दिल्ली में बैठी शेख हसीना, बांग्लादेश को कर रहीं कंट्रोल? 14 से 17 नवंबर तक बंद की घोषणा; यूनुस के इस्तीफे की मांग

    Bangladesh: बांग्लादेश इस समय गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है. सत्ता परिवर्तन के बाद बने अंतरिम शासन पर अब विपक्ष ही नहीं, बल्कि संवैधानिक विशेषज्ञ भी सवाल उठा रहे हैं. तख्तापलट के बाद अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस पर अब इस्तीफे का दबाव बढ़ चुका है.

    Bangladesh Awami League Seeks Resignation announce
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    Bangladesh: बांग्लादेश इस समय गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है. सत्ता परिवर्तन के बाद बने अंतरिम शासन पर अब विपक्ष ही नहीं, बल्कि संवैधानिक विशेषज्ञ भी सवाल उठा रहे हैं. तख्तापलट के बाद अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस पर अब इस्तीफे का दबाव बढ़ चुका है. पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने उनके खिलाफ व्यापक प्रदर्शन की घोषणा कर दी है.


    अवामी लीग ने साफ कहा है कि अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे मुहम्मद यूनुस अब जनता का विश्वास नहीं रखते, इसलिए उन्हें पद छोड़ देना चाहिए.इसी के तहत पार्टी ने 14 से 17 नवंबर तक राष्ट्रव्यापी हड़ताल और विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का ऐलान किया है. इन प्रदर्शनों का मकसद अंतरिम शासन पर दबाव बनाना है ताकि देश में जल्द से जल्द लोकतांत्रिक व्यवस्था वापस लाई जा सके.

    जनमत-संग्रह अध्यादेश से बढ़ा विवाद

    उधर, बृहस्पतिवार देर रात बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक महत्वपूर्ण अध्यादेश जारी किया है. यह अध्यादेश उस राजनीतिक चार्टर से जुड़ा है, जिसे प्रोफेसर यूनुस ने तैयार करवाया था और अब उस पर जनमत-संग्रह कराने की घोषणा की है. लेकिन इस निर्णय ने देश में नया विवाद खड़ा कर दिया है.कई संवैधानिक विशेषज्ञों ने इसे सीधे-सीधे असंवैधानिक बताया है, क्योंकि बांग्लादेश के मौजूदा संविधान में जनमत-संग्रह का कोई प्रावधान है ही नहीं.

    राष्ट्रपति ने किया हस्ताक्षर, विशेषज्ञों ने जताई आपत्ति

    राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने ‘जुलाई चार्टर कार्यान्वयन आदेश’ पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. यह वही दस्तावेज़ है जिसे राष्ट्रीय सहमति आयोग ने तैयार किया था.महत्वपूर्ण बात यह है कि मसौदा तैयार करने में कई दलों को शामिल किया गया, लेकिन अवामी लीग को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया, जिससे राजनीतिक तनाव और बढ़ गया है.संवैधानिक विशेषज्ञ शाहदीन मलिक ने कहा कि संविधान में जनमत-संग्रह का कोई प्रावधान ही नहीं है, ऐसे में राष्ट्रपति इस तरह के आदेश पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 93 के मुताबिक कोई अध्यादेश संविधान में संशोधन या उसे निरस्त करने के लिए जारी नहीं किया जा सकता.

    फरवरी में चुनाव के साथ जनमत-संग्रह की तैयारी

    राष्ट्र के नाम संबोधन में यूनुस ने कहा कि अगले वर्ष फरवरी में प्रस्तावित आम चुनावों के साथ ही जनमत-संग्रह भी कराया जाएगा. यह कदम चार्टर पर जनता की राय जानने के उद्देश्य से उठाया गया है. लेकिन कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रक्रिया संवैधानिक ढांचे से बाहर है और इसकी वैधता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया है.

    चार्टर में बदलाव और राजनीतिक आरोप

    बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) ने यूनुस पर गंभीर आरोप लगाए हैं.पार्टी का कहना है कि यूनुस ने स्वयं अपने चार्टर का उल्लंघन किया है.उनका दावा है कि जुलाई चार्टर कार्यान्वयन आदेश में कई नए बिंदु जोड़ दिए गए और पहले से सहमत कई बिंदु हटा दिए गए, जिससे पूरा दस्तावेज़ संदेहास्पद हो गया है.बीएनपी नेता सलाहुद्दीन अहमद ने कहा कि इन परिवर्तनों के कारण जनमत-संग्रह की वैधता पूरी तरह संदिग्ध हो चुकी है.

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