बुलंदशहर में महिला के गर्भ नहीं, लिवर में पल रहा बच्चा, चकरा गया डॉक्टर का सिर, AI पर क्यों उठे सवाल?

    उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले से हाल ही में एक ऐसा मेडिकल केस सामने आया है जिसने चिकित्सा विशेषज्ञों और तकनीकी समुदाय दोनों को हैरानी में डाल दिया है.

    The baby is growing in the woman liver not her womb
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    बुलंदशहर: उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले से हाल ही में एक ऐसा मेडिकल केस सामने आया है जिसने चिकित्सा विशेषज्ञों और तकनीकी समुदाय दोनों को हैरानी में डाल दिया है. एक 30 वर्षीय गर्भवती महिला के शरीर में भ्रूण उसकी गर्भाशय में नहीं, बल्कि लीवर में विकसित हो रहा था. यह मामला न केवल चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से अत्यंत दुर्लभ है, बल्कि इससे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की उपयोगिता और सीमाओं को लेकर भी नए सिरे से चर्चा शुरू हो गई है.

    जानकारी के मुताबिक, यह दुनिया में सामने आए मात्र आठ मामलों में से एक है, जहां भ्रूण लिवर में इम्प्लांट हुआ है और जीवित अवस्था में देखा गया है. यह असामान्य मेडिकल केस उस स्तर पर है जहां परंपरागत चिकित्सीय ज्ञान भी चुनौती में पड़ जाता है.

    कैसे हुआ इस केस का खुलासा?

    महिला को कई दिनों से पेट दर्द और उल्टी की शिकायत हो रही थी. स्थानीय अस्पताल में शुरुआती जांच के बाद डॉक्टरों ने मामला गंभीर पाया और महिला को MRI जांच के लिए रेफर किया गया. MRI रिपोर्ट ने डॉक्टरों को चौंका दिया. रिपोर्ट के अनुसार, भ्रूण लीवर की दाहिनी ओर स्थित था और तकरीबन 12 सप्ताह का था. हैरानी की बात यह थी कि भ्रूण पूरी तरह जीवित था और उसकी धड़कन सामान्य रूप से काम कर रही थी.

    डॉक्टरों का कहना है कि इस तरह की स्थिति Abdominal Pregnancy की एक दुर्लभ और गंभीर किस्म है, जहां भ्रूण सामान्य गर्भाशय की बजाय शरीर के किसी अन्य हिस्से जैसे आंत, लीवर या ओमेंटम में इम्प्लांट हो जाता है. यह न केवल मां के लिए गंभीर जोखिम लेकर आता है, बल्कि भ्रूण की जीवन संभावना भी न्यूनतम होती है.

    क्या AI इस मामले को पहचान सकता था?

    इस केस के सामने आने के बाद चिकित्सा समुदाय में एक नई बहस ने जन्म लिया है: क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जो विशुद्ध रूप से डेटा और पैटर्न पर आधारित होता है, ऐसे दुर्लभ और अपवादस्वरूप मामलों को सही ढंग से पहचान सकता है?

    इस पर टिप्पणी करते हुए, चिकित्सक डॉ. शिवानी गुप्ता ने एक लिंक्डइन पोस्ट में सवाल उठाया, "AI को आम तौर पर प्रशिक्षित किया जाता है सामान्य और विशिष्ट डेटा पर. लेकिन जब मामला इतना अनोखा हो कि उसकी मिसाल दुनिया में केवल आठ बार मिली हो, तब क्या AI उसे पहचानने में सक्षम है?"

    उन्होंने आगे लिखा कि चिकित्सा में केवल डेटा ही निर्णायक नहीं होता. डॉक्टरों की क्लिनिकल जजमेंट, अनुभव, मरीज के लक्षणों को समझने की क्षमता, और उनके अंदर की जिज्ञासा ऐसे कारक हैं जो अब तक किसी मशीन में नहीं समा सके हैं.

    IMA का रुख: "डॉक्टरों का कोई विकल्प नहीं

    Indian Medical Association (IMA) के प्रमुख डॉ. आर.वी. असोकन पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि चिकित्सा के क्षेत्र में डॉक्टरों की भूमिका को AI कभी पूरी तरह से प्रतिस्थापित नहीं कर सकता. उनके अनुसार, "AI, टेलीमेडिसिन और रोबोटिक सर्जरी जैसी तकनीकें आधुनिक चिकित्सा प्रणाली को अधिक सक्षम और कुशल बनाने में सहायक हो सकती हैं. लेकिन मरीज की देखभाल में मानवीय समझ, संवेदनशीलता और अनुभव की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता."

    डॉ. असोकन के मुताबिक, "मरीज और डॉक्टर के बीच जो विश्वास का रिश्ता होता है, वह केवल इंसान ही निभा सकता है कोई मशीन नहीं."

    तकनीक और चिकित्सा: संतुलन की जरूरत

    AI ने हाल के वर्षों में चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है. कैंसर डायग्नोसिस, हृदय रोग की पहचान, रेडियोलॉजी रिपोर्ट्स की समीक्षा जैसे क्षेत्रों में AI की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. लेकिन बुलंदशहर में सामने आए इस केस की तरह अगर स्थिति बिल्कुल असामान्य हो, तो AI को सीमाओं में बांध देने वाला उसका डेटा-संचालित दृष्टिकोण, एक बड़ी चुनौती बन सकता है.

    विशेषज्ञ मानते हैं कि AI का उद्देश्य डॉक्टरों को बदलना नहीं, बल्कि उन्हें सक्षम बनाना होना चाहिए. ऐसे जटिल और अनूठे मामलों में केवल तकनीकी ज्ञान नहीं, बल्कि एक प्रशिक्षित मानव मस्तिष्क की अंतर्ज्ञानात्मक क्षमता ही निर्णायक भूमिका निभा सकती है.

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