जयपुर: हर किसी की ज़िंदगी में एक ऐसा मोड़ आता है, जब रास्ता चुनना या ठहर जाना—दोनों में फर्क सिर्फ सोच का होता है. जयपुर के 71 वर्षीय ताराचंद अग्रवाल ने यह साबित कर दिया कि उम्र केवल एक संख्या है, और सीखने की कोई सीमा नहीं होती.
एक समय था जब वे स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर में असिस्टेंट जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत थे. 2014 में रिटायर हुए और ज़िंदगी सामान्य रफ्तार से चल रही थी. लेकिन 2020 में कोविड के दौरान पत्नी के निधन ने सब बदल दिया. गहरी उदासी में डूबे ताराचंद ने फिर खुद को संभालने के लिए किताबों का सहारा लिया — और आज वे चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) बन चुके हैं.
किताबों के सहारे अकेलेपन से बाहर निकले
ताराचंद बताते हैं, "पत्नी के जाने के बाद सब कुछ थम सा गया था. बच्चों और पोतियों का साथ तो था, लेकिन मन नहीं लगता था." बच्चों ने पढ़ाई का सुझाव दिया. पहले पीएचडी की सोची, लेकिन जब पोती ने कहा, "दादाजी, जब आप मुझे गाइड कर सकते हैं, तो खुद CA क्यों नहीं कर सकते?"—तो मानो मन में नई ऊर्जा आ गई.
तीन साल की मेहनत और 71वें साल में सफलता
2021 में CA की तैयारी का फैसला किया. बिना कोचिंग, बिना ट्यूटर, सिर्फ किताबों, यूट्यूब और सोशल मीडिया के ज़रिए तैयारी शुरू की.
लिखने में तकलीफ, लेकिन जज्बे में कमी नहीं
उम्र के साथ चुनौतियां भी थीं. कंधों की तकलीफ के कारण लिखना कठिन हो गया था. लेकिन हार नहीं मानी—हर दिन 2-4 घंटे लिखने की प्रैक्टिस की, और फिर धीरे-धीरे 10 घंटे की पढ़ाई तक का सफर तय किया.
उन्होंने बताया, "इंटर की तैयारी शोरूम के काउंटर पर बैठकर की. वहीं ग्राहक भी अटेंड करता और किताबें भी पढ़ता."
जब परीक्षा देने पहुंचे तो लोगों ने समझा पेपर लेने आए हैं. परीक्षा सेंटर पर कई छात्रों को जब पता चला कि वे भी परीक्षा देने आए हैं, तो उन्हें हैरानी हुई. "अंकल, आप हमारे साथ परीक्षा दे रहे हो? बहुत अच्छा लग रहा है", यह सुनकर उनका हौसला और बढ़ गया.
परिवार बना सबसे मजबूत सहारा
बड़े बेटे ललित खुद एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और दिल्ली में प्रैक्टिस करते हैं, जबकि छोटे बेटे अमित टैक्स कंसल्टेंट हैं. बहुएं और पोतियां भी इस सफर में प्रेरणास्रोत बनीं. यही पारिवारिक समर्थन उनके लिए सबसे बड़ा संबल बना.
शोरूम वाले अंकल से CA अंकल तक
आज जब ताराचंद किसी से मिलते हैं, तो लोग उन्हें ‘सीए अंकल’ कहकर पुकारते हैं. आस-पड़ोस और रिश्तेदारों के बच्चे उनसे गाइडेंस लेने आते हैं. उनका मानना है कि जिसने खुद संघर्ष किया हो, वही दूसरों को सही राह दिखा सकता है.
उनकी सलाह: डरिए मत, सीखते रहिए
ताराचंद कहते हैं, "डरने से कुछ नहीं होगा. मेहनत ही रास्ता है. आज की पढ़ाई सिर्फ पास होने तक सीमित रह गई है, जबकि असली शिक्षा तो समझने से आती है. सीखना बंद नहीं करना चाहिए, चाहे आप किसी भी उम्र में क्यों न हों."
नतीजा? एक प्रेरणा, एक मिसाल
ताराचंद अग्रवाल की यह यात्रा केवल एक परीक्षा पास करने की कहानी नहीं है, यह हौसले, धैर्य और खुद से किए गए वादे की मिसाल है. वे उन लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो सोचते हैं कि अब ज़िंदगी में कुछ नया करना संभव नहीं.
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