2006 मुंबई ब्लास्ट केस के सभी आरोपी बरी, हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटा

    2006 Mumbai blast case: साल 2006 की वो शाम जब मुंबई की धड़कन कही जाने वाली लोकल ट्रेनें रफ्तार में थीं, उसी पल 11 मिनट के भीतर 7 धमाकों ने शहर को हिला दिया था। 189 लोगों की जान गई, 800 से ज्यादा घायल हुए, और पूरे देश में सदमे की लहर दौड़ गई थी.

    All accused in 2006 Mumbai blast case acquitted High Court
    Image Source: ANI/ File

    2006 Mumbai blast case: साल 2006 की वो शाम जब मुंबई की धड़कन कही जाने वाली लोकल ट्रेनें रफ्तार में थीं, उसी पल 11 मिनट के भीतर 7 धमाकों ने शहर को हिला दिया था। 189 लोगों की जान गई, 800 से ज्यादा घायल हुए, और पूरे देश में सदमे की लहर दौड़ गई थी. अब, लगभग 19 साल बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस दर्दनाक मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने 12 दोषियों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में पूरी तरह विफल रहा. इनमें से पांच को पहले मृत्युदंड और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

    कोर्ट ने जांच की कमियों को उजागर किया

    जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांदक की पीठ ने कहा कि मामले में प्रस्तुत सबूत कमजोर और विरोधाभासी थे. गवाहों की गवाही पर भी अदालत ने सवाल उठाते हुए कहा कि धमाकों के करीब 100 दिन बाद किसी आरोपी को पहचानना विश्वसनीय नहीं माना जा सकता. टैक्सी ड्राइवरों, प्रत्यक्षदर्शियों और ट्रेन यात्रियों द्वारा दी गई गवाही को कोर्ट ने "संदेहास्पद" करार दिया. इसके अलावा, जो हथियार, नक्शे और विस्फोटक सामग्री पेश की गई थी, उन्हें सही तरीके से धमाकों से जोड़ने में असफलता रही.

    बम धमाकों की वो भयावह शाम

    11 जुलाई 2006 को, मुंबई के अलग-अलग रेलवे स्टेशनों—खार, सांताक्रूज़, बांद्रा, जोगेश्वरी, माहिम, माटुंगा, मीरा रोड और बोरीवली—में सिलसिलेवार आरडीएक्स धमाके हुए. ये धमाके ऐसे वक्त में हुए जब ट्रेनें दफ्तर से लौटते यात्रियों से भरी हुई थीं. इस हमले की जांच एटीएस (ATS) को सौंपी गई थी, जिसने UAPA के तहत केस दर्ज कर 13 लोगों को आरोपी बनाया. 2015 में एक विशेष अदालत ने 12 को दोषी करार दिया और एक को बरी कर दिया था, अब, 2025 में हाई कोर्ट ने बाकी सभी को भी निर्दोष घोषित कर दिया है.

    ये भी पढ़ें- नहीं बाज आ रहा पाकिस्तान! UNSC में इस मुद्दे को उठाने की तैयारी, भारत देगा मुंहतोड़ जवाब