चीन ने भारतीय सेना से लद्दाख में लड़ने के लिए बनाई नई रणनीति, इन टैंकों को करेगा तैनात, जानें प्लान

    हिमालय की दुर्गम चोटियों और कड़े मौसम वाले इलाकों में सैन्य संतुलन बनाए रखने की होड़ में चीन ने एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बदलाव किया है.

    China made a strategy to fight the Indian Army in Ladakh
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ Sociel Media

    बीजिंग: हिमालय की दुर्गम चोटियों और कड़े मौसम वाले इलाकों में सैन्य संतुलन बनाए रखने की होड़ में चीन ने एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बदलाव किया है. ताजा संकेत मिल रहे हैं कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) अब भारी टैंकों की जगह हल्के और ज्यादा मोबाइल टैंकों को प्राथमिकता दे रही है विशेषकर लद्दाख जैसे संवेदनशील और ऊंचाई वाले सीमाई क्षेत्रों में.

    बीजिंग में 3 सितंबर को आयोजित सैन्य परेड में नए प्रकार के टैंकों को प्रदर्शित किया गया, जिसमें टाइप-100 जैसे मध्यम श्रेणी के टैंक पहली बार सामने आए. यह परेड सिर्फ सैन्य ताकत का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि इसने चीन की सैन्य नीति में हो रहे एक गहरे परिवर्तन का इशारा भी दिया.

    भारी टैंक से मोहभंग, हल्के टैंकों पर भरोसा

    लंबे समय तक PLA के रक्षा सिद्धांत में भारी युद्धक टैंक (Main Battle Tanks - MBT) को प्राथमिकता दी जाती रही है, जैसे कि टाइप 99A2. लेकिन लद्दाख जैसे इलाकों में, जहां ऊंचाई 15,000 फीट से ज्यादा होती है, ऐसे भारी टैंक न केवल धीमे साबित होते हैं, बल्कि उनके इंजन भी ऑक्सीजन की कमी और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण सही से काम नहीं कर पाते.

    इसके मुकाबले, हल्के और मध्यम श्रेणी के टैंक जैसे टाइप-15 और अब टाइप-100, पहाड़ी इलाकों में अधिक गति, लचीलापन और टिकाऊपन प्रदान करते हैं. इनका वजन कम होने से उन्हें हेलीकॉप्टर या ट्रकों से परिवहन करना भी अपेक्षाकृत आसान है. यही वजह है कि चीन अब इन टैंकों को लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश जैसे भारतीय सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात करने की दिशा में बढ़ रहा है.

    सैन्य विश्लेषकों की राय: बदलती प्राथमिकताएं

    बख्तरबंद युद्ध विशेषज्ञ सेरही बेरेज़ुत्स्की के अनुसार, "चीन अब रूस को अपना संभावित दुश्मन नहीं मानता, जिसके लिए भारी टैंक तैयार किए गए थे. अब उसकी प्राथमिक चिंता भारत है- विशेषकर हिमालयी मोर्चे पर. ऐसे इलाकों के लिए भारी टैंक व्यावहारिक नहीं हैं. हल्के टैंक, जो ऊंचाई पर बेहतर प्रदर्शन कर सकें, PLA की जरूरत बन गए हैं."

    उन्होंने यह भी कहा कि लद्दाख जैसे ऊंचे क्षेत्रों में, टाइप-99A2 जैसे MBT अपनी अधिकतम क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते. वहीं, टाइप-15 और टाइप-100 जैसे हल्के टैंक, कम ऑक्सीजन में भी बेहतर प्रदर्शन करते हैं, और अधिक गति व युद्ध कुशलता बनाए रखते हैं.

    लद्दाख और अरुणाचल जैसे मोर्चों पर असर?

    भारत के लिए यह रणनीतिक बदलाव सीधी चुनौती बन सकता है. लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पारंपरिक टैंक युद्ध की बजाय, अब मोबाइल, फुर्तीले और छोटे हथियार प्रणालियों की आवश्यकता बढ़ती जा रही है.

    अगर भविष्य में सीमा पर तनाव बढ़ता है, तो चीन अब अपने भारी टैंकों की बजाय छोटे, तेजी से मूव करने वाले यूनिट्स के जरिए ऑपरेशन करेगा. इससे भारतीय सेना को नई रणनीति और हथियार प्रणालियों को अपनाना पड़ सकता है, जो ऐसे तेजी से बदलते परिदृश्य के लिए उपयुक्त हों.

    सिर्फ हिमालय ही नहीं, समुद्री मोर्चे भी टारगेट

    चीन की यह रणनीति सिर्फ भारत के खिलाफ नहीं है. ताइवान स्ट्रेट जैसे समुद्री क्षेत्रों में भी, मध्यम टैंक तेजी से लैंडिंग ऑपरेशनों में इस्तेमाल हो सकते हैं. टाइप-100 जैसे टैंक आसानी से जहाजों से उतारे जा सकते हैं और समुद्रतट से भीतर तक तेजी से बढ़ सकते हैं, जिससे समुद्री हमलों की क्षमता भी बढ़ती है.

    इससे यह स्पष्ट होता है कि PLA अब अपने हल्के टैंकों को “डुअल थियेटर” हथियार के रूप में विकसित कर रही है यानी एक ही प्लेटफॉर्म को पहाड़ों और समुद्री क्षेत्रों दोनों में इस्तेमाल किया जा सके.

    भारत के लिए रणनीतिक संदेश क्या है?

    चीन का यह नया सैन्य दृष्टिकोण भारत के लिए एक साफ संकेत है कि उसे अब अपने पारंपरिक टैंक युद्ध मॉडल से आगे बढ़कर, उन्नत मोबाइल युद्धक रणनीतियों की ओर सोचना होगा.

    भारतीय सेना के पास भी T-90, T-72 और अर्जुन टैंक हैं, लेकिन लद्दाख जैसे इलाकों में इन भारी टैंकों का संचालन चुनौतीपूर्ण होता है. भारत ने हाल के वर्षों में K-9 वज्र जैसी सेल्फ प्रोपेल्ड गन को ऊंचे इलाकों में तैनात कर अपनी स्थिति को बेहतर किया है, लेकिन चीन के नए हल्के टैंकों के जवाब में उसे और अधिक लाइट टैंक या ऑल-टेरेन कॉम्बैट व्हीकल्स की आवश्यकता हो सकती है.

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