नई दिल्ली: 1965 का भारत-पाक युद्ध अपने पूरे उफान पर था. हर दिन नई चुनौतियाँ, नए मोर्चे और अनगिनत कहानियाँ जन्म ले रही थीं. ऐसे ही11 सितंबर 1965 भारतीय वायुसेना और पाकिस्तानी वायुसेना के बीच का टकराव इतिहास के पन्नों में एक खास जगह बना गया. यह वह दिन था जब भारतीय मिग-21 और पाकिस्तानी F-104 स्टारफाइटर पहली बार आमने-सामने आए.
यह मुठभेड़ सिर्फ दो फाइटर जेट्स की नहीं थी, बल्कि यह दो रणनीतियों, दो सोच और दो हौसलों की टक्कर थी. और दिलचस्प बात यह रही कि इस टकराव में जिसने ज्यादा शोर मचाया था, वह आखिरकार चुपचाप पीछे हट गया.
वायुसेना पूरी ताकत से मैदान में उतरीं
1965 का युद्ध जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी सेना द्वारा छेड़े गए ऑपरेशन जिब्राल्टर और उसके बाद ग्रैंड स्लैम के चलते शुरू हुआ था. इस हमले का उद्देश्य था कश्मीर में विद्रोह को बढ़ावा देना और भारत को राजनीतिक और सैन्य रूप से कमजोर करना. जवाब में भारतीय सेना और वायुसेना पूरी ताकत से मैदान में उतरीं.
इसी दौरान भारतीय वायुसेना को मिग-21 जैसे नए, सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों से लैस किया गया था. यह सोवियत तकनीक पर आधारित तेज रफ्तार विमान था, जो भारतीय पायलटों के आत्मविश्वास को नई उड़ान दे रहा था.
वहीं, पाकिस्तान को अमेरिका से मिले F-104 स्टारफाइटर पर बहुत गर्व था. इसे 'बिजली से तेज' कहकर प्रचारित किया गया था और इसकी AIM-9 साइडवाइंडर मिसाइलें तब किसी भी लड़ाई में निर्णायक मानी जाती थीं. पाकिस्तान की वायुसेना को लगता था कि F-104 का मुकाबला करना किसी के बस की बात नहीं है.
11 सितंबर: जब इतिहास ने ली करवट
उस दिन अमृतसर के आसमान पर भारतीय वायुसेना की 28वीं स्क्वाड्रन, जो पहली सुपरसोनिक स्क्वाड्रन थी, गश्त कर रही थी. इन जेट्स का काम था भारतीय सीमा की निगरानी करना और पाकिस्तानी विमानों की घुसपैठ को रोकना.
अचानक, एक पाकिस्तानी F-104 ने भारतीय हवाई क्षेत्र में घुसने की कोशिश की. उसकी मंशा थी भारतीय मिग-21 को निशाना बनाना. उसे भरोसा था कि उसकी अधिकतम गति और मिसाइल प्रणाली के आगे मिग-21 नहीं टिक पाएगा.
लेकिन उसने यह नहीं सोचा था कि भारतीय पायलटों का रणकौशल, उनकी सतर्कता और मिग-21 की तकनीकी दक्षता, मुकाबले को उसकी सोच से कहीं ज्यादा जटिल बना देगी.
टकराव: स्पीड, स्ट्रेटेजी और स्किल की जंग
जैसे ही F-104 ने इंटरसेप्शन की कोशिश की, मिग-21 ने स्थिति को संभालते हुए खुद को दुश्मन के फायरिंग एंगल से बाहर रखा. हवा में दोनों विमानों की स्पीड बहुत अधिक थी, लेकिन इस हाई-स्पीड डॉगफाइट में निर्णायक भूमिका निभाई रणनीति और पोजिशनिंग ने.
F-104 ने अपने ट्रम्प कार्ड, साइडवाइंडर मिसाइलों का इस्तेमाल करने की कोशिश की. लेकिन उसकी रफ्तार और बेहद कम ऊंचाई पर उड़ान भरने के कारण मिसाइलें लक्ष्य को भेद नहीं पाईं. दूसरी ओर, भारतीय पायलटों ने हमले से ज्यादा डिफेंसिव पोजिशनिंग को तरजीह दी और दुश्मन को फंसने का कोई मौका ही नहीं दिया.
F-104 के पायलट को जल्द ही यह एहसास हो गया कि स्थिति उसके नियंत्रण से बाहर जा रही है. मिग-21 उसके पीछे आ गया था, और अगर वह देर करता, तो खुद को संकट में डाल देता. उसने तुरंत दिशा बदली और अमृतसर के आसमान से पीछे हट गया.
परिणाम: तकनीक हारी, रणनीति जीती
इस मुठभेड़ में गोली नहीं चली, लेकिन यह टकराव दोनों देशों की वायुसेना के मनोबल के लिए एक बड़ी घटना थी. पहली बार पाकिस्तानी F-104 का 'अजेय' मिथक टूटा था.
यह घटना सिर्फ एक विमान की हार नहीं थी, बल्कि उस अति आत्मविश्वास की हार थी जो तकनीकी श्रेष्ठता को ही निर्णायक मान बैठा था. वहीं, भारत के मिग-21 और उसके पायलटों ने साबित कर दिया कि युद्ध जीतने के लिए केवल मिसाइलें और रफ्तार नहीं, धैर्य, रणनीति और फुर्तीला सोच चाहिए होती है.
सामने आईं F-104 की कमियां
इस एक मुठभेड़ के बाद पाकिस्तान की वायुसेना को F-104 की क्षमताओं पर दोबारा विचार करना पड़ा. मिग-21 के सामने F-104 की कमियां खुलकर सामने आ गईं. कुछ वर्षों बाद, पाकिस्तान ने F-104 को अपनी वायुसेना से बाहर कर दिया.
वहीं, मिग-21 भारतीय वायुसेना का वर्षों तक अभिन्न हिस्सा बना रहा. इस विमान ने न केवल 1965 बल्कि 1971 और कारगिल जैसे संघर्षों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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