क्यों छिड़ी थी 1965 की भारत-पाकिस्तान जंग, क्या था 'ऑपरेशन जिब्राल्टर' जो बना टकराव की वजह?

    6 सितंबर 1965- यह तारीख भारतीय सैन्य इतिहास में उस दिन के रूप में दर्ज है, जब देश ने अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए एक निर्णायक युद्ध लड़ा और अपने दुश्मन को करारा जवाब दिया.

    Why did the India-Pakistan war of 1965 start
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ Social Media

    India-Pakistan War: 6 सितंबर 1965- यह तारीख भारतीय सैन्य इतिहास में उस दिन के रूप में दर्ज है, जब देश ने अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए एक निर्णायक युद्ध लड़ा और अपने दुश्मन को करारा जवाब दिया. भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 का युद्ध केवल एक सीमित सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि यह दोनों देशों की रणनीतिक सोच, सैन्य कौशल और राजनीतिक मंशा की परीक्षा बन गया.

    1947 में जब भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र देशों के रूप में अस्तित्व में आए, तब से ही कश्मीर को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव बना रहा. पाकिस्तान की यह लगातार रणनीति रही है कि कश्मीर को भारत से अलग कर उसे अपने साथ जोड़ा जाए. 1947-48 में पहला भारत-पाक युद्ध हुआ था, जो संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता के बाद रुका, लेकिन मसला जस का तस बना रहा.

    ऑपरेशन जिब्राल्टर: पाकिस्तान का घुसपैठ

    1965 की गर्मियों में पाकिस्तान ने एक बेहद महत्वाकांक्षी और गुप्त सैन्य योजना बनाई- ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’. इसका उद्देश्य था जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करके वहां के स्थानीय मुस्लिम आबादी को भारत सरकार के खिलाफ भड़काना और विद्रोह को हवा देना.

    पाकिस्तान ने हजारों प्रशिक्षित सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को नागरिकों के वेश में कश्मीर में भेजा.

    इन घुसपैठियों को निर्देश दिया गया था कि वे भारत विरोधी माहौल पैदा करें, हथियार छिपाएं और सरकारी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाएं.

    पाकिस्तान को उम्मीद थी कि कश्मीर के मुसलमान बड़ी संख्या में उसका समर्थन करेंगे और एक जनविद्रोह खड़ा हो जाएगा. लेकिन उसकी यह उम्मीद बुरी तरह विफल हो गई. कश्मीर की जनता ने इन घुसपैठियों को नकार दिया और भारतीय सेना को उनके ठिकानों की जानकारी दी.

    सीमाओं से आगे बढ़कर भारत का हमला

    पाकिस्तान की इस छिपी हुई रणनीति के खिलाफ भारत ने जवाबी कार्रवाई में कोई देरी नहीं की. पहले तो भारतीय सेना ने कश्मीर में घुसपैठियों को खदेड़ना शुरू किया और फिर पाकिस्तान को करारा संदेश देने के लिए 6 सितंबर 1965 को अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर लाहौर की ओर बढ़ना शुरू कर दिया.

    भारतीय सेना ने लाहौर और सियालकोट सेक्टरों में बड़ी सैन्य कार्रवाई शुरू की.

    यह कार्रवाई द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की सबसे बड़ी टैंक जंग में बदल गई, जिसे ‘बड़ी लड़ाई की छोटी अवधि’ के रूप में याद किया जाता है.

    17 दिनों तक चली भयंकर जंग

    यह युद्ध केवल सीमित इलाकों में ही नहीं, बल्कि पंजाब, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर और गुजरात तक फैला. कई महत्वपूर्ण और निर्णायक मोर्चे सामने आए:

    • असल उत्तर (अखनोरा सेक्टर): यहां भारतीय सेना ने पाकिस्तान के ‘ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम’ को विफल किया.
    • खेमकरण: यहां भारत ने पाकिस्तान की अग्रणी बख्तरबंद टुकड़ियों को पीछे धकेला.
    • सियालकोट सेक्टर: टैंकों की ऐतिहासिक भिड़ंत जिसमें भारत ने महत्वपूर्ण रणनीतिक बढ़त हासिल की.

    वायुसेना और नौसेना की भूमिका

    भारतीय वायुसेना ने युद्ध में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तानी हवाई ठिकानों और सेना के काफिलों को निशाना बनाया. भारत की नौसेना भी पश्चिमी समुद्री सीमा पर सतर्क रही, हालांकि यह युद्ध मुख्यतः थल पर लड़ा गया.

    अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप और युद्धविराम

    • जैसे-जैसे युद्ध तेज हुआ और दोनों देशों को सैन्य व आर्थिक नुकसान होने लगा, वैसे ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय सक्रिय हुआ.
    • संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने दोनों देशों पर युद्ध रोकने का दबाव डाला.
    • अंततः 23 सितंबर 1965 को युद्धविराम की घोषणा हुई.

    ताशकंद समझौता: युद्ध के बाद की सुलह

    युद्धविराम के बाद 10 जनवरी 1966 को सोवियत संघ की मध्यस्थता में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच ताशकंद समझौता हुआ.

    इस समझौते में:

    • दोनों देश एक-दूसरे के कब्जे वाले क्षेत्रों से पीछे हटे.
    • युद्ध से पहले की स्थिति बहाल की गई.
    • भविष्य में संघर्ष न करने की बात कही गई.

    लेकिन यह समझौता भारत के लिए दुखद भी साबित हुआ क्योंकि लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु ताशकंद में रहस्यमयी परिस्थितियों में हो गई, जिससे देश में शोक की लहर दौड़ गई.

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