Axiom Mission 4: शुभांशु शुक्ला अतंरिक्ष में अपने साथ क्यों ले गए ये जीव? पीछे छिपी हैरान कर देने वाली वजह

    स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट और क्रू ड्रैगन अंतरिक्ष यान के जरिए फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरे इस मिशन में शुभांशु के साथ एक अनोखा मेहमान टार्डिग्रेड नामक सूक्ष्म जीव भी है. यह मिशन न केवल तकनीकी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी कई अहम सवालों के जवाब देने वाला है.

    Axiom Mission 4 Why did Shubhanshu Shukla take tardigrade to space
    Image Source: ANI

    Axiom Mission 4: भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में एक नई मिसाल कायम हुई है. ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर सफलतापूर्वक पहुंच गए हैं. स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट और क्रू ड्रैगन अंतरिक्ष यान के जरिए फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरे इस मिशन में शुभांशु के साथ एक अनोखा मेहमान टार्डिग्रेड नामक सूक्ष्म जीव भी है. यह मिशन न केवल तकनीकी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी कई अहम सवालों के जवाब देने वाला है.

    शुभांशु शुक्ला का Axiom Mission 4

    एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट ने मंगलवार दोपहर 12:01 बजे (आईएसटी) शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक पहुंचाया. यह एक्सिओम-4 मिशन भारत के लिए कई मायनों में ऐतिहासिक है. शुभांशु के साथ कुल चार अंतरिक्ष यात्री हैं, जो 14 दिन तक विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे. मिशन की सफलता से भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नई पहचान मिलेगी.

    टार्डिग्रेड: धरती का सुपर जीव

    इस मिशन की सबसे रोचक बात यह है कि शुभांशु अपने साथ टार्डिग्रेड नामक सूक्ष्म जीव को लेकर गए हैं. इसे वॉटर बियर या मॉस पिगलेट भी कहा जाता है. टार्डिग्रेड आकार में बेहद छोटा होता है, लेकिन पर्यावरण की किसी भी कठोर परिस्थिति में जीवित रहने की अद्भुत क्षमता रखता है. यह -200°C की ठंड से लेकर 150°C की गर्मी तक सह सकता है और अंतरिक्ष में रेडिएशन की तीव्रता को भी सैकड़ों गुना झेल सकता है. यह जीव बिना भोजन के 30 साल तक जीवित रह सकता है.

    अंतरिक्ष में टार्डिग्रेड का महत्व

    शुभांशु और उनकी टीम टार्डिग्रेड के माध्यम से यह अध्ययन कर रहे हैं कि यह जीव कैसे अंतरिक्ष की गुरुत्वहीनता, रेडिएशन और शून्यता जैसी खतरनाक स्थितियों में जीवित रह पाता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस जीव के डीएनए मरम्मत तंत्र और अन्य जीववैज्ञानिक गुणों का अध्ययन मानव जीवन को भी अंतरिक्ष में सुरक्षित रहने में मदद कर सकता है. यह शोध भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए जीवन सुरक्षा के नए आयाम खोल सकता है.

    ये भी पढ़ें: 28 घंटे सफर करके इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचे शुभांशु शुक्ला, ड्रैगन यान की डॉकिंग पूरी, देखें वीडियो