. दुल्हन और दूल्हा दोनों हर मेहमान के साथ शराब पीते हैं और जब तक समारोह खत्म होता है, पूरा माहौल नशे में झूम उठता है. कहा जाता है कि डुलोंग जनजाति में बच्चे भी हल्की शराब का स्वाद लेते हैं, क्योंकि यहां इसे नशा नहीं, बल्कि मित्रता और अपनत्व का प्रतीक माना जाता है.
चेहरे पर टैटू: सौंदर्य नहीं, साहस की निशानी
डुलोंग महिलाओं की सबसे प्रसिद्ध परंपरा है. चेहरे पर टैटू बनवाना. यह परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी इस जनजाति की पहचान मानी जाती है. जैसे ही कोई लड़की 12 या 13 वर्ष की होती है, उसके चेहरे पर विशेष पैटर्न वाला टैटू बनाया जाता है.यह प्रक्रिया बेहद दर्दनाक होती है. कांटेदार सुई से राख या पौधों के रस को चेहरे की त्वचा में चुभोया जाता है, जिससे नीले-काले रंग के पैटर्न बनते हैं. कई दिनों तक चेहरा सूजा रहता है और दर्द असहनीय होता है. नदी के ऊपरी इलाके की महिलाएं पूरा चेहरा टैटू से ढकती हैं, जबकि नीचे के क्षेत्र की महिलाएं सिर्फ ठोड़ी पर निशान बनवाती हैं.
टैटू का रहस्य: सुरक्षा या परंपरा?
इन टैटू के पीछे कई मान्यताएं जुड़ी हैं. एक मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में आस-पास के इलाकों में महिलाओं के अपहरण की घटनाएं होती थीं. इसलिए महिलाएं खुद को कम आकर्षक दिखाने के लिए चेहरे पर टैटू बनवाती थीं, ताकि कोई उन्हें उठा न ले जाए. वहीं दूसरी मान्यता के मुताबिक, यह टैटू युवावस्था और विवाह की पात्रता का प्रतीक था. एक लड़की का टैटू बनवाना यह दर्शाता था कि अब वह वयस्क हो गई है और विवाह योग्य है. 1950 के दशक में चीनी सरकार ने इस परंपरा को मानवाधिकारों के उल्लंघन और स्वास्थ्य जोखिमों के कारण प्रतिबंधित कर दिया. आज मुश्किल से 20 महिलाएं बची हैं, जिनके चेहरे पर ये ऐतिहासिक टैटू मौजूद हैं और वे सभी 75 वर्ष से अधिक आयु की हैं.
परंपराएं जो खत्म होकर भी जिंदा हैं
डुलोंग जनजाति अब धीरे-धीरे आधुनिक दुनिया की ओर बढ़ रही है, लेकिन उनकी पुरानी परंपराएं अभी भी कहानियों और स्मृतियों के रूप में जीवित हैं. इनकी संस्कृति हमें यह सिखाती है कि पहचान और गर्व केवल बाहरी सभ्यता से नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़ाव से आता है. चेहरे पर बना हर टैटू, शराब का हर घूंट और जंगलों के बीच गूंजता हर गीत, इन सबमें एक संदेश छिपा है कि संस्कृति समय से बड़ी होती है.
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