इस्लामाबाद: पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में हाल के दिनों में सशस्त्र विद्रोही गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है. सप्ताहांत में हुए हमलों में दो प्रमुख विद्रोही संगठनों- बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और बलूच लिबरेशन फ्रंट (BLF) ने कई सैन्य और प्रशासनिक ठिकानों को निशाना बनाया, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता और बढ़ गई है.
क्वेटा-कराची हाईवे पर BLA का कब्जा
शनिवार शाम को BLA के हथियारबंद सदस्यों ने क्वेटा-कराची हाईवे पर अस्थायी रूप से नियंत्रण स्थापित कर लिया, जिससे दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान में यातायात प्रभावित हुआ. स्वतंत्र समाचार स्रोत द बलूचिस्तान पोस्ट के अनुसार, इस समूह ने लेवी पुलिस स्टेशन पर धावा बोला, इमारत पर कब्जा कर उसे क्षतिग्रस्त कर दिया और हथियारों को भी जब्त कर लिया. रिपोर्टों के अनुसार, पुलिस अधिकारियों को बंधक बनाए जाने और वाहनों को आग लगाने की घटनाएं सामने आईं.
सोराब में प्रशासनिक ठिकानों पर हमला
BLA के प्रवक्ता जियंद बलूच के मुताबिक, संगठन के लड़ाकों ने बलूचिस्तान के सोराब शहर पर हमला कर कई प्रमुख प्रशासनिक भवनों जैसे पुलिस स्टेशन, उपायुक्त कार्यालय, बैंकों और अतिथि गृहों पर नियंत्रण स्थापित किया. स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था इस हमले के बाद ठप हो गई, और क्षेत्र में दहशत का माहौल बन गया है.
BLF ने खुजदार और खारन की जिम्मेदारी ली
दूसरे विद्रोही संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) ने भी शनिवार को बलूचिस्तान में दो अलग-अलग हमलों की जिम्मेदारी ली. संगठन के प्रवक्ता मेजर गौरम बलूच ने बताया कि खुजदार के नाल क्षेत्र में ‘अमन फोर्स’ के दो अधिकारियों पर हमला किया गया, जिसमें दोनों की मृत्यु हो गई.
इसके साथ ही BLF ने खारन शहर में भी हमले का दावा किया है. संगठन की ओर से जारी बयान में उन सभी समूहों को चेतावनी दी गई है जो राज्य की सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा हैं, कि वे ‘सैन्य लक्ष्य’ माने जाएंगे.
गैस आपूर्ति पर भी असर: पाइपलाइन पर हमला
इसी दिन डेरा मुराद जमाली और सुई क्षेत्रों में गैस पाइपलाइन पर हमला किया गया. हालांकि उस समय पाइपलाइन में गैस आपूर्ति बंद थी, फिर भी यह घटना राष्ट्रीय ऊर्जा अवसंरचना की सुरक्षा पर सवाल खड़े करती है. फिलहाल किसी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन अतीत में इस प्रकार की घटनाओं में बलूच विद्रोही गुटों की भूमिका रही है.
पृष्ठभूमि: पुराना संघर्ष, नई रणनीतियाँ
बलूचिस्तान में लंबे समय से चल रहे असंतोष और सशस्त्र संघर्ष की जड़ें प्राकृतिक संसाधनों के वितरण, राजनीतिक स्वायत्तता और मानवाधिकारों से जुड़ी शिकायतों में निहित हैं. हालांकि पाकिस्तान सरकार समय-समय पर विद्रोही गतिविधियों को कुचलने के लिए सैन्य अभियान चलाती रही है, परंतु हालिया घटनाएं यह संकेत देती हैं कि संघर्ष अब और अधिक संगठित और क्षेत्रीय रूप से समन्वित रूप ले रहा है.
विशेषज्ञों के अनुसार, इन संगठनों की कार्यप्रणाली अब केवल पारंपरिक विद्रोह तक सीमित नहीं रही, बल्कि प्रतीकात्मक और रणनीतिक ठिकानों को निशाना बनाकर सरकार की वैधता को चुनौती देने की कोशिश हो रही है.
शांति प्रक्रिया की संभावनाएं धुंधली
बलूचिस्तान में स्थायित्व की दिशा में पाकिस्तान सरकार ने पूर्व में विकास परियोजनाएं और राजनीतिक वार्ताएं शुरू की थीं, लेकिन इन प्रयासों को अब तक अपेक्षित सफलता नहीं मिली. क्षेत्र में हालिया हमलों से स्पष्ट है कि सशस्त्र गुटों और राज्य के बीच विश्वास की खाई अभी भी व्यापक है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बलूचिस्तान की समस्या का समाधान केवल सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि समावेशी संवाद, आर्थिक न्याय और अधिकारों की बहाली के माध्यम से ही संभव है.
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