90 हजार महिलाएं-बच्चे कुपोषण के शिकार, लोग कई दिनों से भूखे... गाजा को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने चेताया

    पश्चिम एशिया के युद्धग्रस्त गाज़ा क्षेत्र में मानवीय संकट भयावह रूप ले चुका है.

    90 thousand women and children in Gaza are victims of malnutrition
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ Sociel Media

    गाज़ा: पश्चिम एशिया के युद्धग्रस्त गाज़ा क्षेत्र में मानवीय संकट भयावह रूप ले चुका है. संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (WFP) ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में बताया है कि गाज़ा की आबादी व्यापक भुखमरी, चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी और निरंतर होती मौतों की त्रासदी से जूझ रही है. रिपोर्ट के अनुसार, हर तीन में से एक व्यक्ति कई-कई दिन भूखा रह रहा है. इसके अलावा, करीब 90,000 महिलाएं और बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं और उन्हें आपात चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है.

    यह चेतावनी उस समय आई है जब गाज़ा पर इज़रायली सैन्य कार्रवाई को नौ महीने से अधिक हो चुके हैं और युद्ध ने आम नागरिकों के जीवन को असहनीय बना दिया है.

    भूख से टूटते शरीर, टूटती उम्मीदें

    WFP ने स्पष्ट किया है कि गाज़ा में भोजन की उपलब्धता अपने सबसे निम्न स्तर पर पहुंच चुकी है. अधिकांश घरों में एक वक्त का भी भोजन उपलब्ध नहीं है, और लोग जंगल की घास, जानवरों के चारे और सूखे ब्रेड के टुकड़ों पर जीवित रहने को मजबूर हैं. बच्चों के पेट सूज चुके हैं, और माताएं खुद भूखी रहकर भी अपने बच्चों के लिए कुछ खाने का इंतज़ाम नहीं कर पा रहीं.

    गाज़ा के उत्तर और मध्य क्षेत्रों में कुपोषण अब महामारी के रूप में फैल रहा है. संयुक्त राष्ट्र की एक और एजेंसी UNICEF ने चेताया है कि अगर तत्काल अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो आने वाले हफ्तों में हजारों बच्चों की जान पर सीधा खतरा मंडरा रहा है.

    स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमराई

    गाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार को पुष्टि की कि शुक्रवार को नौ और लोगों की मौत कुपोषण से हुई, जिनमें अधिकांश बच्चे थे. इस तरह, अक्टूबर 2024 से अब तक कुपोषण से मरने वालों की संख्या 122 हो चुकी है. लेकिन यह सिर्फ दस्तावेज़ी आँकड़े हैं — स्थानीय संगठनों का कहना है कि असल संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है.

    स्वास्थ्य व्यवस्था लगभग ध्वस्त हो चुकी है. अस्पतालों में न तो दवाइयाँ हैं, न उपकरण, और न ही डॉक्टरों को पर्याप्त संसाधन मिल रहे हैं. घायलों का इलाज फर्श पर हो रहा है और जीवनरक्षक दवाओं की भारी किल्लत बनी हुई है. मरीजों को बाहर भेजने का भी कोई स्थायी तंत्र नहीं बचा है.

    इज़रायल और हमास के बीच आरोप-प्रत्यारोप

    इज़रायली सरकार का कहना है कि वह गाज़ा में मानवीय सहायता भेजने से नहीं रोक रही है और खाने-पीने के सामान की कमी के लिए हमास ज़िम्मेदार है, जो टनल्स और सुरंगों के ज़रिए हथियारों की तस्करी और युद्धक गतिविधियों में लगे हुए हैं.

    हालांकि ज़मीनी सच्चाई यह है कि अधिकांश सहायता ट्रकों को इज़रायल की सीमाओं पर रोक दिया जाता है या फिर उन्हें बहुत ही सीमित संख्या में ही गाज़ा में प्रवेश करने दिया जाता है. यूएन और रेड क्रॉस जैसी संस्थाएं महीनों से कह रही हैं कि मौजूदा मात्रा की मानवीय सहायता गाज़ा की जरूरतों का एक अंश भी पूरा नहीं कर पा रही.

    अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती चिंता

    गाज़ा में फैलते मानवीय संकट को लेकर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भी बेचैनी बढ़ रही है. अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और अब ब्रिटेन जैसे देशों ने इज़रायल से इस संकट के तत्काल समाधान की मांग की है.

    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने शुक्रवार को घोषणा की कि उनका देश गाज़ा में हवाई मार्ग से मानवीय राहत सामग्री पहुंचाने के लिए हरसंभव प्रयास करेगा. उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिटेन गंभीर रूप से बीमार फिलिस्तीनी बच्चों को इलाज के लिए लाने की प्रक्रिया को तेज करेगा.

    संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने गाज़ा की स्थिति को “21वीं सदी की सबसे गंभीर भूखमरी में से एक” बताया है और सभी पक्षों से युद्धविराम के लिए बातचीत का आह्वान किया है.

    आख़िरकार इंसानियत ही दांव पर है

    गाज़ा का यह संकट केवल एक भू-राजनीतिक मुद्दा नहीं है, यह एक मानवीय परीक्षा है — जिसमें इंसानियत, करुणा और अंतरराष्ट्रीय नैतिकता की कसौटी पर विश्व खड़ा है. एक तरफ मिसाइलें हैं, सैन्य रणनीति है और सत्ता की जंग है; दूसरी तरफ भूखे बच्चे, टूटती मांएं और ढहते मकान हैं.

    यदि वैश्विक समुदाय ने इस त्रासदी को केवल आँकड़ों और बयानबाज़ी तक सीमित रखा, तो इतिहास इसे एक मौन नरसंहार के रूप में याद रखेगा.

    क्या अब भी देर नहीं हुई?

    गाज़ा को राहत पहुंचाने के लिए अभी भी विकल्प मौजूद हैं — समुद्री मार्ग, हवाई ड्रॉप्स, विशेष मानवीय गलियारे और युद्धविराम के सीमित समझौते. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय शक्ति केंद्र अपनी भूमिका केवल 'विचार व्यक्त करने' तक सीमित न रखें, बल्कि 'वास्तविक कार्रवाई' की दिशा में आगे बढ़ें.

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