अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लागू की गई टैरिफ नीतियों को लेकर एक बार फिर अमेरिकी न्यायपालिका का हस्तक्षेप सामने आया है. हाल ही में भारत समेत कई देशों पर लगाए गए 50 प्रतिशत तक के टैरिफ को अब अदालत ने कानूनी वैधता से परे बताया है. अपील कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ट्रंप ने टैरिफ लगाने के लिए जिन आपातकालीन शक्तियों का उपयोग किया, वे इस प्रकार की कर व्यवस्था लागू करने के लिए उपयुक्त नहीं थीं.
हालांकि कोर्ट ने इन टैरिफ को तत्काल प्रभाव से हटाने के बजाय 14 अक्टूबर तक लागू रहने की अनुमति दी है, जिससे ट्रंप प्रशासन के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील का अवसर बना रहे.
देश तबाह हो जाएगा
कोर्ट के इस फैसले पर राष्ट्रपति ट्रंप ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर उन्होंने लिखा, “अगर ये टैरिफ खत्म कर दिए गए तो यह अमेरिका के लिए पूरी तरह से विनाशकारी साबित होगा.” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अपील अदालतें पक्षपातपूर्ण व्यवहार कर रही हैं और उन्हें विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट उनके पक्ष में फैसला सुनाएगा. व्हाइट हाउस की ओर से जारी बयान में भी स्पष्ट किया गया कि फिलहाल ये टैरिफ लागू रहेंगे और प्रशासन कोर्ट में मुकदमे को पूरी गंभीरता से आगे बढ़ाएगा.
ट्रंप की रणनीतिक चाल या कानूनी अतिक्रमण?
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में टैरिफ को न केवल एक आर्थिक उपकरण बल्कि रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है. चाहे वह व्यापार घाटे की भरपाई हो या कूटनीतिक दबाव की रणनीति ट्रंप ने कई बार टैरिफ को लेवर की तरह इस्तेमाल किया है. भारत पर लगाया गया 50% शुल्क भी इसी नीति का हिस्सा था, जिसके कारण दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ गया.बाजारों पर इसका नकारात्मक असर पड़ा है, और अमेरिकी उद्योग जगत समेत वैश्विक व्यापार समुदाय में भी असंतोष देखा जा रहा है.
पहले भी अदालतें जता चुकी हैं आपत्ति
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप की टैरिफ नीतियों को कोर्ट की नाराज़गी झेलनी पड़ी है. मई में न्यूयॉर्क की अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अदालत ने भी राष्ट्रपति द्वारा टैरिफ लगाने की प्रक्रिया को अधिकारों का उल्लंघन बताया था. उस समय भी अदालत ने कहा था कि ट्रंप ने International Emergency Economic Powers Act (IEEPA) के प्रावधानों की गलत व्याख्या की और टैरिफ के रूप में ऐसे अधिकारों का इस्तेमाल किया जो कानून ने उन्हें दिए ही नहीं थे. दिलचस्प बात यह रही कि उस फैसले में ट्रंप द्वारा नियुक्त एक न्यायाधीश भी शामिल थे, जिनकी राय थी कि राष्ट्रपति ने शक्तियों का अतिक्रमण किया.
विरोध बढ़ा, मुकदमे जारी
रॉयटर्स के अनुसार, ट्रंप की टैरिफ नीति के खिलाफ अब तक कम से कम आठ मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. इनमें एक मुकदमा कैलिफोर्निया राज्य सरकार की ओर से दायर किया गया है. ये मामले इस बात की ओर इशारा करते हैं कि देश के भीतर भी टैरिफ नीतियों को लेकर गंभीर आपत्ति और कानूनी सवाल उठाए जा रहे हैं.
क्या कहता है आगे का रास्ता?
अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं, जहां यह तय होगा कि क्या राष्ट्रपति को इस तरह की आपात शक्तियों का उपयोग कर व्यापारिक नीतियां तय करने का अधिकार है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अदालत ट्रंप के खिलाफ फैसला सुनाती है, तो यह केवल उनकी नीतियों को नहीं बल्कि भविष्य में किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति की टैरिफ नीति को भी प्रभावित कर सकता है.
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