Hindu Kush Himalaya: धरती के छत यानी हिंदू कुश हिमालय की बर्फ पिघलने का खतरा अब और गहरा होता जा रहा है. वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि अगर वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी होती है, तो इस सदी के अंत तक यहां की 75 प्रतिशत बर्फ पिघल सकती है. इसका सीधा असर करीब दो अरब लोगों के जीवन और पानी की उपलब्धता पर पड़ेगा. लेकिन अगर हम समय रहते कदम उठाएं और तापमान वृद्धि को पेरिस समझौते के मुताबिक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर पाएं, तो ग्लेशियरों की लगभग 40-45 फीसदी बर्फ बचाई जा सकती है.
खतरे में हैं ये पर्वतमालाएं
यह चिंता केवल हिंदू कुश हिमालय तक सीमित नहीं है. यूरोप के आल्प्स, अमेरिका- कनाडा की रॉकी पर्वतमालाएं, और आइसलैंड जैसे क्षेत्रों में भी बर्फ के पिघलने की आशंका बढ़ रही है. स्कैंडिनेविया में तो पूरी बर्फ खत्म हो जाने की संभावना है. वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया, तो दुनिया भर की सिर्फ 25 फीसदी बर्फ बचेगी.
ताजिकिस्तान में UN का पहला ग्लेशियर सम्मेलन
इस वैश्विक चुनौती को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने ताजिकिस्तान के दुशांबे में पहला ग्लेशियर सम्मेलन बुलाया है, जिसमें 50 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं. एशियाई विकास बैंक के उपाध्यक्ष यिंगमिंग यांग ने इस मौके पर कहा कि पिघलते ग्लेशियर करोड़ों लोगों की आजीविका को खतरे में डाल रहे हैं. उन्होंने स्वच्छ ऊर्जा अपनाने और प्रभावित लोगों के लिए फंडिंग बढ़ाने पर ज़ोर दिया.
कैसे हुआ अध्ययन?
इस अध्ययन को 10 देशों के 21 वैज्ञानिकों ने मिलकर तैयार किया है. उन्होंने 2 लाख से अधिक ग्लेशियरों के डाटा और 8 अलग-अलग मॉडल की मदद से यह भविष्यवाणी की है कि ग्लेशियरों की बर्फ तापमान के बदलाव के हिसाब से कैसे घटेगी. शोधकर्ताओं का मानना है कि हर आधा डिग्री तापमान वृद्धि भी बहुत मायने रखती है और आज के फैसले आने वाली पीढ़ियों के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे.
इससे साफ है कि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए अब वक्त का इंतजार नहीं किया जा सकता. हिमालय और बाकी ग्लेशियर क्षेत्रों की बर्फ बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर ठोस कदम उठाना बेहद जरूरी है, ताकि अरबों लोगों के लिए जल संकट और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव संभव हो सके.
ये भी पढ़ें: इन देशों में लोग पीते हैं सांप का खून! शरीर पर नहीं होता ज़हर का असर, आखिर क्या है इसका रहस्य?