नेपाल में बीते कुछ दिनों में जो कुछ भी हुआ, उसने पूरे देश की राजनीति को हिला कर रख दिया. युवा शक्ति के जबरदस्त विरोध और सड़कों पर उमड़ी भीड़ के दबाव ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. उनका इस्तीफा आते ही अटकलों का दौर शुरू हो गया.किसी ने कहा वो दुबई भाग गए, तो किसी ने दावा किया कि चीन में हैं. मगर अब खुद ओली ने इन सभी कयासों पर विराम लगाते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी है.
इस्तीफे के बाद पहली बार सामने आए केपी शर्मा ओली ने फेसबुक पर एक खुला पत्र जारी किया है. इस पत्र में उन्होंने साफ किया कि वे न तो किसी दूसरे देश में हैं और न ही किसी तरह से छिपने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वे फिलहाल शिवपुरी में नेपाली सेना की निगरानी में सुरक्षित हैं. उन्होंने युवाओं और बच्चों को संबोधित करते हुए लिखा कि वे इस सन्नाटे में भी उनकी मासूम हंसी और उम्मीद से भरे चेहरों को याद कर रहे हैं.
व्यक्तिगत संघर्ष और पिता न बन पाने की पीड़ा
अपने इस पत्र में ओली ने पहली बार भावुक होते हुए अपनी निजी जिंदगी की कुछ अनकही बातें साझा कीं. उन्होंने बताया कि सत्ता में रहते हुए, विशेष रूप से 1990 के दशक के दौरान, उन्हें कई ऐसी यातनाएं झेलनी पड़ीं जिनके चलते वे कभी पिता नहीं बन पाए. उन्होंने यह भी बताया कि जब 1994 में वे गृहमंत्री थे, तब उनके कार्यकाल में किसी भी प्रदर्शन पर गोली नहीं चली. यह बात उन्होंने मौजूदा हालात की तुलना करते हुए कही.
“यह आंदोलन नहीं, साजिश है” – ओली का आरोप
ओली ने यह भी स्पष्ट किया कि जो आंदोलन आज देश में चल रहा है, वह युवाओं की सच्ची आकांक्षा का प्रतीक नहीं है. उनके मुताबिक, जेल तोड़कर कैदियों की रिहाई, दफ्तरों में आगजनी और सरकारी संपत्तियों का नुकसान—ये सब किसी योजनाबद्ध साजिश का हिस्सा हैं. उन्होंने चेताया कि जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था को खून-पसीने से खड़ा किया गया था, उसे गिराने की कोशिश की जा रही है.
‘जिद्दी’ ओली की सोच और फैसले
पत्र में ओली ने खुद को ‘जिद्दी स्वभाव’ का बताया और कहा कि उनकी जिद ही थी जिसने कई बार देशहित में कठोर फैसले लेने में मदद की. चाहे वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नियंत्रण का मामला हो या फिर लिपुलेक, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा घोषित करने का साहस—यह सब उनके दृढ़ निश्चय का ही परिणाम था. उन्होंने यह भी दोहराया कि भगवान श्रीराम का जन्मस्थान नेपाल में होने का दावा भी उनकी ही पहल पर सामने आया.
“पद नहीं, व्यवस्था मेरी प्राथमिकता”
अपने पत्र के अंत में ओली ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उनके लिए प्रधानमंत्री का पद या कोई राजनीतिक पहचान मायने नहीं रखती. उनके लिए असल महत्व देश की उस लोकतांत्रिक व्यवस्था का है जो हर नागरिक को अपनी बात कहने, चलने और सोचने की आज़ादी देती है. उन्होंने कहा कि जब तक संभव हो, वे इस व्यवस्था की रक्षा के लिए हर मोर्चे पर खड़े रहेंगे. यह बयान ऐसे वक्त आया है जब नेपाल एक गंभीर राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है, और जनता बदलाव की मांग कर रही है. ओली के इस पत्र ने न सिर्फ भ्रमों को दूर किया, बल्कि एक बार फिर उन्हें चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया है.
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