जब आप ‘विश्व युद्ध’ सुनते हैं तो आपके ज़ेहन में शायद टैंकों की गर्जना, बमबारी से धधकते शहर और लाखों सैनिकों की कतारें आती होंगी. लेकिन रूस के रणनीतिकार और भू-राजनीतिक विश्लेषक दिमित्री त्रेनिन के मुताबिक, तीसरा विश्व युद्ध उसी गंभीरता से शुरू हो चुका है. बस इस बार इसका चेहरा बदला हुआ है.
इस युद्ध में न तो सिपाही हर मोर्चे पर दिखते हैं, न ही हर देश हथियारों से लड़ा रहा है. बल्कि यह संघर्ष इंटरनेट के तारों, डिजिटल सर्विलांस, आर्थिक नाकेबंदी और विचारधाराओं की खाइयों के बीच घट रहा है. और यही वजह है कि अधिकतर लोग इस युद्ध को पहचान भी नहीं पा रहे.
कहां-कहां लड़ा जा रहा है ये युद्ध?
1. यूक्रेन का युद्ध: केवल गोलियां नहीं, डेटा भी हथियार है
इस लड़ाई का सबसे सक्रिय मोर्चा है पूर्वी यूरोप, जहां रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष ने पूरी दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया है. अमेरिका, नाटो, यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन खुले तौर पर यूक्रेन के साथ खड़े हैं. दूसरी तरफ रूस है, जिसे चीन और ईरान का कूटनीतिक और तकनीकी समर्थन हासिल है.
लेकिन, युद्ध सिर्फ सीमा पर नहीं है. रूस और यूक्रेन के बीच साइबर जंग, ड्रोन अटैक, सैटेलाइट इंटेलिजेंस और मीडिया प्रोपेगेंडा से लेकर अर्थव्यवस्था पर हमले तक चल रहे हैं.
2. गाजा-ईरान-इजरायल: असममित युद्ध का नया रंग
मध्य पूर्व अब केवल फिलिस्तीन और इजरायल की रेखाओं में बंधा हुआ इलाका नहीं है. ईरान, हिज़्बुल्लाह, हमास और इजरायल के बीच छिड़ी जंग में अमेरिका पूरी ताकत से इजरायल के साथ है. दूसरी ओर रूस और चीन ईरान को कूटनीतिक छांव दे रहे हैं.
यहां कोई तय सीमा नहीं, कोई साफ मोर्चा नहीं. प्रॉक्सी वॉर, ड्रोन अटैक, साइबर हमले और गुप्त हिट स्क्वॉड्स, यह नया युद्ध साफ करता है कि लड़ाई का तरीका बदल चुका है.
3. ताइवान-साउथ चाइना सी: एक चिंगारी काफी है
अगर कोई इलाका दुनिया को परमाणु युद्ध की तरफ ले जा सकता है, तो वह है ताइवान और एशिया-प्रशांत. चीन ताइवान को जबरन एकीकृत करने की बात करता है, जबकि अमेरिका उसे लगातार हथियार और समर्थन दे रहा है.
ताइवान जलडमरूमध्य में एक छोटा-सा नेवी टकराव भी इस ठंडे युद्ध को एक झुलसाने वाली गर्म जंग में बदल सकता है.
दुनिया की शक्ल बदल रही है
दिमित्री त्रेनिन कहते हैं कि अब ये लड़ाई महज़ सैन्य शक्ति की नहीं, सभ्यताओं की टक्कर बन चुकी है. एक तरफ अमेरिका, जापान, यूरोपीय देश और ऑस्ट्रेलिया हैं—दूसरी तरफ रूस, चीन, ईरान, उत्तर कोरिया और कभी-कभी भारत जैसे देश जो तटस्थ रहकर भी रणनीतिक बढ़त देख रहे हैं.
ब्रिक्स, एससीओ, और तमाम नए उभरते गठबंधन पश्चिमी प्रभुत्व के खिलाफ वैकल्पिक ध्रुव बनने की तैयारी में हैं. यह संघर्ष एक नई वर्ल्ड ऑर्डर को जन्म दे रहा है.
यूएन जैसी संस्थाएं अप्रासंगिक होती जा रही हैं
इस युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान संयुक्त राष्ट्र, डब्ल्यूटीओ, आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं की साख को हुआ है. बड़ी ताकतें इन संस्थाओं के नियम नहीं मान रही हैं. उनका कहना है कि नई दुनिया के लिए नए सिस्टम चाहिए- नई अंतरराष्ट्रीय नैतिकताएं, नई संधियां, नई सैन्य अवधारणाएं.
क्या होगा अंजाम?
अगर ताइवान में कोई युद्ध भड़कता है, या ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला होता है, या बाल्टिक देशों में रूस कोई बड़ा कदम उठाता है, तो ये संघर्ष सीधे परमाणु युद्ध की दिशा में बढ़ सकता है, और तब इसकी भयावहता शायद 1914 या 1939 से भी ज्यादा हो.
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