'उदयपुर फाइल्स' हुई रिलीज़, क्या ये फिल्म उस दर्द को बयां कर पाई जिसे दुनिया ने महसूस किया?

    Udaipur Files Review: विवाद, कोर्ट केस और सेंसर बोर्ड की सख्ती के बीच फंसी फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ आखिरकार सिनेमाघरों में पहुंच चुकी है. एक संवेदनशील और दिल दहला देने वाले सच पर आधारित इस फिल्म की राह आसान नहीं थी.

    Udaipur Files released was this film able to express the pain that the world felt
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    Udaipur Files Review: विवाद, कोर्ट केस और सेंसर बोर्ड की सख्ती के बीच फंसी फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ आखिरकार सिनेमाघरों में पहुंच चुकी है. एक संवेदनशील और दिल दहला देने वाले सच पर आधारित इस फिल्म की राह आसान नहीं थी. इसकी रिलीज़ को लेकर बार-बार सवाल उठे, क्या ये फिल्म न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करेगी? क्या ये समाज में तनाव फैला सकती है?

    लेकिन तमाम बहसों और रुकावटों को पार करते हुए कोर्ट के आदेश के बाद फिल्म ने आखिरकार स्क्रीन तक का सफर पूरा कर लिया. अब बड़ा सवाल यह है कि क्या ‘उदयपुर फाइल्स’ एक ज़रूरी फिल्म है? और क्या यह फिल्म उस दर्द, उस अन्याय, और उस डर को सही तरह दिखा पाती है जो उस दिन कन्हैयालाल की हत्या से फैला था?

    कहानी जो सच से भी ज़्यादा खौफनाक है

    ‘उदयपुर फाइल्स’ की कहानी 28 जून 2022 को हुई एक दिल दहला देने वाली घटना पर आधारित है. उदयपुर के एक दर्जी कन्हैयालाल के सोशल मीडिया अकाउंट से एक विवादित पोस्ट शेयर होने पर उन्हें धमकियां मिलने लगीं. उन्होंने सुरक्षा की मांग की, लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया. फिर रियाज अख्तर और गौस मोहम्मद नामक दो युवकों ने ग्राहक बनकर उनकी दुकान में प्रवेश किया और कैमरे के सामने उनकी निर्मम हत्या कर दी. हत्याकांड का वीडियो वायरल हुआ और देश भर में सनसनी फैल गई.

    एक मजबूत विषय, लेकिन कमजोर पकड़

    इस फिल्म में जो कहानी दिखाई गई है, वो इतनी पावरफुल और संवेदनशील है कि स्क्रीन पर बिना किसी बनावटीपन के भी असर डाल सकती थी. लेकिन फिल्म उस प्रभाव को कायम नहीं रख पाती. इसके कई कारण हैं:

    फर्स्ट हाफ बहुत कमजोर है, स्क्रिप्ट बिखरी हुई लगती है. इंडिया-पाक एंगल को जबरदस्ती ठूंसा गया है, जो विषय की गंभीरता को कमज़ोर करता है. लो बजट प्रोडक्शन, खराब वीएफएक्स और सपोर्टिंग एक्टर्स की कमजोर परफॉर्मेंस फिल्म की गंभीरता पर असर डालती है. हालांकि कन्हैयालाल की हत्या वाले सीन और उसके बाद का ट्रीटमेंट झकझोर देता है.

    एक्टिंग की बात करें तो...

    इस फिल्म की जान हैं विजय राज, जिनका अभिनय बेहद प्रभावशाली है. उनका हर एक्सप्रेशन, हर डायलॉग आपको उस दर्द में खींच लाता है, जिसे इस फिल्म का मूल संदेश बनना चाहिए था. वहीं रजनीश दुग्गल भी संतुलित अभिनय करते हैं, लेकिन बाकी कलाकारों का काम औसत से भी नीचे है.

    लेखन और निर्देशन

    फिल्म को लिखा है अमित जानी, भारत सिंह और जयंत सिंह ने, जबकि निर्देशन भारत श्रीनाटे का है. स्क्रिप्ट में दम होने के बावजूद स्क्रीनप्ले और नैरेशन में वह धार नहीं है जिसकी जरूरत इस संवेदनशील विषय को थी.

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