दुश्मन के पास 1650 और भारत के पास केवल 522 फाइटर जेट... कब और कैसे पूरी होगी 13 स्क्वायड्रन की कमी?

    ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना ने जो पराक्रम दिखाया, उसने न केवल पाकिस्तान को झकझोरा, बल्कि दुनिया को यह एहसास भी कराया कि भारत अब किसी भी हमले का जवाब देने में सक्षम और निर्णायक बन चुका है.

    The enemy has 1650 and India has only 522 fighter jets
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना ने जो पराक्रम दिखाया, उसने न केवल पाकिस्तान को झकझोरा, बल्कि दुनिया को यह एहसास भी कराया कि भारत अब किसी भी हमले का जवाब देने में सक्षम और निर्णायक बन चुका है. लेकिन इस शानदार सफलता के बीच एक बेहद गंभीर सवाल खड़ा होता है- क्या भारत के पास ऐसे अभियानों को बार-बार अंजाम देने की पर्याप्त सामरिक ताकत है?

    यह सवाल इसलिए और अहम हो जाता है क्योंकि भारत की वायुसेना, जो किसी भी युद्ध की रीढ़ होती है, लड़ाकू विमानों की भारी कमी से जूझ रही है. यह लेख इसी महत्वपूर्ण पहलू की पड़ताल करता है, क्या भारत मौजूदा हालात में चीन-पाक गठजोड़ जैसे शक्तिशाली दुश्मनों के चक्रव्यूह को भेदने की स्थिति में है?

    वायुसेना का संकट: स्क्वॉड्रन घटे, चुनौती बढ़ी

    भारतीय वायुसेना को कुल 42 स्क्वॉड्रन की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में केवल 31 स्क्वॉड्रन ही ऑपरेशनल हैं. उनमें से भी मिग-21 जैसे पुराने लड़ाकू विमानों के दो स्क्वॉड्रन अगले कुछ महीनों में रिटायर हो रहे हैं. यानी आने वाले समय में स्क्वॉड्रनों की संख्या गिरकर 29 तक पहुंच जाएगी.

    एक स्क्वॉड्रन में औसतन 18 फाइटर जेट्स होते हैं. यानी भारत के पास करीब 522 लड़ाकू विमान ही बचेंगे, जबकि मानक के अनुसार उसे 756 विमानों की आवश्यकता है. यानी भारत के पास वर्तमान में करीब 234 विमानों की भारी कमी है. यह आंकड़ा चिंताजनक नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से खतरनाक है.

    वहीं दूसरी ओर, दुश्मन की ताकत दोगुनी

    भारत के लिए चुनौती सिर्फ आंतरिक नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें बाहरी समीकरणों से भी जुड़ी हैं. भारत के दो सबसे बड़े सामरिक विरोधी—चीन और पाकिस्तान, न केवल भारत के खिलाफ एक रणनीतिक साझेदारी निभा रहे हैं, बल्कि दोनों की वायुसेनाएं बेहद आक्रामक ढंग से आधुनिकीकरण कर रही हैं.

    चीन:

    • चीन की वायुसेना के पास 66 स्क्वॉड्रन यानी लगभग 1200 फाइटर जेट्स हैं.
    • इसमें 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान J-20 के 200 से अधिक यूनिट शामिल हैं.
    • चीन 2030 तक 6वीं पीढ़ी के विमान विकसित करने की दिशा में भी काम कर रहा है.

    पाकिस्तान:

    • पाकिस्तान एयरफोर्स के पास 25 स्क्वॉड्रन, यानी करीब 450 फाइटर जेट्स हैं.
    • इसमें अमेरिकी F-16 और चीन के साथ मिलकर बनाए गए JF-17 जैसे विमान शामिल हैं.
    • चीन अब पाकिस्तान को J-20 जैसे एडवांस जेट देने की तैयारी में है.

