हमास को भी मिला तुर्की से धोखा! न्यूयॉर्क घोषणापत्र पर साइन कर लिया 360 डिग्री का यूटर्न

    पश्चिम एशिया की राजनीति में एक बड़ा बदलाव सामने आया है. लंबे समय तक हमास का समर्थन करने वाले तुर्की ने अब उसी संगठन से किनारा करना शुरू कर दिया है. तुर्की, जो अब तक हमास को "भूमिपुत्र" कहकर उसका खुला समर्थन करता रहा था.

    Turkey betrayed hamas and israel war tensions
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    पश्चिम एशिया की राजनीति में एक बड़ा बदलाव सामने आया है. लंबे समय तक हमास का समर्थन करने वाले तुर्की ने अब उसी संगठन से किनारा करना शुरू कर दिया है. तुर्की, जो अब तक हमास को "भूमिपुत्र" कहकर उसका खुला समर्थन करता रहा था, अब उसी हमास से गाजा से हटने और हथियार छोड़ने की मांग कर रहा है.

    यह बदला हुआ रुख उस समय सामने आया है जब तुर्की ने संयुक्त राष्ट्र में सऊदी अरब द्वारा प्रस्तुत उस पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने और वहां से हमास के प्रभाव को समाप्त करने की बात कही गई है. इस पत्र को "न्यूयॉर्क घोषणा पत्र" का नाम दिया गया है.

    क्या है न्यूयॉर्क घोषणा पत्र?

    28 और 29 जुलाई को न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सऊदी अरब की अध्यक्षता में एक अहम बैठक हुई. इस बैठक में दो-राष्ट्र सिद्धांत पर चर्चा हुई, जिसके तहत इजराइल और फिलिस्तीन को अलग-अलग संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की बात रखी गई. फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों ने इजराइल और हमास, दोनों की आलोचना करते हुए समाधान के रूप में इस प्रस्ताव का समर्थन किया. प्रस्ताव में यह साफ कहा गया है कि गाजा और वेस्ट बैंक में स्थायी शांति तभी संभव है जब फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी जाए और वहां की सत्ता किसी राजनीतिक संगठन के हाथ में हो—not a militant group like Hamas. इस प्रस्ताव पर तुर्की समेत 16 अरब देशों ने हस्ताक्षर किए हैं. इसमें सऊदी अरब, जॉर्डन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश शामिल हैं.

    तुर्की के रुख में आया बड़ा बदलाव

    मई 2024 में जब हमास वैश्विक स्तर पर आलोचना का सामना कर रहा था, तब तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयब एर्दोआन उसके सबसे मुखर समर्थकों में से एक थे. उन्होंने हमास को फिलिस्तीनी भूमि की रक्षा करने वाला "प्रतिरोध आंदोलन" करार दिया था. एर्दोआन ने हमास की तुलना 'कुवा-यी मिलिये' से की थी—वह संगठन जिसने आधुनिक तुर्की की स्थापना के लिए संघर्ष किया था. इतना ही नहीं, तुर्की के खुफिया प्रमुख और विदेश मंत्री ने कई बार हमास नेताओं से सीधे मुलाकातें भी की थीं. ऐसे में जब तुर्की अब उसी हमास से पीछे हटने की बात कर रहा है, तो अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों और खुद तुर्की की जनता में यह सवाल उठने लगा है कि क्या यह बदलाव रणनीतिक है या दबाव में लिया गया फैसला?

    क्यों उठ रहे हैं सवाल?

    राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तुर्की का यह यूटर्न उसके बदलते कूटनीतिक समीकरणों का संकेत है. पश्चिमी देशों के साथ संबंध सुधारने की कोशिश, आर्थिक संकट से जूझ रही तुर्की की सरकार की वैश्विक मदद की उम्मीद और क्षेत्रीय संतुलन की जरूरत ये कुछ ऐसे कारण हो सकते हैं जिनकी वजह से एर्दोआन को अपना रुख नरम करना पड़ा. हालांकि, इस बदलाव से यह भी संकेत मिलता है कि अब पश्चिम एशिया में भी आतंकवादी संगठनों की भूमिका को सीमित करने की दिशा में व्यापक सहमति बन रही है.

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