Monsoon Session: देश की लोकतांत्रिक राजनीति में हर सत्र से पहले होने वाली सर्वदलीय बैठकें केवल रस्म अदायगी नहीं होतीं, बल्कि ये उन मुद्दों का संकेत होती हैं जो संसद के भीतर उठने वाले हैं. संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 21 अगस्त तक चलेगा, और इस बार के सत्र में कई अहम विधेयकों, बहसों और विवादों की आशंका पहले से ही जताई जा रही है. इसी को लेकर शनिवार को केंद्र सरकार ने एक सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें सत्ता और विपक्ष दोनों की उपस्थिति ने आने वाले दिनों की राजनीतिक दिशा का संकेत दिया.
सरकार की तरफ से कौन रहा मौजूद?
इस अहम बैठक में केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, किरेन रिजिजू, अर्जुन राम मेघवाल, एल मुरगन सहित बीजेपी के कई सांसद शामिल हुए. सरकार की प्राथमिकता रही कि आगामी सत्र में विधायी कार्य सुचारु रूप से हो और विपक्ष सहयोग करे.
विपक्ष की भूमिका और प्रतिनिधित्व
विपक्षी दलों की ओर से भी इस बैठक में सक्रिय भागीदारी देखने को मिली. कांग्रेस की ओर से जयराम रमेश और गौरव गोगोई, सीपीएम, AIADMK, NCP (SP) की ओर से सुप्रिया सुले, और शिवसेना (शिंदे गुट) से श्रीकांत शिंदे मौजूद रहे. इसके अलावा समाजवादी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, और जेडीयू जैसे क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों ने भी बैठक में भाग लिया. यह उपस्थिति इस बात का संकेत है कि विपक्ष मानसून सत्र में सरकार को घेरने के लिए पूरी तैयारी में है, चाहे वो आर्थिक असमानता का मुद्दा हो या राज्यों के अधिकारों का.
झारखंड की उपेक्षा पर उठी आवाज
इस बैठक में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप झामुमो सांसद महुआ माझी की ओर से आया. उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार झारखंड के साथ दोहरा रवैया अपना रही है. उनका कहना था कि, "खनिज संपदा से भरपूर होने के बावजूद झारखंड आज भी गरीबी और विकास की समस्याओं से जूझ रहा है. केंद्र को राज्य के हितों की अनदेखी बंद करनी चाहिए." उनका यह बयान इस बात को रेखांकित करता है कि राज्यों की उपेक्षा भी संसद में एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है.
सत्र में क्या है एजेंडा?
21 जुलाई से शुरू होकर 21 अगस्त तक चलने वाले इस सत्र में कुल 21 बैठकें प्रस्तावित हैं. 12 से 18 अगस्त तक स्वतंत्रता दिवस समारोहों के चलते कार्यवाही स्थगित रहेगी. इस दौरान 7 लंबित विधेयकों पर चर्चा की जाएगी, जबकि 8 नए विधेयक संसद में पेश किए जाने की योजना है. इसमें कुछ प्रमुख विधेयक जैसे डेटा संरक्षण बिल, महिला आरक्षण, डिजिटल सुरक्षा नीति आदि शामिल हो सकते हैं, जिन पर बहस गर्म रहने की उम्मीद है.
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