Bihar Election Results 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के रुझान जैसे-जैसे सामने आ रहे हैं, यह स्पष्ट हो गया है कि एनडीए को ऐतिहासिक जनादेश मिल रहा है, जबकि महागठबंधन चुनावी मैदान में बहुत बुरी तरह हार रहा है. महागठबंधन, जो कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर मैदान में उतरा था, इस बार अपनी उम्मीदों को धराशायी होते देख रहा है. महागठबंधन ने कुछ महत्वपूर्ण रणनीतिक गलतियां कीं, जिनका असर चुनावी परिणामों पर सीधे तौर पर पड़ा. इन गलतियों की वजह से उन्हें अपनी वापसी का सपना तोड़ते हुए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ सकता है. यह समझना जरूरी है कि वह आखिर कहां चूके और क्या कारण रहे जिनकी वजह से उनका नुकसान हुआ.
कांग्रेस का “वोट चोरी” का मुद्दा
कांग्रेस ने बिहार चुनाव में वोट चोरी को एक बड़ा मुद्दा बना दिया था. राहुल गांधी ने पहले चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में एनडीए पर वोट चोरी का आरोप लगाया. इसके बाद दरभंगा में कांग्रेस ने “वोट यात्रा” निकाली, जिसमें मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की गई. यह विवाद जब बढ़ा तो भाजपा ने कांग्रेस से माफी की मांग की, जिससे कांग्रेस और महागठबंधन को भारी नुकसान हुआ. इस घटनाक्रम ने न सिर्फ कांग्रेस की छवि को नुकसान पहुंचाया, बल्कि पूरे महागठबंधन की रणनीति को कमजोर कर दिया.
वोटर लिस्ट संशोधन (SIR) पर बेअसर विवाद
महागठबंधन ने बिहार में वोटर लिस्ट में संशोधन (SIR) को एक चुनावी मुद्दा बना दिया था. लेकिन, यह मामला कोर्ट में जाने के बाद धीरे-धीरे ठंडा पड़ गया और जनता इसे गंभीरता से नहीं ले पाई. इस मुद्दे पर इतना शोर मचाया गया, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसे “महागठबंधन को हराने की साजिश” करार दिया, लेकिन यह रणनीति भी नाकाम रही और जनता में इसका कोई खास असर नहीं पड़ा.
अवास्तविक वादे और अधिक आश्वासन
महागठबंधन के नेताओं ने बिहार के चुनावी प्रचार में कई अवास्तविक और अतिशयोक्तिपूर्ण वादे किए. तेजस्वी यादव ने हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने, जीविका दीदी को 3,000 रुपये की जगह 10,000 रुपये देने जैसे वादे किए, जो किसी भी हकीकत में पूरे करना असंभव था. इन वादों को जनता ने अविश्वसनीय माना, और इसके बजाय एनडीए की स्थिर और भरोसेमंद योजनाओं को प्राथमिकता दी. महागठबंधन की ओर से किए गए ये वादे उस विश्वास को खड़ा नहीं कर पाए, जिसकी जनता को सख्त जरूरत थी.
नकारात्मक चुनावी प्रचार की रणनीति
महागठबंधन ने एनडीए के खिलाफ नकारात्मक प्रचार अभियान चलाया, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को "भ्रष्टाचार का भीष्म पितामह" तक कह दिया गया. हालांकि, इस तरह की नकारात्मक राजनीति ने महागठबंधन के पक्ष में काम नहीं किया, बल्कि जनता ने इसे अत्यधिक नकारात्मक दृष्टिकोण माना. बिहार में नीतीश कुमार दो दशकों से सत्ता में स्थिर चेहरा रहे हैं, और ऐसे में चुनावी अभियान के दौरान इस तरह की नकारात्मक राजनीति ने महागठबंधन को नुकसान ही पहुंचाया.
तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरा बनाना
महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, लेकिन इसका असर उल्टा पड़ा. दरअसल, तेजस्वी यादव की छवि पर लालू यादव के "जंगल राज" का पुराना बोझ भारी पड़ा. एनडीए ने बार-बार इस दौर को जनता के सामने रखा, जिससे महागठबंधन के लिए यह स्थिति और कठिन हो गई. लोग तेजस्वी यादव को चुनावी विकल्प के रूप में देख ही नहीं पाए और एनडीए को सुरक्षित और स्थिर विकल्प माना. इसके परिणामस्वरूप, महागठबंधन अपनी सारी ताकत के बावजूद इस चुनाव में पिछड़ गया.
ये भी पढ़ें: मोकामा में कायम है 'छोटे सरकार' का जलवा! जेल से चुनाव जीते अनंत सिंह, सूरजभान सिंह की पत्नी को हराया