जब भी ममी शब्द सुनते हैं, तो ज़ेहन में मिस्र के रेगिस्तान और पिरामिडों की छवि उभरती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के हिमालयी क्षेत्र में भी एक ममी मौजूद है, जो न केवल वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बनी हुई है, बल्कि आस्था का प्रतीक भी है? हिमाचल प्रदेश के स्पीति जिले के गयू गांव में स्थित यह ममी लगभग 550 साल पुरानी मानी जाती है. यह ममी एक बौद्ध भिक्षु लामा सांगला तेनजिंग की है, जिन्होंने तपस्या की अवस्था में ही प्राण त्याग दिए थे. विशेष बात यह है कि यह ममी आज भी ध्यान मुद्रा में बैठी हुई अवस्था में सुरक्षित है जो कि दुनिया में अत्यंत दुर्लभ है.
हिमालय में छुपा मिस्र जैसा रहस्य
गयू गांव, जो समुद्र तल से लगभग 10,499 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, साल में अधिकांश समय बर्फ़ से ढका रहता है. यह गांव, लाहौल-स्पीति की ऐतिहासिक ताबो मठ से लगभग 50 किलोमीटर दूर भारत-चीन सीमा के समीप स्थित है. प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस क्षेत्र में आने वाले अधिकांश पर्यटक इस प्राचीन ममी को देखने के लिए ही यहां की कठिन यात्रा तय करते हैं.
विज्ञान भी हैरान, आस्था अडिग
इस ममी की सबसे बड़ी रहस्यात्मक बात यह है कि इसमें किसी भी तरह के संरक्षण लेप या रासायनिक प्रक्रिया का उपयोग नहीं किया गया है. फिर भी यह सदियों से सुरक्षित है. स्थानीय लोग दावा करते हैं कि ममी के बाल और नाखून आज भी बढ़ते हैं, जिससे इसे ‘जीवित भगवान’ की संज्ञा दी जाती है.
इतना ही नहीं, 1975 में आए एक भूकंप में यह ममी मिट्टी में दब गई थी. फिर 1995 में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) को सड़क निर्माण के दौरान यह ममी दोबारा मिली. कहा जाता है कि खुदाई में कुदाल के लगने से ममी के सिर से खून निकल आया था, जो आज भी एक ताज्जुब भरा विषय है.
शोध और मान्यताएं
पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ता विक्टर मैर के अनुसार, यह ममी 550 साल पुरानी है. तिब्बत और भारत के बीच प्राचीन समय में व्यापार और धार्मिक यात्रा आम थी. इसी सिलसिले में लामा तेनजिंग गयू गांव में आए और वहां ध्यान साधना में लीन होकर समाधिस्थ हो गए.
कैसे पहुंचें गयू गांव?
गयू गांव तक पहुंचने के लिए आप शिमला या मनाली से होकर स्पीति घाटी की यात्रा कर सकते हैं. रास्ते दुर्गम जरूर हैं, लेकिन जो रहस्य यहां आपका इंतजार कर रहा है, वो हर कदम को सार्थक बनाता है. 2009 तक यह ममी ITBP कैंपस में रखी गई थी, लेकिन बाद में श्रद्धालुओं की सुविधा और श्रद्धा को ध्यान में रखते हुए इसे गांव में एक सुरक्षित स्थान पर स्थापित कर दिया गया.
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