पाकिस्तान की नदियों में पानी की भारी कमी, खेती और बिजली के लिए जूझ रहे लोग, शुरू होगी सिंधु जल संधि?

    पाकिस्तान की जल प्रबंधन संस्था IRSA (Indus River System Authority) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, सिंधु नदी प्रणाली में पानी की आपूर्ति में 21% की गिरावट आई है.

    There is acute shortage of water in the rivers of Pakistan
    Image Source: Social Media

    इस्लामाबाद: पाकिस्तान एक गंभीर जल संकट की चपेट में आता जा रहा है. देश की प्रमुख नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – में जल प्रवाह में भारी कमी दर्ज की गई है. इस जल संकट का असर न सिर्फ खेती और खाद्य सुरक्षा पर पड़ रहा है, बल्कि इससे देश की ऊर्जा आपूर्ति और औद्योगिक गतिविधियां भी प्रभावित हो रही हैं.

    पाकिस्तान की जल प्रबंधन संस्था IRSA (Indus River System Authority) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, सिंधु नदी प्रणाली में पानी की आपूर्ति में 21% की गिरावट आई है. खैबर पख्तूनख्वा के प्रमुख बांध – मंगला और तरबेला – 50% से भी कम जल स्तर पर पहुंच गए हैं. इससे देश के बड़े हिस्से में सिंचाई संकट खड़ा हो गया है.

    कृषि संकट की दस्तक:

    पंजाब और सिंध जैसे कृषि-प्रधान प्रांतों में गर्मी की फसलों की बुवाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है. IRSA के अनुसार, 2 जून 2025 को पंजाब में जल उपलब्धता 1,28,800 क्यूसेक रही, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 11% कम है.

    देश के 80% कृषि क्षेत्र सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है. खासकर पंजाब में झेलम और चिनाब नदियों से सिंचाई होती है, जो राष्ट्रीय गेहूं उत्पादन का 77% योगदान देती है. इस संकट का सीधा असर खाद्य उत्पादन, किसानों की आय और ग्रामीण रोजगार पर पड़ रहा है.

    बिजली संकट भी उभरता खतरा

    पाकिस्तान की जलविद्युत परियोजनाएं- खासकर मंगला और तरबेला डैम, सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर आधारित हैं. जल प्रवाह में कमी से इन डैम्स की ऊर्जा उत्पादन क्षमता घटकर 30% से 50% तक सीमित हो सकती है. इससे देश में बिजली कटौती और इंडस्ट्रियल स्लोडाउन की स्थिति बन सकती है.

    बलूचिस्तान और सिंध के कई इलाकों में 16 घंटे तक बिजली कटौती की शिकायतें आ रही हैं, जिससे भीषण गर्मी में जीवन और अधिक कठिन हो गया है.

    मॉनसून की देरी: राहत अभी दूर

    जलवायु वैज्ञानिकों के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम मॉनसून को पाकिस्तान पहुंचने में अभी लगभग चार सप्ताह का समय लगेगा. इस बीच एक स्थायी एंटी-साइक्लोन सिस्टम पाकिस्तान के ऊपर बना हुआ है, जो गर्मी को और भीषण बना रहा है.

    इस देरी के कारण जल संकट और गंभीर हो सकता है, और बाढ़ नियंत्रण जैसे आपातकालीन इंतजाम भी प्रभावित होंगे क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच जल डेटा का आदान-प्रदान भी बंद हो चुका है.

    सिंधु जल संधि का निलंबन

    कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ राजनीतिक और कूटनीतिक कड़े कदम उठाए. इनमें 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करना एक बड़ा फैसला था.

    इसके साथ ही भारत ने:

    • अटारी बॉर्डर बंद किया
    • वीज़ा सेवाएं रोकीं
    • उच्चायुक्तों को वापस बुलाया
    • और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की

    भारत के इस फैसले के बाद पाकिस्तान में सिंधु जल डेटा तक पहुंच रुक गई है, जिससे जल प्रबंधन और बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली बुरी तरह प्रभावित हुई है.

    अर्थव्यवस्था पर गहराता प्रभाव

    • खेती से जुड़ी 4.7 करोड़ एकड़ जमीन सिंधु जल पर निर्भर है
    • कृषि क्षेत्र पाकिस्तान की GDP का 23% हिस्सा है
    • 68% ग्रामीण आबादी की जीविका खेती पर आधारित है
    • जल संकट के चलते न सिर्फ खाद्य उत्पादन में गिरावट होगी, बल्कि बेरोजगारी, महंगाई और ग्रामीण पलायन भी बढ़ सकता है.

    साथ ही, उद्योगों को जल और बिजली की कमी से जूझना पड़ सकता है, जिससे पाकिस्तान की पहले से ही कमजोर आर्थिक स्थिति और नाजुक हो सकती है.

    क्या है आगे का रास्ता?

    पाकिस्तान को इस संकट से उबरने के लिए:

    • जल भंडारण की क्षमता बढ़ानी होगी
    • वाटर मैनेजमेंट में टेक्नोलॉजी और पारदर्शिता लानी होगी
    • भारत के साथ पानी को लेकर संवाद के रास्ते फिर खोलने होंगे
    • और कृषि में जल संरक्षण तकनीकों को तेजी से अपनाना होगा.

    ये भी पढ़ें- रूस ने भारत को दिया R-37M मिसाइल का ऑफर, पाकिस्तान के AWACS और F-16 के लिए है काल, जानें इसकी ताकत