बांग्लादेश से एक बार फिर ऐसा मामला सामने आया है, जिसने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया है। रंगपुर जिले के तारागंज इलाके में दो हिंदू युवकों को भीड़ ने चोरी के शक में बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला। इस भयावह घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसे देखकर किसी का भी दिल कांप उठे। जिन दो निर्दोष लोगों की जान गई, वे थे रूपलाल दास और प्रदीप दास दोनों एक ही परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके परिवार पर जो बीती है, उसका दर्द शब्दों में बयान करना मुश्किल है।
स्कूल के मैदान में मौत का तांडव, पुलिस बनी तमाशबीन
यह पूरी घटना रंगपुर के बुरिरहाट हाई स्कूल के परिसर में हुई, जहां भीड़ ने इन दोनों को घेरकर जानवरों की तरह पीटा। सबसे दुखद बात यह रही कि पुलिस समय पर पहुंच गई थी, लेकिन जब भीड़ आक्रामक हुई, तो पुलिस डरकर वहां से भाग खड़ी हुई। चश्मदीदों के मुताबिक, पुलिस ने घायलों को वहां बेसहारा छोड़ दिया, जबकि वे अधमरी हालत में जिंदगी की भीख मांग रहे थे।
जब तक अतिरिक्त सुरक्षा बल मौके पर पहुंचा, तब तक रूपलाल दम तोड़ चुके थे और प्रदीप की हालत भी बेहद गंभीर हो गई थी। प्रदीप को आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनकी भी जान नहीं बचाई जा सकी। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यही है जब पुलिस खुद डर जाए, तो आम जनता किस पर भरोसा करे?
भीड़ की क्रूरता और प्रशासन की चुप्पी: खतरनाक संकेत
घटना की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चश्मदीदों के अनुसार 15-20 युवक हमले में सबसे आगे थे, लेकिन पूरी भीड़ में करीब 500 से 700 लोग शामिल थे। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे कुछ लोग बार-बार डंडों और रॉड से हमला कर रहे हैं, तो कुछ लोग उन्हें उकसा रहे हैं। रूपलाल की पीठ पर बार-बार लात मारी जा रही है, और कोई भी उन्हें बचाने की कोशिश नहीं करता।
यह न केवल एक मॉब लिंचिंग की घटना है, बल्कि यह बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के प्रति बढ़ती असहिष्णुता और नफरत का एक और खौफनाक चेहरा है। सवाल यह भी उठता है कि आखिर इस भीड़ को इतनी हिम्मत कैसे मिली? क्यों कोई उन्हें रोक नहीं पाया?
मोहम्मद यूनुस की चुप्पी: सियासी जिम्मेदारी से बचाव?
बांग्लादेश के राजनीतिक नेतृत्व पर भी अब सवाल उठने लगे हैं। मोहम्मद यूनुस, जिनका कार्यकाल पहले से ही अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों के लिए आलोचना का शिकार रहा है, इस बार भी पूरी तरह खामोश हैं। उनकी चुप्पी कई सवालों को जन्म दे रही है – क्या यह एक सोची-समझी अनदेखी है? क्या यूनुस सरकार इन हमलों पर आंखें मूंदे बैठी है?
जब देश का प्रधानमंत्री या कोई भी जिम्मेदार नेता ऐसी घटनाओं पर चुप रह जाता है, तो यह न केवल न्याय के लिए खतरनाक होता है, बल्कि यह समाज में नफरत और विभाजन को और गहरा करता है।
इंसाफ की राह में बड़ी चुनौती, लेकिन उम्मीद बाकी है
रूपलाल की पत्नी भारती रानी ने इस घटना के खिलाफ केस दर्ज कराया है और 500 से 700 लोगों के खिलाफ शिकायत दी है। अब तक सिर्फ चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है- इबादत हुसैन, अख्तरुल इस्लाम, रफीकुल इस्लाम और मिजानुर रहमान। लेकिन क्या इतने बड़े अपराध में सिर्फ चार लोग जिम्मेदार थे?
यह केस सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं है, यह पूरी इंसानियत की आवाज है। इस मामले में निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई होना बेहद जरूरी है, ताकि भविष्य में कोई भीड़ कानून अपने हाथ में लेने की हिम्मत न कर सके।
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