इस्लामाबाद: पाकिस्तान में हालिया घटनाओं ने देश की राजनीतिक और सुरक्षा स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया है. खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के नौशेरा जिले में हुए आत्मघाती हमले में मौलाना हामिद उल-हक की मौत के बाद, कट्टरपंथी संगठनों की सक्रियता और सरकार के खिलाफ उनका आक्रोश और भी तेज हो गया है.
इस्लामी शासन लागू करने की शपथ
मौलाना हामिद उल-हक, जो कि दारुल उलूम हक्कानिया के उप प्रमुख थे, उनकी मौत के बाद उनके समर्थकों में भारी रोष है. उनके पुत्र, मौलाना अब्दुल हक सानी ने अपने पिता के अंतिम संस्कार में घोषणा की कि वे पाकिस्तान में इस्लामी शासन लागू करेंगे. उन्होंने कहा, "यह देश हमारा है, और हम अपने शहीदों के खून का बदला लेंगे."
नया नेतृत्व और तालिबान का समर्थन
दारुल उलूम हक्कानिया, जिसे तालिबान समर्थक मदरसा माना जाता है, ने मौलाना रशीद उल-हक को नया उप प्रमुख नियुक्त किया है. इस निर्णय की घोषणा हजारों समर्थकों की उपस्थिति में की गई. मौलाना इरफान उल-हक हक्कानी ने इस अवसर पर कहा कि यह फैसला सर्वसम्मति से लिया गया और समुदाय ने इसका पूरा समर्थन किया.
सरकार के लिए बढ़ती चुनौती
इस घटना के बाद पाकिस्तान सरकार पर कट्टरपंथी संगठनों का दबाव बढ़ता जा रहा है. तालिबान समर्थक गुटों ने खुलेआम सरकार को चुनौती दी है और देश में शरिया कानून लागू करने की प्रतिबद्धता जताई है. मौलाना रशीद उल-हक ने अपने भाषण में कहा, "हम धमकियों और हमलों से डरने वाले नहीं हैं. जब तक हम जिंदा हैं, इस्लामी कानून की स्थापना के लिए संघर्ष जारी रहेगा."
हमले के पीछे कौन?
खैबर-पख्तूनख्वा के नौशेरा जिले में हुए आत्मघाती हमले में मौलाना हामिद उल-हक की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. इस हमले की जिम्मेदारी किसी भी समूह ने अभी तक नहीं ली है, लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों की राजनीति का हिस्सा हो सकता है.
सरकार की प्रतिक्रिया
शहबाज शरीफ सरकार पर इस बढ़ते संकट से निपटने का दबाव बढ़ गया है. सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट पर रखा गया है और कट्टरपंथी गुटों की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है. पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने इस हमले की विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं और कहा है कि देश की शांति भंग करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.
भविष्य की दिशा
पाकिस्तान में इस्लामिक शासन लागू करने की तालिबान समर्थक गुटों की घोषणाएं और सरकार के खिलाफ उनका आक्रोश देश के लिए गंभीर सुरक्षा चुनौती पेश कर सकता है. ऐसे में सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वह कट्टरपंथी ताकतों से निपटते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रख सके.
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