रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है और अब यह न केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष रह गया है, बल्कि वैश्विक भू-राजनीतिक शक्ति संतुलन का प्रतीक बन चुका है. इस बीच, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने एक अहम घोषणा की है, जो भविष्य में यूक्रेन की सुरक्षा संरचना को पूरी तरह से बदल सकती है.
मैक्रों ने जानकारी दी है कि 26 देशों ने यूक्रेन को युद्धोत्तर सुरक्षा गारंटी (Post-War Security Guarantee) देने का वादा किया है. साथ ही, एक अंतरराष्ट्रीय बल (International Force) को यूक्रेन या उसकी सीमाओं के आसपास तैनात करने की योजना पर भी सहमति बनी है. यह कदम पश्चिमी सहयोगियों की ओर से रूस के खिलाफ एक रणनीतिक जवाब के रूप में देखा जा रहा है.
‘कोएलिशन ऑफ द विलिंग’ की बड़ी बैठक
फ्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित ‘कोएलिशन ऑफ द विलिंग’ (Coalition of the Willing) समिट में 35 देशों के नेता शामिल हुए. इस मंच पर यूरोपीय संघ (EU), नाटो (NATO), कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान जैसे देशों ने भाग लिया और यूक्रेन को दी जाने वाली सुरक्षा गारंटी पर चर्चा की.
इस बैठक में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने भी भाग लिया और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अलग से समर्थन की मांग की. जेलेंस्की ने जोर देकर कहा कि यह पहल रूस के संभावित आक्रमणों से स्थायी सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम हो सकती है.
मैक्रों की घोषणा: युद्ध खत्म होते सुरक्षा गारंटी लागू
मैक्रों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट किया कि यह सुरक्षा गारंटी तब प्रभावी होगी जब रूस-यूक्रेन युद्ध औपचारिक रूप से समाप्त हो जाएगा. इसके तहत:
समिट में यह भी तय हुआ कि कई देश यूक्रेन को प्रत्यक्ष रूप से सैनिक नहीं भेजेंगे, लेकिन अन्य माध्यमों से सहयोग करेंगे, जैसे:
इस सहयोग में कुछ देश सीमा पार से भी समर्थन देंगे ताकि युद्ध के बाद यूक्रेनी सेना की पुनर्संरचना और सुरक्षा तंत्र मजबूत किया जा सके.
कौन-कौन से देश शामिल, और किन्होंने मना किया?
हालांकि 26 देशों ने गारंटी देने का ऐलान किया है, सभी ने सैनिक भेजने पर सहमति नहीं जताई है.
इटली, जर्मनी और स्पेन जैसे देशों ने कहा है कि वे युद्ध क्षेत्र में सैनिक नहीं भेजेंगे, लेकिन यूक्रेन के बाहर से सहायता देने को तैयार हैं.
इटली की स्थिति:
इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने यह साफ कर दिया कि वे अपनी सेनाएं यूक्रेन नहीं भेजेंगी, लेकिन युद्धविराम की निगरानी और यूक्रेनी सैनिकों को प्रशिक्षण देने में सहयोग करेंगी.
अमेरिका की स्थिति:
अमेरिका की ओर से इस समिट में विशेष दूत स्टीव विटकॉफ शामिल हुए. अमेरिकी प्रतिनिधि ने फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली और यूक्रेन के वरिष्ठ राजनयिकों से अलग बैठकें भी कीं. हालांकि, यह अभी तय नहीं है कि अमेरिका कितनी सैन्य भागीदारी करेगा. अमेरिका की अंतिम भूमिका पर निर्णय कुछ दिनों में लिया जाएगा.
यूक्रेन की प्रतिक्रिया: सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक कदम
राष्ट्रपति जेलेंस्की ने इस सुरक्षा गारंटी को एक "ऐतिहासिक पहल" बताते हुए कहा कि यह यूक्रेन के भविष्य की रक्षा के लिए बेहद आवश्यक है. उन्होंने कहा, "यह कदम न केवल युद्ध को रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि यूक्रेन की स्वतंत्रता, संप्रभुता और स्थायित्व की दिशा में एक ठोस बुनियाद भी रखता है."
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि रूस की तरफ से युद्ध रोकने का कोई संकेत फिलहाल नजर नहीं आ रहा है, इसलिए इस तरह के सुरक्षा उपाय बेहद जरूरी हैं.
डोनाल्ड ट्रंप और पुतिन की मुलाकात
यूक्रेन की सुरक्षा के लिए समर्थन जुटाने के प्रयासों के बीच एक और बड़ा घटनाक्रम सामने आया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 15 अगस्त को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से अलास्का में मुलाकात की. यह 80 वर्षों में पहली बार था जब कोई रूसी राष्ट्रपति अलास्का की यात्रा पर आया.
हालांकि इस बैठक से सीजफायर या शांति वार्ता को लेकर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई. ट्रंप ने संकेत दिया कि वे शांति के लिए कोशिश कर रहे हैं, लेकिन किसी समझौते पर पहुंचना आसान नहीं है.
रूस-यूक्रेन युद्ध की वर्तमान स्थिति
रूस ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर सैन्य आक्रमण किया था. इस युद्ध का मुख्य कारण रूस द्वारा यूक्रेनी क्षेत्रों पर दावा और कब्जा करने की कोशिश है. अब तक:
युद्ध की अवधि बढ़ने के साथ ही इसके प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा बाजार और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर भी गहराई से पड़ रहे हैं.
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