Amrita Pritam Imroz Love Story प्यार की कितनी कहानियां आपने पढ़ी होंगी-सुनी होंगी. कुछ सतही होती हैं तो कुछ हमारा मनोरंजन करती हैं. वहीं, कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो हमारे दिल को छू जाती हैं. ऐसी कहानियां हमें जीवन भर याद रहती हैं. यह भी सच है कि ये कहानियां कहीं न कहीं हकीकत के करीब भी होती हैं. दो लोगों के बीच का अफसाना कैसे अमर हो जाता है? इसका जीता जागता नमूना है-अमृता प्रीतम और इंदरजीत उर्फ इमरोज की लव स्टोरी. अब दोनों ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन अगर इस धरती से परे कोई दुनिया है तो वहां जरूर एक-दूसरे से मिले होंगे. क्योंकि जब लेखिका अमृता गंभीर रूप से बीमार थीं तो उस दौरान ये कविता इमरोज के लिए लिखी थी.
मैं तैनू फ़िर मिलांगी
कित्थे ? किस तरह पता नई
शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के
तेरे केनवास ते उतरांगी.
सदियों तक रहेगी दास्तां अपनी
खैर आने वाली सदियों में भी अमृता और इमरोज की मोहब्बत का जिक्र जरूर होगा. 'जब-जब जिक्र होगा वफा का और मोहब्बत की बात होगी, सदियों तक जमाना गुनगुनाएगा अफसाना हमारा' यह किसी कविता की पंक्ति नहीं, बल्कि यह सच है कि अमृता प्रीतम और इंद्रजीत उर्फ इमरोज कई सदियों तक मोहब्बत के अफसानों में जिंदा रहेंगे.
मोहब्बत का देवता
कहते हैं ना देने वाला देवता होता है तो इस लिहाज से इमरोज धरती के देवता बन गए-मोहब्बत के देवता बन गए. उन्होंने यह जानते हुए भी अमृता प्रीतम को अपनाया कि वह साहिर लुधियानवी से प्यार करती हैं और ताउम्र करती रहेंगी. बावजूद इसके न केवल उन्होंने अमृता प्रीतम को अपनाया बल्कि उन पर मोहब्बत लुटाते रहे. अमृता प्रीतम ने एक बार लिखा था- 'मैं सारी ज़िंदगी जो भी सोचती और लिखती रही, वो सब देवताओं को जगाने की कोशिश थी, उन देवताओं को जो इंसान के भीतर सो गए हैं.' कह नहीं सकते हैं, लेकिन अमृता प्रीतम के लिए इमरोज वही देवता तो नहीं थे?
अमर हो गया प्यार
नाटककार तारिक हमीद का कहना है कि मेरी चंद मुलाकातें इमरोज साहब के साथ हैं. उनके साथ हुई संक्षिप्त मुलाकात मेरे लिए जीवन के लिए बड़े तजुर्बे की तरह है. वह जिंदगी और अमृता, दोनों को बहुत प्यार करते थे. यही वजह थी कि उन्होंने जिंदगी और प्यार दोनों को बड़ी शिद्दत से जिया. प्यार और जिंदगी, दोनों अमृता ही अहम थीं. इमरोज ने 97 वर्ष की उम्र तक एक ही शख्सियत यानी अमृता प्रीतम से प्यार किया और वह अमर हो गया.
इमरोज के लिए कभी अमृता कभी दुनिया से गई ही नहीं.
तारिक हमीद का कहना है कि इमरोज के लिए अमृता कभी दुनिया से गई ही नहींं-मरी ही नहीं. वह इमरोज के लिए हमेशा जिंदा रहीं. इमरोज अपनी अमृता का जिक्र करने के दौरान इस तरह अपनी बात रखते जैसे अमृता जिंदा हैं. हां अमृता के लिए कभी भी 'थे' शब्द का जिक्र नहीं करके 'हैं' का जिक्र करते थे. मसलन 'वह खाना खाती है. वह सोती है और वह लिखती है' जैसे वाक्य. कुलमिलाकर अमृता का जिक्र आने पर इमरोज के चेहरे पर तेज आ जाता था.
अपने तरीके से जिंदगी जीने की सलाह
तारिक ने बताया कि दिल्ली में मुलाकात के दौरान इमरोज ने कहा था कि लोगों को ये शिकायत रहती थी कि वे अपनी तरह की जिंदगी नहीं जी पाते हैं. इस पर इमरोज ने सवालिया लहजे में कहा था कि आपको जिंदा रहने के लिए कितने पैसे की जरूरत होती है 500 रुपये रोज तो आप 500 रुपये कमाने के लिए कोई काम कर लीजिए. जो समय बचे उसमें अपनी तरह की जिंदगी जी लीजिए.
बाखबर होकर भी बेखकर रहे इमरोज
इमरोज़ दरअसल, अमृता से बेहद प्यार करते थे और अमृता के लिए यह एक सपने के पूरा होने जैसा था. कहा जाता है कि अमृता और इमरोज के लिए यह बिना सीमाओं वाला अंतहीन प्यार था और बिना किसी शर्त का प्यार भी था. यह भी कम हैरत की बात नहीं कि इमरोज़ को साहिर के प्रति अमृता के प्यार के बारे में पता था, लेकिन उन्होंने ताउम्र कभी इस बात से नाराजगी नहीं जताई और न ही कभी खफा हुए.
अजब ट्रैएंगल लव
अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी दोनों एक-दूसरे को प्यार करते थे. अमृता अपने प्यार साहिर को पाना चाहती थीं, लेकिन चोट खाए साहिर आगे बढ़ने को तैयार नहीं थे. इस बीच यह जानते हुए भी साहिर और इमरोज दोनों दोस्त बन गए. यहां यह जानना दिलचस्प है कि इमरोज़ ने ही साहिर की किताब 'आओ कोई ख्वाब बुनें' (आओ एक सपना बुनें) का कवर डिजाइन किया था. इमरोज ने अमृता से एक बार कहा भी था कि वह जानते हैं कि वह साहिर से कितना प्यार करती हैं लेकिन इस बात पर जोर दिया कि वह यह भी जानते हैं कि वह खुद अमृता से कितना प्यार करते हैं.
दोनों ने कभी नहीं कहा- हमें तुमसे मोहब्बत है
अमृता प्रीतम और इंदरजीत उर्फ इमरोज का प्यार इस लिहाज से अनूठा था कि दोनों ही एक-दूसरे से प्यार तो करते थे, लेकिन इजहार कभी नहीं किया. शायद प्यार को जुबां की जरूरत नहीं होती है क्योंकि प्यार तो एक एहसास है. कहा भी जाता है कि जब किसी चीज का एहसास बार-बार कराया जाए तो वह एहसान में तब्दील हो जाता है. अमृता और इमरोज करीब-करीब पति-पत्नी की रहे और दोनों के बच्चे भी हुए, लेकिन दोनों ने कभी नहीं कहा- 'मुझे मोहब्बत है'.