शोर-शराबा और हंगामा संसद का मकसद नहीं, PM-CM को जेल भेजने वाले बिल पर अमित शाह ने विपक्ष को लगाई लताड़!

    नई दिल्ली में एक अहम बयान में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उस विधेयक को लेकर विपक्ष पर निशाना साधा, जो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को गंभीर अपराध में गिरफ्तार होने पर पद से हटाने का प्रावधान करता है.

    Amit Shah on Constitution Amendment Bill 2025
    Image Source: ANI

    नई दिल्ली में एक अहम बयान में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उस विधेयक को लेकर विपक्ष पर निशाना साधा, जो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को गंभीर अपराध में गिरफ्तार होने पर पद से हटाने का प्रावधान करता है. उन्होंने कहा कि यह संशोधन लोकतंत्र में नैतिकता और जवाबदेही की दिशा में एक बड़ा कदम है, और इसका विरोध करना सिर्फ राजनीति है, जनहित नहीं.

    गृह मंत्री ने स्पष्ट किया कि यदि कोई जनप्रतिनिधि चाहे वह प्रधानमंत्री हो, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी ऐसे अपराध में गिरफ्तार होता है, जिसमें पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है और वह लगातार 30 दिन हिरासत में रहता है, तो उसे अपने पद से इस्तीफा देना होगा. हालांकि, अगर उसे जमानत मिल जाती है, तो वह पुनः शपथ लेकर अपना पद संभाल सकता है.

    गंभीर अपराध पर पद छोड़ना अनिवार्य

    शाह ने कहा, “कोई भी नेता जेल में रहकर सरकार नहीं चला सकता. अगर कोर्ट से जमानत मिल जाती है, तो वह फिर से पद पर आ सकता है. लेकिन जब तक न्यायिक प्रक्रिया चलेगी, तब तक पद से मुक्त रहना जरूरी है.”

    ‘सिर्फ विपक्ष ही नहीं, सत्ता पक्ष पर भी लागू’

    अमित शाह ने विपक्ष के उस आरोप को खारिज किया कि यह बिल उन्हें निशाना बनाने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा कि यह संशोधन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पर समान रूप से लागू होगा. उन्होंने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद यह प्रस्ताव लाया है कि अगर प्रधानमंत्री पर यह स्थिति लागू होती है, तो उन्हें भी पद छोड़ना होगा. “यह कोई ऐसा संशोधन नहीं है जो किसी को निशाना बना रहा हो. यह एक लोकतांत्रिक जवाबदेही तय करने की कोशिश है, जिसमें खुद प्रधानमंत्री ने अपने लिए भी नियम बनाया है.” 

    विपक्ष के विरोध पर सवाल

    गृह मंत्री ने विपक्ष के रवैये पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यदि संसद में चुनी हुई सरकार कोई संशोधन या विधेयक पेश करती है, तो उसे सदन में रखने से रोकना लोकतंत्र के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि संसदीय परंपरा में बहस और चर्चा का महत्व है, न कि हंगामा और शोर-शराबे का. अगर किसी विधेयक से असहमति है, तो उसे तर्क के आधार पर चुनौती दें, लेकिन संसद में उसे पेश ही न होने देना एक बेहद अलोकतांत्रिक व्यवहार है.

    जमानत और न्यायपालिका की भूमिका

    अमित शाह ने विपक्ष की इस आशंका को भी खारिज किया कि यह बिल किसी को जल्दबाजी में पद से हटाने का जरिया बन सकता है. उन्होंने कहा कि 30 दिनों की अवधि पर्याप्त है और उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट जैसे संस्थान इतनी अवधि में निष्पक्षता से फैसला ले सकते हैं. न्यायपालिका आंख मूंदकर नहीं बैठी है. अगर केस फर्जी हुआ, तो अदालत स्वतः संज्ञान ले सकती है और जमानत दे सकती है.

    बिल का उद्देश्य

    गृह मंत्री के अनुसार, इस 130वें संविधान संशोधन का उद्देश्य है कि ऐसे नेता, जो गंभीर आपराधिक मामलों में फंसे हैं, वह सत्ता में बने रहकर प्रक्रिया और पद का दुरुपयोग न कर सकें. उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में पहले से यह व्यवस्था है कि दो साल से अधिक की सजा मिलने पर सदस्यता समाप्त हो जाती है, लेकिन यह संशोधन पदधारी नेताओं की जिम्मेदारी तय करने की दिशा में एक नया आयाम जोड़ता है.

    यह भी पढ़ें: इजराइल ने लगा दिया पूरा जोर, फिर भी हूती के कमांडरों का नहीं कर पाया बाल भी बांका! क्या है इसका कारण?