भारत के ब्रह्मास्त्र की कहानी: जिस ब्रह्मोस मिसाइल ने पाकिस्तान में मचाया तांडव, उसे किसने बनाया?

    भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन सिंदूर' चलाया और आतंकवाद के अड्डों को जड़ से उखाड़ फेंका. इस सटीक और घातक कार्रवाई में सबसे अहम हथियार ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनी. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस खतरनाक मिसाइल को बनाने वाला वो वैज्ञानिक कौन है, जिसने भारत को ये क्षमता दी?

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    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Internet

    Who is Father of BrahMos Missile: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर भारत को झकझोर कर रख दिया. लेकिन इस बार देश ने सिर्फ शोक नहीं मनाया—बल्कि सीधे जवाब दिया. 7 मई को भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन सिंदूर' चलाया और आतंकवाद के अड्डों को जड़ से उखाड़ फेंका. इस सटीक और घातक कार्रवाई में सबसे अहम हथियार ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनी. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस खतरनाक मिसाइल को बनाने वाला वो वैज्ञानिक कौन है, जिसने भारत को ये क्षमता दी?

    डॉ. शिवाथनु पिल्लई हैं फादर ऑफ ब्रह्मोस

    डॉ. एस. पिल्लई, जिन्हें आज 'फादर ऑफ ब्रह्मोस' कहा जाता है, वो वैज्ञानिक हैं जिनकी दूरदर्शिता और तकनीकी नेतृत्व के बिना ये मिसाइल सपना ही रह जाती. वे ब्रह्मोस एयरोस्पेस के संस्थापक, CEO और MD रहे हैं. यह कंपनी भारत के DRDO और रूस की NPO Mashinostroyeniya के बीच बनी संयुक्त परियोजना (Joint Venture) है. मिसाइल तकनीक में भारत की ताकत को उन्होंने वैज्ञानिक से रणनीतिक स्तर तक पहुंचाया.

    कहां से शुरू हुआ सफर?

    डॉ. पिल्लई की यात्रा ISRO से शुरू हुई, जहां उन्होंने डॉ. विक्रम साराभाई, सतीश धवन और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ काम किया. वे SLV-III (India’s Satellite Launch Vehicle) की कोर टीम का हिस्सा रहे. उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट (मद्रास यूनिवर्सिटी) की. मैनेजमेंट की पढ़ाई हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से की. 1986 में DRDO से जुड़े और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.

    ब्रह्मोस का नाम और आत्मनिर्भरता की उड़ान

    क्या आप जानते हैं ‘ब्रह्मोस’ नाम कैसे पड़ा? यह नाम दो नदियों — भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा — को जोड़कर बना है. यह भारत-रूस सहयोग का प्रतीक है, जिसने इस मिसाइल को जन्म दिया.

    ब्रह्मोस: सिर्फ मिसाइल नहीं, भारत की रणनीतिक चतुराई का प्रतीक

    ब्रह्मोस मिसाइल की गति 2.8 मैक है यानी ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना तेज है. यह जल, थल और वायु — तीनों जगहों से लॉन्च की जा सकती है. इसे सुखोई-30MKI जैसे फाइटर जेट से भी छोड़ा जा सकता है. ब्रह्मोस की स्पीड, सटीकता और दुश्मन को चौंका देने की क्षमता ही उसकी खासियत है. ब्रह्मोस मिसाइल आज केवल एक हथियार नहीं, बल्कि भारतीय आत्मविश्वास और तकनीकी आत्मनिर्भरता की उड़ान है. डॉ. शिवाथनु पिल्लई जैसे वैज्ञानिकों ने हमें यह सिखाया कि जब सपनों के साथ योजना और मेहनत जुड़ जाती है, तो भारत दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं को भी पीछे छोड़ सकता है.

    सम्मान और गौरव

    डॉ. पिल्लई को उनके योगदान के लिए पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिल चुके हैं. उनका नाम आज सिर्फ एक वैज्ञानिक के तौर पर नहीं, बल्कि एक रणनीतिक विजनरी के रूप में लिया जाता है.

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