नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना (IAF) आज एक ऐसे अहम मोड़ पर खड़ी है, जहां उसे भविष्य की हवाई सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक बड़े और निर्णायक कदम की आवश्यकता है. जैसे ही सितंबर 2025 में आखिरी मिग-21 विमान को सेवा से हटा दिया जाएगा, वायुसेना की स्क्वॉड्रन ताकत घटकर केवल 29 स्क्वॉड्रन रह जाएगी. लेकिन भारत की रणनीतिक जरूरतों को देखते हुए यह संख्या कम से कम 42 स्क्वॉड्रन होनी चाहिए.
इसके बाद आने वाले कुछ वर्षों में मिग-29, मिराज-2000 और जगुआर जैसे पुराने लड़ाकू विमानों को भी सेवा से बाहर करना होगा. इसका मतलब है कि आने वाले समय में भारतीय वायुसेना की रीढ़ केवल तीन प्रमुख विमानों- सुखोई-30 MKI, एलसीए तेजस, और राफेल पर ही टिकेगी. हालांकि, ये सभी 4.5 जेनरेशन के फाइटर जेट हैं, जबकि दुनिया अब पांचवीं और छठी पीढ़ी की ओर बढ़ चुकी है.
चीन-पाकिस्तान-तुर्की का 'स्टील्थ' गठजोड़
भारत के सामने खतरा केवल तकनीकी पिछड़ापन नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय दुश्मनों का बढ़ता सहयोग भी है. चीन के पास पहले से ही J-20 जैसे पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स हैं और वह जल्दी ही अपना दूसरा स्टील्थ विमान J-35 पाकिस्तान को देने वाला है.
इसके साथ ही तुर्की ने भी पाकिस्तान को अपने KAAN फाइटर की पेशकश की है, जो एक और उभरता हुआ स्टील्थ लड़ाकू विमान है. ऐसे में भारत के सामने यह खतरा खड़ा हो गया है कि उसके आस-पास के देशों के पास स्टील्थ क्षमताओं से लैस आधुनिक फाइटर जेट्स होंगे, और भारत की वायु शक्ति अपेक्षाकृत कमजोर पड़ सकती है.
भारत के पास क्या विकल्प हैं?
1. अमेरिकी F-35: ताकतवर लेकिन महंगा
अमेरिका का F-35 लाइटनिंग II दुनिया का सबसे उन्नत पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है. यह स्टील्थ, सेंसर फ्यूजन, नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर और उच्च मारक क्षमता से लैस है. लेकिन इसकी लागत प्रति विमान लगभग $100 मिलियन (₹865 करोड़) तक है.
सिर्फ कीमत ही समस्या नहीं है. अमेरिका अपने रणनीतिक साझेदारों को भी कई बार डिग्रेडेड एक्सपोर्ट वर्जन देता है. यानी भारत को मिलने वाला F-35, अमेरिका की वायुसेना के स्टैंडर्ड से कमतर हो सकता है. इसके अलावा, अमेरिका की विदेश नीति में अस्थिरता और सैन्य निर्यात की सख्त शर्तें भी चिंता का विषय हैं.
2. रूस का Su-57E: सस्ता लेकिन जोखिम
रूस का Su-57E फिफ्थ जेनरेशन स्टील्थ फाइटर है, जिसकी कीमत करीब $65 मिलियन (₹562 करोड़) बताई जाती है. यदि भारत इसका को-प्रोडक्शन करता है, तो इसकी लागत और भी कम हो सकती है. तकनीकी रूप से यह उन्नत है, लेकिन इसका ट्रैक रिकॉर्ड और विश्वसनीयता अभी उतनी परखी नहीं गई है.
रूस के प्लेटफॉर्म आमतौर पर लो लाइफ-साइकिल, कम तकनीकी सपोर्ट, और अपग्रेडेशन में दिक्कत जैसे मुद्दों से घिरे रहते हैं. साथ ही, रूस की मौजूदा राजनीतिक स्थिति और प्रतिबंधों के चलते लॉजिस्टिक सप्लाई में भी समस्या आ सकती है.
3. राफेल खरीदना: भरोसेमंद लेकिन सीमित
फ्रांस का राफेल भारत में पहले से सेवा में है और इसे Combat Proven माना जाता है. इसमें मजबूत एविऑनिक्स, सेंसर और हथियार प्रणाली है. भारत अगर राफेल की संख्या बढ़ाता है, तो उसे इंटीग्रेशन में कम समय लगेगा और मौजूदा पायलट/ग्राउंड क्रू भी पहले से प्रशिक्षित हैं.
हालांकि, इसकी भी कुछ सीमाएं हैं:
स्वदेशी विकल्प: AMCA कब तक?
भारत का स्वदेशी Advanced Medium Combat Aircraft (AMCA) प्रोजेक्ट अभी डिजाइन और विकास के शुरुआती चरण में है. उम्मीद है कि इसका पहला स्क्वॉड्रन 2032–33 तक सेवा में आएगा. यानी अगले कम से कम 7–8 साल तक भारतीय वायुसेना को विदेशी विकल्पों पर निर्भर रहना पड़ेगा.
'ऑपरेशन सिंदूर' से मिली सच्चाई
हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, भारतीय वायुसेना और पाकिस्तान के बीच आसमान में सीधा मुकाबला हुआ. इस दौरान यह साफ हो गया कि आधुनिक युद्ध में सिर्फ पायलट की बहादुरी या फाइटर जेट की स्पीड मायने नहीं रखती, बल्कि सेंसर फ्यूजन, डेटा लिंकिंग, और इंटरऑपरेबिलिटी जैसी तकनीकी क्षमताएं युद्ध की दिशा तय करती हैं.
इसी ऑपरेशन के दौरान यह भी देखने को मिला कि भारत के पास मौजूद विभिन्न फाइटर प्लेटफॉर्म्स के बीच डेटा और कम्युनिकेशन शेयरिंग की व्यवस्था अधूरी थी, जिससे कॉम्बैट एफिशिएंसी पर असर पड़ा.
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