चले थे पाकिस्तान का साथ देने और चले ही गए! भारत से पंगा लेने की कीमत चुका रहे यूनुस

    बांग्लादेश एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में फंसता नजर आ रहा है. नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर संकट गहराता जा रहा है. सियासी दबाव, अल्पसंख्यकों पर हिंसा और सेना की चेतावनी के चलते यूनुस के इस्तीफे की अटकलें तेज हो गई हैं.

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    Image Source: Bharat 24

    बांग्लादेश एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में फंसता नजर आ रहा है. नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर संकट गहराता जा रहा है. सियासी दबाव, अल्पसंख्यकों पर हिंसा और सेना की चेतावनी के चलते यूनुस के इस्तीफे की अटकलें तेज हो गई हैं. देश में चुनाव की मांग ने माहौल को और भी तनावपूर्ण बना दिया है.

    सेना की सीधी चेतावनी

    बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकर-उज-जमान ने मोहम्मद यूनुस को स्पष्ट संदेश दिया है कि देश में दिसंबर 2025 तक चुनाव कराना अनिवार्य है. उन्होंने यह भी कहा कि सेना किसी भी ऐसी गतिविधि का हिस्सा नहीं बनेगी जो देश की संप्रभुता को नुकसान पहुंचाए. सेना की यह प्रतिक्रिया साफ संकेत है कि यूनुस सरकार को अब जनता और सैन्य ताकत दोनों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है.

    यूनुस के इस्तीफे की अटकलें

    नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के नेता निद इस्लाम ने बीबीसी बांग्ला को बताया कि यूनुस इस्तीफे पर विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब तक राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति नहीं बनती, तब तक वे काम नहीं कर सकते. एनसीपी का मानना है कि अगर यूनुस अपना दायित्व नहीं निभा पा रहे हैं, तो उनका पद पर बने रहना निरर्थक है.

    भारत और अमेरिका की भूमिका

    यह घटनाक्रम ऐसे समय में हो रहा है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात को तीन महीने हो चुके हैं. इस बैठक में मोदी ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा पर चिंता जताई थी. ट्रंप ने साफ कर दिया था कि अमेरिका इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा और इसे पूरी तरह भारत के भरोसे छोड़ दिया गया है.

    हसीना की विदाई और यूनुस का उदय

    पिछले साल अगस्त में छात्रों के आंदोलन के चलते प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी और वे भारत भाग आईं. इस हिंसक विरोध में 600 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. इसके बाद मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ, लेकिन तब से देश में हालात सुधरने के बजाय बिगड़ते ही जा रहे हैं.

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