जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का राष्ट्रपति किसी संगठन से बेचैन हो जाए, तो बात सिर्फ राजनीति की नहीं होती, मामला कहीं गहरे तक जड़ें जमाए बैठा होता है. आज वही स्थिति देखने को मिल रही है अमेरिका और BRICS के बीच. डोनाल्ड ट्रंप का डर और उनका तीखा रुख एक नई आर्थिक सच्चाई का संकेत दे रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे डॉलर की एकछत्र सत्ता अब खतरे में है और उसका मुकाबला करने के लिए R-ब्लॉक धीरे-धीरे तैयार हो रहा है.
ट्रंप और उनके प्रशासन ने BRICS देशों पर खुलेआम सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. उनके वाणिज्य मंत्री ने तो भारत से साफ शब्दों में BRICS से दूरी बनाने की सलाह दे दी है. लेकिन यह चिंता केवल एक संगठन की सदस्यता को लेकर नहीं है, बल्कि यह डर वैश्विक वित्तीय सत्ता को लेकर है. BRICS एक ऐसा मंच बन चुका है जो केवल राजनीतिक गठबंधन नहीं, बल्कि डॉलर-केंद्रित वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देने वाला आर्थिक ब्लॉक बनता जा रहा है.
R-ब्लॉक का उभार: स्थानीय करेंसी बनाम डॉलर
आज BRICS का फोकस केवल सहयोग नहीं, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता पर है. BRICS देश अब आपस में व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर की जगह स्थानीय मुद्राओं जैसे रूसी रूबल, भारतीय रुपया, चीनी रेनमिनबी, ब्राजीलियन रियल और दक्षिण अफ्रीकी रैंड का उपयोग बढ़ा रहे हैं. इस विचार से जन्म हुआ है R-ब्लॉक का, एक ऐसा समूह जिसकी करेंसी 'R' अक्षर से शुरू होती है.
इस ब्लॉक का मकसद है अमेरिकी डॉलर की मुद्रा राजनीति से छुटकारा पाना. ये देश व्यापार और ऊर्जा लेन-देन को अपनी मुद्रा में करना चाहते हैं ताकि डॉलर के दबाव से मुक्त हो सकें. यह एक छोटी शुरुआत है, लेकिन इसके दूरगामी असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
क्या वाकई टूट सकता है डॉलर का वर्चस्व?
यह सवाल आज हर अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्री के दिमाग में है कि क्या BRICS सचमुच अमेरिकी डॉलर को हटा सकता है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसा रातों-रात तो नहीं होगा, क्योंकि आज भी डॉलर लगभग 90% विदेशी मुद्रा लेन-देन और 85% डेरिवेटिव कारोबार में शामिल है. यह एक विश्वसनीय और संस्थागत ढांचे के कारण संभव हुआ है, जिसे कोई भी नया विकल्प इतनी जल्दी नहीं बना सकता.
लेकिन वहीं यह भी सच है कि दुनिया अब एकाधिकार के खिलाफ खड़ी हो रही है. BRICS की रणनीति इस दिशा में पहला मजबूत कदम है. यह डॉलर को गिराने से ज़्यादा एक बहुध्रुवीय मुद्रा व्यवस्था को जन्म देने की कोशिश है जहां एक से ज़्यादा करेंसियों को समान दर्जा मिले.
ट्रंप की टैरिफ नीति के खिलाफ आर्थिक हथियार
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति कई देशों के लिए सिरदर्द बन चुकी है. वह अपने विरोधियों पर आर्थिक दबाव डालने के लिए आयात शुल्क जैसे हथियारों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन BRICS की यह नई मुद्रा रणनीति उस दबाव को तोड़ सकती है.
जब लेनदेन डॉलर के बजाय स्थानीय मुद्रा में होगा, तो ट्रंप जैसे नेताओं की टैरिफ रणनीति का असर भी सीमित हो जाएगा. यही कारण है कि अमेरिकी नेतृत्व को यह कोशिश खतरे की घंटी जैसी लग रही है.
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