बीते कुछ महीनों में चीन और पाकिस्तान की वायु शक्ति जिस रफ्तार से बढ़ी है, उसने भारतीय रक्षा हलकों में चिंता की लहर दौड़ा दी है. भारत भले ही अपने पुराने मिग-21 को धीरे-धीरे रिटायर कर रहा हो, लेकिन आधुनिक लड़ाकू विमानों की संख्या में भारी कमी के चलते वायु सेना की ताकत कमजोर होती नजर आ रही है. उधर, चीन और पाकिस्तान मिलकर न केवल नई तकनीकें विकसित कर रहे हैं, बल्कि एक साझा रणनीति के तहत भारत की सीमाओं पर दबाव भी बना रहे हैं.
चीन ने बीते 15 वर्षों में लड़ाकू विमान तकनीक में जबरदस्त प्रगति की है. उसके पास पहले से ही अत्याधुनिक चेंगदू J-20 जैसे फिफ्थ जेनरेशन स्टेल्थ जेट हैं. अब वह J-35A नामक नए स्टील्थ फाइटर को भी अपनी वायुसेना में शामिल करने की तैयारी में है. इसके अलावा चीन छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान और मानव रहित उन्नत एयरक्राफ्ट पर भी तेज़ी से काम कर रहा है.
पाकिस्तान को भी मिल रहे हाईटेक जेट
चीन सिर्फ खुद की ताकत नहीं बढ़ा रहा, बल्कि वह पाकिस्तान को भी बराबर की हिस्सेदारी दे रहा है. जून में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने साफ किया था कि पाकिस्तान को 40 J-35A लड़ाकू विमान मिलने वाले हैं. इसके अलावा J-10C जैसे विमान पहले ही पाकिस्तानी वायुसेना का हिस्सा बन चुके हैं, जो लंबी दूरी की मिसाइलों से लैस हैं. यह चीन-पाक की एक गहरी रणनीतिक साझेदारी का संकेत है.
भारत की स्थिति: रणनीति तो है, संसाधन नहीं
भारत को 42 स्क्वाड्रन की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में उसके पास केवल 29 स्क्वाड्रन ही हैं, और वह भी धीरे-धीरे घटते जा रहे हैं. मिग-21 जैसे पुराने विमान सेवा से बाहर हो रहे हैं, लेकिन उनकी जगह लेने वाले आधुनिक विमान पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. पिछले 10 वर्षों में सिर्फ 36 राफेल जेट ही भारतीय वायुसेना में शामिल हो पाए हैं.
अधर में अमेरिकी और रूसी विकल्प भी
जहां अमेरिका भारत को F-35 स्टेल्थ फाइटर देने की इच्छा जता चुका है, वहीं भारत ने इस प्रस्ताव पर ठोस कदम नहीं उठाया. दूसरी ओर, रूसी Su-57 जैसे विकल्पों पर भी भारत ने अब तक कोई निर्णायक निर्णय नहीं लिया है. इससे भारत के लिए आने वाले वर्षों में लड़ाकू क्षमता बढ़ा पाना और कठिन होता दिख रहा है.
एक्सपर्ट की चेतावनी: चूक का समय नहीं
रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को अपनी वायु शक्ति के आधुनिकीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी. चीन और पाकिस्तान ने जिस रफ्तार से तकनीकी और सामरिक बढ़त हासिल की है, उसके मुकाबले भारत की गति धीमी है. यदि यही रुख जारी रहा, तो भविष्य में भारत को रणनीतिक मोर्चों पर भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
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