    दोनों देशों को मिलाकर कुल 1650 लड़ाकू विमान हैं, जो भारत की तुलना में तीन गुना अधिक हैं.

    फाइटर जेट्स बनाना इतना आसान क्यों नहीं है?

    कई लोग सोच सकते हैं कि जब भारत इतना बड़ा देश है और आर्थिक रूप से भी सशक्त हो रहा है, तो वह बस कुछ और विमान क्यों नहीं खरीद लेता? लेकिन हकीकत में लड़ाकू विमान खरीदना या बनाना, एयर कंडीशनर या मोबाइल फोन खरीदने जितना आसान नहीं होता.

    • भारत ने 1984 में 'तेजस' प्रोजेक्ट की नींव रखी थी, लेकिन यह अब जाकर सीमित सफलताओं के साथ आगे बढ़ रहा है.
    • अब तक 83 तेजस Mk-1A का ऑर्डर दिया गया है, लेकिन डिलीवरी अभी शुरू नहीं हुई है.
    • तेजस Mk-2 और AMCA (5वीं पीढ़ी के जेट) जैसे प्रोजेक्ट्स योजना में हैं, लेकिन इनका उत्पादन 2030-35 से पहले शुरू नहीं हो सकेगा.

    इन देरी की प्रमुख वजहों में इंजन सप्लायर अमेरिकी कंपनी GE की लेट डिलीवरी और तकनीकी सीमाएं भी शामिल हैं.

    भारत के विकल्प सीमित, चुनौतियां गंभीर

    अमेरिका का F-35

    • भारत को पेशकश की गई है, लेकिन यह बेहद महंगा है.
    • कीमत 2000 करोड़ रुपये प्रति यूनिट तक हो सकती है.
    • इसके रखरखाव और भारत की मौजूदा लॉजिस्टिक्स में फिट होने की चुनौती है.

    रूस का SU-57

    • तकनीकी रूप से 5वीं पीढ़ी का विमान है लेकिन भारत की जरूरतों पर पूरी तरह खरा नहीं उतरता.
    • फिर भी, भारत इसमें संशोधन करके 2-3 स्क्वॉड्रन खरीदने की योजना बना रहा है.

    क्या भारत को सिर्फ बाहर से विमान खरीदने चाहिए?

    यह एक महत्वपूर्ण रणनीतिक प्रश्न है. विदेशी खरीद तेजी से युद्ध क्षमता बढ़ा सकती है, लेकिन इससे देश की आत्मनिर्भरता प्रभावित होती है, और अरबों डॉलर विदेश चले जाते हैं. जबकि घरेलू निर्माण से न केवल पैसे देश में रहते हैं, बल्कि देश की डिफेंस इंडस्ट्री भी मजबूत होती है.

    अगर भारत सभी 234 विमानों को विदेशी स्रोत से खरीदे, और प्रति यूनिट औसत लागत 2000 करोड़ रुपये मानी जाए, तो कुल लागत करीब 4.68 लाख करोड़ रुपये बैठेगी.

    इतनी राशि में भारत अपने देश में उत्पादन कर न केवल विमानों की जरूरत पूरी कर सकता है, बल्कि भविष्य के लिए एक मजबूत एयरोस्पेस इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार कर सकता है.

    भारत की राह क्या होनी चाहिए?

    • तेजस प्रोग्राम को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. HAL और GE के बीच करार के बावजूद सप्लाई शेड्यूल पर निगरानी जरूरी है.
    • AMCA जैसी स्वदेशी 5वीं पीढ़ी के प्रोजेक्ट्स को जल्द से जल्द ट्रैक पर लाया जाए.
    • फास्ट ट्रैक पर सीमित विदेशी खरीद की जाए, खासकर तब तक जब तक स्वदेशी प्रोग्राम गति न पकड़ें.
    • डिफेंस बजट में स्थायी बढ़ोतरी और निजी कंपनियों को निर्माण में शामिल कर डीआरडीओ पर अकेला भार न डाला जाए.

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