माले (मालदीव): भारत के दक्षिण में हिंद महासागर की लहरों के बीच फैला एक छोटा-सा द्वीपीय देश—मालदीव—आकार में भले ही दुनिया के सबसे छोटे देशों में गिना जाता है, लेकिन इसका इतिहास, सांस्कृतिक विरासत और भविष्य से जुड़ी जलवायु चुनौतियाँ इसे वैश्विक चर्चाओं में लाते रहते हैं.
1200 से अधिक द्वीपों में फैला यह देश करीब 298 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बसा है—यह दिल्ली के कुल क्षेत्रफल का भी पांचवां हिस्सा नहीं है. लेकिन इसकी भूगोलिक भिन्नता, धार्मिक इतिहास और समुद्री खतरों ने इसे बार-बार वैश्विक फोकस में खड़ा किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो दिवसीय दौरे ने एक बार फिर इस देश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान चुनौतियों को नई दृष्टि से समझने का अवसर दिया है.
बौद्ध धर्म: 2500 साल पुराना इतिहास
मालदीव का इतिहास करीब ढाई हजार साल पुराना माना जाता है. प्रारंभिक काल में यह द्वीपसमूह भारतीय उपमहाद्वीप विशेषकर उड़ीसा (प्राचीन कलिंग) और दक्षिण भारत के साथ सांस्कृतिक और वाणिज्यिक रूप से जुड़ा था. एक मान्यता के अनुसार, उड़ीसा के राजा ब्रह्मदित्य के पुत्र श्री सूरुदासरुण आदित्य द्वारा मालदीव में एक संगठित शासन की नींव रखी गई थी.
उनके शासनकाल में ही बौद्ध धर्म का प्रवेश हुआ और यह धर्म लगभग एक हजार वर्षों तक मालदीव का प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक आधार बना रहा. इस काल में ‘धिवेही’ भाषा और लिपि का विकास हुआ, जो आज भी मालदीव की पहचान है. बौद्ध संस्कृति के प्रभाव का प्रमाण आज भी देश के विभिन्न द्वीपों पर फैले हुए प्राचीन स्तूपों और मठों के अवशेषों में देखा जा सकता है, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘हवित्ता’ और ‘उस्तुबु’ कहा जाता है.
इस्लाम में रूपांतरण: व्यापार और सत्ता का मिश्रण
9वीं और 10वीं शताब्दी के दौरान मालदीव में इस्लाम का आगमन हुआ, और इसका श्रेय काफी हद तक अरब व्यापारियों को जाता है जो व्यापार के साथ अपने धार्मिक विचार भी साथ लाते थे. लेकिन मालदीव के इस्लामी राष्ट्र बनने की सबसे रोचक और चर्चित कहानी राजा धोवेमी और ‘रन्नामारी’ राक्षस की है.
लोककथा के अनुसार, उस समय मालदीव एक राक्षस रन्नामारी के आतंक से जूझ रहा था, जिसके लिए हर महीने एक कन्या की बलि दी जाती थी. इसी दौरान माघरेबी (वर्तमान उत्तरी अफ्रीका) से आए एक इस्लामी विद्वान अबु अल-बरकात यूसुफ अल-बरबरी ने उस बलि की परंपरा को समाप्त कर दिया. उन्होंने स्वयं उस रात्रि मीनार में रहकर कुरान की आयतें पढ़ीं, जिससे राक्षस भाग गया.
राजा धोवेमी ने वचन दिया था कि यदि यह भय समाप्त हो गया, तो वे और उनका देश इस्लाम अपना लेंगे. इसके बाद 1153 में उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया और ‘सुल्तान मुहम्मद इब्न अब्दुल्लाह’ नाम धारण किया. यह घटना मालदीव में इस्लामिक शासन के आरंभ का संकेत बनी.
इसके बाद लगभग 150 वर्षों के भीतर मालदीव एक पूर्ण इस्लामी राष्ट्र बन गया, और अगले आठ सौ वर्षों तक यहां छह प्रमुख इस्लामी राजवंशों ने शासन किया.
औपनिवेशिक हस्तक्षेप और स्वतंत्रता की राह
मालदीव का भौगोलिक महत्व समुद्री व्यापार और रणनीतिक स्थिति को देखते हुए हमेशा बाहरी शक्तियों के आकर्षण का केंद्र रहा. 1558 में पुर्तगालियों ने माले पर कब्जा कर लिया और लगभग 15 वर्षों तक राज किया, लेकिन स्थानीय जनता के प्रतिरोध से उन्हें हटना पड़ा.
1887 में मालदीव ने ब्रिटिश साम्राज्य के साथ एक संधि की, जिसमें आंतरिक प्रशासन पर स्थानीय नियंत्रण बना रहा, जबकि रक्षा और विदेश नीति पर ब्रिटेन का वर्चस्व रहा. अंततः 26 जुलाई 1965 को मालदीव को पूर्ण स्वतंत्रता मिली.
आज भी मालदीव के सांस्कृतिक ढांचे में श्रीलंका के सिंहली और भारत के चोल साम्राज्य के प्रभाव झलकते हैं, जो इस द्वीपसमूह की ऐतिहासिक गहराई को दर्शाते हैं.
आधुनिक मालदीव: एक इस्लामी गणराज्य
1968 में मालदीव ने राजशाही को समाप्त कर गणराज्य की स्थापना की. फिर 2008 में नए संविधान में इस्लाम को राज्यधर्म घोषित कर दिया गया और यह स्पष्ट किया गया कि मालदीव की नागरिकता पाने के लिए इस्लाम को मानना अनिवार्य होगा.
आज मालदीव की कुल जनसंख्या लगभग 5 लाख है, जिनमें से 98% लोग मुस्लिम हैं. धार्मिक पहचान अब न केवल सामाजिक बल्कि संवैधानिक ढांचे का भी अभिन्न हिस्सा बन चुकी है.
जलवायु संकट और डूबते भविष्य की चेतावनी
एक ओर जहां मालदीव धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र रहा है, वहीं दूसरी ओर आज यह जलवायु परिवर्तन के कारण अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है. वैज्ञानिकों की चेतावनी के अनुसार, आने वाले 25 वर्षों में मालदीव का लगभग 80% हिस्सा रहने लायक नहीं रहेगा.
IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट बताती है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग की यही रफ्तार रही, तो 2100 तक समुद्र का स्तर 59 सेंटीमीटर से लेकर 1 मीटर तक बढ़ सकता है. चूंकि मालदीव की औसत ऊंचाई सिर्फ 1.5 मीटर है, और सबसे ऊंचा स्थान 2.4 मीटर है, ऐसे में यह देश समुद्र में समा सकता है.
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि मालदीव के 90% से अधिक द्वीपों में तटीय कटाव हो रहा है, जबकि 97% द्वीपों में पीने योग्य पानी का संकट गहराता जा रहा है. ऐसे में यह आशंका जताई जा रही है कि अगले 75 वर्षों में मालदीव का पूरा भू-भाग जलमग्न हो सकता है.
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