क्वेटा से उठती एक और खामोश चीख. बलूचिस्तान एक बार फिर अंधेरे में धकेला गया है इस बार सचमुच डिजिटल अंधेरे में. महज़ एक महीने के भीतर यह तीसरी बार हुआ है जब पूरे बलूचिस्तान में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं. कभी सुरक्षा के नाम पर, कभी धार्मिक जुलूसों की आड़ में लेकिन इन तमाम वजहों के पीछे जो असलियत छुपी है, वो अब अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की नज़र में भी आने लगी है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी प्रतिष्ठित मानवाधिकार संस्था ने इस घटना की कड़ी आलोचना की है. उनका कहना है कि ये केवल तकनीकी फैसला नहीं है यह लोगों के मौलिक अधिकारों पर सीधा हमला है.
इंटरनेट बंद होने से रुक जाती हैं ज़िंदगियां
बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा, लेकिन सबसे कम विकसित प्रांत है. यहाँ के लाखों लोग मोबाइल इंटरनेट पर ही निर्भर हैं पढ़ाई, रोज़गार, व्यापार, और अपने परिवारों से संपर्क तक के लिए. लेकिन जब बार-बार बिना किसी ठोस वजह के इंटरनेट बंद किया जाता है, तो इसका असर केवल सोशल मीडिया या वीडियो कॉल पर नहीं होता इसका असर होता है पूरी ज़िंदगी पर.
एक स्थानीय महिला कार्यकर्ता युसरा ने अपनी तकलीफ़ साझा करते हुए बताया कि अब उन्हें हर बैठक या आयोजन से पहले यह डर सताता है कि कहीं पहुंचते ही इंटरनेट बंद न कर दिया जाए. उन्होंने कहा, "ये इतना आम हो चुका है कि हम अब इसकी उम्मीद करने लगे हैं. हर बार जब कोई विरोध होता है, या कोई छोटी सभा आयोजित की जाती है इंटरनेट गायब हो जाता है. हमें नहीं लगता कि ये हमारी सुरक्षा के लिए है. इससे हमें और असुरक्षा महसूस होती है."
सुरक्षा की आड़ में सेंसरशिप?
5 सितंबर को, पाकिस्तानी प्रशासन ने शाम 5 बजे से अगले दिन रात 9 बजे तक बलूचिस्तान में 3G और 4G सेवाएं बंद करने की घोषणा कर दी. कारण बताया गया "कानून-व्यवस्था की स्थिति" और "धार्मिक जुलूस".
क्या हर बार सुरक्षा ही एकमात्र वजह है?
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सूचना के अधिकार, और शांतिपूर्ण एकत्र होने के अधिकार पर सीधा हमला है.
बलूचिस्तान की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा अब यह मानने लगा है कि यह इंटरनेट शटडाउन असल में इसलिए किए जाते हैं ताकि उनकी आवाज़ बाकी पाकिस्तान और पूरी दुनिया तक न पहुंच सके.
सेमिनार से लेकर कारोबार तक, हर चीज़ ठप
युसरा ने बताया कि कुछ महीने पहले जब उन्होंने बलूचिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति पर एक ऑनलाइन सेमिनार आयोजित करने की कोशिश की, तो सेमिनार शुरू होने से महज़ दो घंटे पहले पूरे क्वेटा शहर में इंटरनेट बंद कर दिया गया. अंत में उन्हें कार्यक्रम रद्द करना पड़ा.
उन्होंने कहा, "हमारा पूरा जीवन अब इंटरनेट पर आधारित है. क्वेटा की एक महिला जो घरेलू खाने का व्यवसाय चलाती है, वो अब ऑर्डर नहीं ले सकती. डिलीवरी नहीं कर सकती. छात्र अपनी असाइनमेंट नहीं भेज सकते. ये केवल तकनीकी समस्या नहीं है, ये ज़िंदगी की रुकावट है."
हाईकोर्ट का आदेश भी बेअसर
6 अगस्त को जब इसी तरह का एक और ब्लैकआउट किया गया था, तब बलूचिस्तान हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि मोबाइल इंटरनेट सेवाएं तुरंत बहाल की जाएं. कोर्ट ने माना कि यह फैसला व्यापक रूप से लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
लेकिन इस आदेश के महज़ 15 दिन बाद, 30 अगस्त को सरकार ने फिर इंटरनेट बंद कर दिया. यानी कोर्ट की बात भी सरकार के लिए शायद कोई मायने नहीं रखती.
हमारी आवाज़ नहीं पहुंचने दी जाती- कार्यकर्ता
युसरा का दर्द इस बात में साफ झलकता है कि जब कोई भी विरोध प्रदर्शन या सूचना प्रसारित करने की कोशिश होती है, तो सबसे पहला हमला इंटरनेट पर किया जाता है. उन्होंने कहा, "कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे हम किसी दूसरी दुनिया में हैं. बाकी देश और दुनिया से कटे हुए. इंटरनेट नहीं है, तो कोई देख ही नहीं पाता कि यहाँ क्या हो रहा है."
उन्होंने आगे कहा कि एक पूरी पीढ़ी ऐसी बन रही है जो सूचना से वंचित है जो केवल इसलिए पीछे रह जा रही है क्योंकि उनकी आवाज़ को जानबूझकर दबाया जा रहा है.
क्या बलूचिस्तान में मानवाधिकार मायने नहीं रखते?
बलूचिस्तान, जो पहले से ही शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे की कमी से जूझ रहा है, अब सूचना के अधिकार से भी वंचित किया जा रहा है. एमनेस्टी इंटरनेशनल और अन्य मानवाधिकार समूह इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि यह केवल सुरक्षा का मामला नहीं, यह राजनीतिक नियंत्रण का हिस्सा है.
युसरा ने अंत में कहा, "अगर सरकार सच में सुरक्षा कारणों से इंटरनेट बंद करना चाहती है, तो उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका प्रभाव लोगों के जीवन पर न पड़े. लेकिन यहाँ तो इसके उलट हो रहा है. हमारी शिक्षा, व्यापार, अभिव्यक्ति सब कुछ दबाया जा रहा है. हम इंसान हैं. हमें भी बोलने, जानने और जुड़ने का अधिकार है."
ये भी पढ़ें- 'आज गाजा के आसमान में तूफान आएगा और सब तबाह हो जाएगा', हमास को इजरायल की आखिरी चेतावनी, होगा भीषण हमला?