Tej Pratap Yadav News: बिहार विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित होने के बाद तेज प्रताप यादव की पार्टी जनशक्ति जनता दल (JJD) अब नए राजनीतिक समीकरण की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है. रविवार को तेज प्रताप के आवास पर हुई समीक्षा बैठक में हार के कारणों पर चर्चा की गई और उम्मीदवारों ने अपने-अपने अनुभव साझा किए. बैठक के बाद जेजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम यादव ने बड़ा बयान दिया, “जनशक्ति जनता दल ने एनडीए को नैतिक समर्थन देने का फैसला किया है.”
बैठक के दौरान माहौल राजनीतिक से ज़्यादा भावनात्मक रहा. प्रवक्ता प्रेम यादव ने कहा कि रोहिणी आचार्य के साथ जो भी हुआ, उसका जवाब जरूर दिया जाएगा. उन्होंने आरोप लगाया कि आरजेडी अब संजय यादव की पार्टी बन गई है. यह तेजस्वी की भी नहीं रही. लालू यादव की असली नई पार्टी अब जनशक्ति जनता दल है.
आरजेडी से निष्कासन के बाद बनाई नई पार्टी
तेज प्रताप को जब आरजेडी से बाहर कर दिया गया था, तब उन्होंने अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल बनाई. उन्होंने अपने पुराने क्षेत्र महुआ से ही चुनाव लड़ने का फैसला किया, यही वह सीट है, जहां से वह 2015 में पहली बार विधायक बने थे.
बहन रोहिणी के अपमान पर तेज प्रताप का फूटा गुस्सा
परिवारिक विवाद के बाद तेज प्रताप खुलकर अपनी बहन रोहिणी आचार्य के समर्थन में सामने आए. उन्होंने कहा, “मेरे साथ जो हुआ उसे मैं सह गया, लेकिन मेरी बहन का अपमान किसी भी हालत में सहन नहीं होगा. कुछ लोग ‘जयचंद’ बनकर परिवार पर वार कर रहे हैं. बिहार की जनता इन्हें कभी माफ़ नहीं करेगी.” तेज प्रताप ने यह भी कहा कि उनके पिता लालू यादव बस एक संकेत दें, और बिहार की जनता इन जयचंदों को सबक सिखा देगी.
सभी 22 उम्मीदवारों की जमानत जब्त
जेजेडी का चुनावी प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा. पार्टी ने 22 उम्मीदवार उतारे. सभी की जमानत जब्त हो गई. खुद तेज प्रताप भी हार गए महुआ सीट पर तेज प्रताप को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा. उन्हें केवल 35,703 वोट मिले. जबकि विजेता एलजेपी (रामविलास) के संजय कुमार सिंह ने 87,641 वोट हासिल किए और 51,938 वोटों की बड़ी बढ़त से जीत दर्ज की. RJD उम्मीदवार मुकेश कुमार रौशन 42,644 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे.
महुआ सीट फिर चर्चा में, लेकिन तेज प्रताप नहीं कर सके वापसी
महुआ विधानसभा सीट एक समय तेज प्रताप की पहचान हुआ करती थी. 2015 में इसी सीट से उन्होंने राजनीति की शुरुआत की थी. लेकिन इस चुनाव में एंटी-इनकंबेंसी, परिवारिक विवाद और कमजोर संगठन के चलते तेज प्रताप अपना जनाधार बचाने में असफल रहे.
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