अमेरिका और भारत के बीच चल रही टैरिफ जंग अब और तीखी हो गई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को भारत पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने की घोषणा कर दी, जिससे वैश्विक राजनीति में हलचल मच गई है. यह फैसला उस समय आया है जब भारत और रूस के बीच ऊर्जा सहयोग को लेकर रिश्ते मजबूत हो रहे हैं, और चीन भी इस मामले में भारत के समर्थन में खुलकर सामने आ गया है.
बीजिंग में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि चीन हमेशा से टैरिफ के दुरुपयोग का विरोध करता आया है और इस पर उसका रुख स्पष्ट है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत की संप्रभुता से किसी भी तरह का समझौता स्वीकार नहीं किया जा सकता. चीन का यह बयान न केवल अमेरिका के खिलाफ एक कड़ा संदेश है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वाशिंगटन की नीतियों ने एशिया की बड़ी ताकतों को एक-दूसरे के करीब ला दिया है.
ट्रंप की दलील और नया टैरिफ शेड्यूल
व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि भारत रूस से तेल आयात मामले में चीन के बेहद करीब पहुंच गया है. इसी वजह से भारत पर पहले लगाए गए 25 प्रतिशत टैरिफ को दोगुना किया गया है. नया 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क 27 अगस्त से लागू होगा, जबकि पहला चरण 7 अगस्त से पहले ही प्रभावी हो चुका है.
भारत की प्रतिक्रिया – "दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय"
भारत के विदेश मंत्रालय ने इस कदम को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया. मंत्रालय के बयान में कहा गया कि भारत का आयात पूरी तरह बाजार परिस्थितियों और ऊर्जा सुरक्षा की जरूरतों पर आधारित है, जिसका उद्देश्य 1.4 अरब भारतीय नागरिकों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना है.
वैश्विक टैरिफ तुलना – भारत पर सबसे ज्यादा दबाव
ट्रंप प्रशासन की "लिबरेशन डे" नीति के तहत अमेरिका ने अब तक करीब 95 देशों पर टैरिफ लगाए हैं. तुलना करें तो भारत पर 50 प्रतिशत का शुल्क सबसे अधिक है, जबकि वियतनाम पर 20 प्रतिशत, जापान पर 15 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया पर भी 15 प्रतिशत शुल्क लगाया गया है. यह अंतर स्पष्ट करता है कि भारत-अमेरिका तनाव किस स्तर पर पहुंच चुका है और वाशिंगटन को भारत की नीतियों से कितनी असहजता है.
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